'वूल्फ1061सी' ग्रह पर जीवन की आस

- मुकुल व्यास
 
खगोल वैज्ञानिक हमारे सौरमंडल के बाहर एक ऐसे ग्रह का अध्ययन कर रहे हैं, जहां परिस्थितियां जीवन के लिए मददगार हो सकती हैं। वूल्फ1061सी नामक यह ग्रह अपने तारे के आवास योग्य क्षेत्र में स्थित है और हमारी पृथ्वी के इतना करीब है कि वैज्ञानिक इसका विस्तृत अध्ययन कर सकते हैं। 
 
लेकिन यह ग्रह अपने क्षेत्र के अंदरुनी किनारे पर स्थित है जिसकी वजह से इसे भीषण गर्मी का सामना करना पड़ सकता है। यह गर्मी उसके वायुमंडल में अटककर ग्रीनहाउस प्रभाव उत्पन्न कर सकती है। अमेरिका की सेन फ्रांसिस्को स्टेट यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने पृथ्वी से सिर्फ 14 प्रकाश वर्ष दूर वूल्फ1061 नामक तारे के ग्रहों का अध्ययन किया है। इस सौरमंडल में 3 ग्रह हैं जिनमे से एक आवासयोग्य क्षेत्र में स्थित है। वूल्फ 1061सी ग्रह की परिस्थितियों को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने उस तारे की नापझोख की है जिसकी यह परिक्रमा करता है।
 
सेन फ्रांसिस्को स्टेट यूनिवर्सिटी के खगोल वैज्ञानिक स्टीफन केन का कहना है कि आवास क्षेत्र में ग्रह की स्थिति और पृथ्वी से निकटता के कारण यह जीवन की खोज के लिए एक आदर्श पात्र हो सकता है। आवास योग्य क्षेत्र में भी ग्रह की उपस्थिति 'गोल्डीलॉक्स जोन' में होनी चाहिए। गोल्डीलॉक्स जोन में तापमान तरल पानी के लिए अनुकूल होता है। 
 
उल्लेखनीय है कि हमारी पृथ्वी सूरज के आवास क्षेत्र के बीचोबीच स्थित है। वैसे हमारे सौरमंडल से बाहर तारों के आवासीय क्षेत्र में कई ग्रहों का पता चल चुका है। यदि कोई ग्रह अपने मूल तारे से बहुत दूर है तो वह बहुत ठंडा होगा। ऐसी जगह पानी जम जाएगा।
 
केन के मुताबिक मंगल ग्रह पर ऐसा ही हुआ। यदि यह अपने तारे के बहुत समीप है तो वह बहुत गर्म होगा। ऐसे ग्रह की गर्मी वायुमंडल में फंसकर ग्रीनहाउस प्रभाव को जन्म देती है। वायुमंडल की गर्मी ग्रह की सतह को बुरी तरह से तपा देती है इसी प्रक्रिया को ग्रीनहाउस प्रभाव कहा जाता है। अनेक वैज्ञानिकों का मानना है कि शुक्र ग्रह पर कुछ ऐसा ही हुआ था।
 
समझा जाता है कि इस ग्रह पर कभी बड़े-बड़े समुद्र थे, जो भाप बनकर उड़ गए और गर्मी जल वाष्प में फंस गई। ऐसा होने पर ग्रह की सतह अत्यधिक गर्म हो जाती है। इस समय शुक्र का तापमान 427 सेल्सियस तक पहुंच जाता है। आवास योग्य क्षेत्र के अंदरुनी किनारे में होने के कारण वूल्फ 1061सी की भी शुक्र जैसी नियति हो सकती है।
 
इसके अलावा रिसर्चरों ने यह भी पता लगाया है कि इसकी कक्षा में बहुत तेजी से परिवर्तन होते हैं, जो एक अनियमित जलवायु की तरफ इशारा करते हैं। इसके बावजूद वहां जीवन होने की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता। 
 
केन का कहना है कि कक्षा में परिवर्तन की अल्प अवधि से ग्रह को ठंडा होने का मौका भी मिलता होगा। रिसर्चरों का खयाल है कि आने वाले वर्षों में जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप और अन्य शक्तिशाली दूरबीनों के उपलब्ध होने के बाद हम बाहरी ग्रहों के वायुमंडलों का बेहतर अध्ययन करने की स्थिति में होंगे। इसके बाद ही वहां जीवन की उपस्थिति का सही-सही अनुमान लगाया जा सकता है। 

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