जिंक सप्लिमेंट्स कोरोना को हराने में हो सकते हैं मददगार

Webdunia
शुक्रवार, 1 मई 2020 (11:45 IST)
डॉ. पुष्पेन्द्र अवधिया,

मानव शरीर के लिए जिंक अत्यावश्यक तत्व है। अब तक प्रकाशित रिसर्च अध्ययन इस ओर इशारा करते हैं कि जिंक सप्लिमेंट्स कोरोना वायरस को हराने में अतुलनीय रूप से मददगार हो सकते हैं। जिंक न सिर्फ कोरोना वायरस के गुणन को सीधे तौर पर रोक सकता है बल्कि यह प्रतिरक्षा तंत्र के हरेक पहलू के लिए अत्यावश्यक तत्व है।
जैसा की हम जानते हैं, इस संक्षिप्त लेख में हम उपरोक्त बिन्दुओं से जिंक के कोरिलेशन को देखेंगे। हम देखेंगे, किस प्रकार जिंक कोरोना से लड़ने में हमारा महत्वपूर्ण हथियार बन सकता है।

प्रतिरक्षा तंत्र और जिंक:
कोरोना इन्फेक्शन के दौरान बढे हुए साईटोकाईन्स, साइटोकाइन स्ट्रोम नाम कि कुख्यात इम्यून रेस्पोंस को जन्म दे सकते हैं (लांसेट, 28 मार्च 2020). जिंक कि कमी से शरीर में इन्फ्लामेशन बढ़ाने वाले साईटोकाईन्स IL-1b, IL-6 और TNF-a का उत्पादन बढ़ जाता है। जिंक कि कमी से वायरस के खिलाफ प्रतिरोध देने वाली कोशिकाओं हेल्पर T सेल का संख्यात्मक बैलेंस बिगड़ जाता है और नेचुरल किलर सेल्स (NK सेल्स) की कार्यक्षमता कम हो जाती है।

जिंक कि कमी से लगभग सभी प्रकार के लाभकारी इम्यून रेस्पोंस कम हो जाते हैं। शरीर में जिंक का पर्याप्त स्तर, प्रतिरक्षा तंत्र की धुरी मानी जाने वाली T और B लिम्फोसाईट कोशिकाओं के डेवलपमेंट और एक्टिवेशन के लिए जरुरी है। अध्ययन दिखाता है कि जिंक कि कमी से T और B कोशिकाओं के डेवलपमेंट और सर्वाइवल से जुड़े लगभग 1200 जीन्स नकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं। शरीर में जिंक कि कमी से एंटीबाडी के उत्पादन और एंटीबाडी उत्पादित करने वाली B कोशिकाओं, दोनों की कमी हो जाती है। जर्नल ऑफ़ इम्यूनोलॉजिकल रिसर्च में 2016 में प्रकाशित रिव्यु दिखाता है कि मानव शरीर में दोनों प्रकार के इम्यून रेस्पॉन्स यानी इंनेट इम्यून रेस्पॉन्स (हमेशा तैयार रहने वाली प्रतिरक्षा) और अडॉप्टिव इम्यून रेस्पॉन्स (संक्रमण के दौरान विकसित हुई प्रतिरक्षा) के लिए जिंक अत्यधिक महत्वपूर्ण तत्व है।

जिंक की कमी से हमारा प्रतिरक्षा तंत्र मंद पड जाता है। जिन लोगों में जिंक की कमी होती है उनमें तरह तरह के इन्फेक्शन अन्य लोगों की तुलना में ज्यादा रिपोर्ट किये गए हैं। जिंक सप्लिमेंटेशन विभिन्न तरीकों से लगभग हर स्तर पर प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत और क्रियाशील बनाता है। यह भी पाया गया है कि जिंक प्रतिरक्षी कोशिकाओं और एंटीबॉडी के निर्माण को सिग्नलिंग के माध्यम से प्रेरित करके कई पैथोजेन्स की म्यूकोसल एंट्री (म्यूकोसा- शरीर के भीतर की नम त्वचा, जैसे नाक औऱ आंत की म्यूकोसा) को रोक देता है। टीकों के असर पर भी जिंक की कमी का प्रभाव रिपोर्ट किया गया है। जिंक कि कमी से हेपेटाइटिस B के टीके का असर कम हो जाता है और यदि  हेपेटाइटिस B के टीके के साथ अगर जिंक सप्लिमेंट दिए जाते हैं तो हेपेटाइटिस B कि एंटीबाडी में उल्लेखनीय वृद्धि होती है। जिंक सप्लिमेंटेशन देने पर वायरस के खिलाफ शरीर द्वारा बनाये गए इंटरफेरॉन कि मात्रा बढती है।

अनेक अध्ययन यह दिखाते हैं कि अधेढ़ उम्र के बाद शरीर में जिंक कि कमी होती है। ऐसा मुख्यतः भोजन द्वारा जिंक के अवशोषण में कमी के कारण होता है। बायो मेड सेंट्रल में २००९ में प्रकाशित अध्ययन कहता है कि जिंक के स्तर में होने वाली मामूली कमी भी शरीर की प्रतिरोध क्षमता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। वृद्ध लोगों में ओरल जिंक देने पर प्रतिरोधक क्षमता में उल्लेखनीय सुधार और इन्फ्लामेटरी रेस्पोंस में कमी देखी गयी है।

जिंक और इसका वायरस रोधी प्रभाव
जिंक के वायरस रोधी प्रभाव को दर्शाने वाले कई अध्ययन प्रमुख रूप से कुछ RNA वायरस जैसे  कोरोना वायरस (SARS-COV), पोलियो वायरस, अर्टेरी वायरस और इन्फ्लुएंजा वायरस पर प्रदर्शित किये जा चुके हैं। अब तक उपलब्ध शोध के आधार पर यह स्पष्ट है कि जिंक दो प्रमुख तरीकों से वायरस के गुणन को रोकता है। एक तो संक्रमित होस्ट कोशिका में वायरस के जरुरी प्रोटीन्स की प्रोसेसिंग को रोककर, दूसरा RNA वायरस के जीनोम के गुणन को रोक कर। RNA वायरस जैसे कोरोना वायरस का गुणन एक प्रमुख एंजाइम, RNA डिपेंडेंट RNA पोलीमरेज (RdRp) पर निर्भर होता है, जो विभिन्न कोरोना वायरस में लगभग एकसमान (conserved) होता है। अध्ययन के दौरान यह पाया गया कि जिंक इसी एंजाइम की क्रियाशीलता को रोक देता है। इस प्रस्थापना को एक अन्य तथ्य से जोड़ा जा सकता है।

एक रिपोर्ट के अनुसार विश्वभर में हर साल निम्न और मध्यम आय वर्ग के परिवारों के लगभग 10 लाख बच्चे लोअर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन के कारण मारे जाते हैं। 2009 की WHO की रिपोर्ट कहती है की इन मौतों में से 13% मौतें का एक कारण जिंक कमी हो सकता है। 1318 बच्चों में किया गया अध्ययन यह दिखाता है कि जिंक सप्लीमेंट देने से न्यूमोनिया से सम्बद्ध मृत्युदर में कमी आती है। कोरोना वायरस भी निचले श्वसन तंत्र (लोअर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट) को प्रभावित करते हैं। हालांकि जिंक का प्रयोग वायरस के मेडिकल उपचार के तौर पर अभी तक नहीं किया जाता।

शरीर में जिंक की कमी के कारक:
शराब का सेवन जिंक की कमी का प्रमुख कारण बनता है। शराब और विभिन्न दवाइयों के कारण उत्पन्न बहुमुत्रलता (बार बार पेशाब आना) शरीर में जिंक का लेवल घटा देता है। कुछ दवाइयों जैसे क्विनोलोन एंटीबायोटिक्स (जैसे नोरफ़्लोक्सासिन, लिवोफ्लोक्सासिन आदि), DTPA, सोडियम वेलप्रोएट, लंबे समय तक डाई यूरेटिक दवाइयों का सेवन शरीर में जिंक की कमी का कारण बनते हैं। भोजन या सप्लिमेंट में कैल्शियम फॉस्फेट की उपस्थिति जिंक के अवषोषण को कम कर देती है।

65 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों में जिंक की कमी पाई जाती है। उम्र बढ़ने के साथ साथ शरीर में जिंक का अवशोषण कम होता जाता है। अनाज और दलहन पर निर्भर रहने वाले शाकाहारी लोगों में (भोजन में जिंक के स्त्रोत) अन्य लोगों की तुलना में जिंक की रेक्विरेमेंट 50% तक ज्यादा होती है। यानी इन लोगों को RDA से 50% ज्यादा जिंक लेने की अनुशंषा की जाती है क्योंकि अनाज और दलहन में उपस्थित फाइटेट नामक फॉस्फोरस यौगिक भोजन में उपस्थित जिंक का अवशोषण रोक देता है। जिंक के अवशोषण के लिए भोजन में प्रोटीन कि पर्याप्त मात्रा होनी चाहिये।

जिंक सप्लिमेंट्स और जिंक की दैनिक अनुशंषित मात्रा:
सप्लीमेंट के रूप में जिंक बहुत से ब्रांड और फार्मुलेशन में उपलब्ध है। जिंक सल्फेट, जिंक एसिटेट, जिंक ग्लूकोनेट, जिंक पिकॉलिनेट आदि घुलनशील रूपों में जिंक, सप्लीमेंट्स में मिलाया जाता है। जिंक के सप्लिमेंट्स सर्व सुलभ हैं और अत्यंत सस्ते हैं। स्वस्थ व्यक्ति के लिए जिंक के सामान्य दैनिक उपभोग की मात्रा वयस्कों के लिए 11 मिलीग्राम प्रतिदिन (पुरुष) और 8 मिलीग्राम प्रतिदिन (महिला) तय की गयी है। गर्भकाल और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिये यह मात्रा 12 मिलीग्राम प्रतिदिन तय की गयी है।

जिंक सप्लिमेंट लेते वक्त सावधानियों की भी जरुरत है।
जिंक सप्लिमेंटेशन के कारण शरीर में ग्लूकोज लेवल कम हो जाता है इसलिये डायबिटीज के रोगी ब्लड शुगर की दवाई के साथ जिंक सप्लीमेंट के प्रयोग से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर लें। जिंक की अधिकता से भी इम्यून सिस्टम के कुछ घटक नकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं। साथ में देने पर जिंक कुछ दवाइयों का असर कम कर सकता है, जैसे Atazanavir, Ritonavir आदि। इससे बचने के लिये इन दवाइयों और जिंक सप्लीमेंट के बीच कम से कम 2 घंटे का अंतर रखा जाना चाहिए।

ऐसा पाया गया है की ढाई महीने तक रोज 50 मिलीग्राम जिंक यदि सप्लिमेंट के रूप में लिया जाता है तो शरीर में कॉपर की कमी के लक्षण दिखने लगते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए जिंक के सामान्य दैनिक सप्लीमेंट की उच्चतम मात्रा 40 मिलीग्राम (वयस्कों के लिए), US फ़ूड एंड न्यूट्रिशन बोर्ड द्वारा निर्धारित की गयी है। जिंक के कंपाउंड नाक में जाने पर न ठीक होने वाली गंध हीनता का कारण बनते हैं। इसलिये जिंक के कंपाउंड, स्प्रे आदि कभी भी नेजल रुट से नहीं देने चाहिए। वैसे भी किसी भी हेल्थ सप्लिमेंट को लेने से पहले अपने डाक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिये।

अंत में: भारत जैसे देशों में जहां अधिसंख्यक जनता के लिये पर्याप्त पोषण नहीं मिलता, शरीर में जिंक की कमी सामान्य बात है। दुनिया भर में साढ़े चार लाख से ज्यादा बच्चे (जिनकी उम्र 5 वर्ष से कम होती है) पोषण में जिंक की कमी से उत्पन्न जनलेवा इन्फेक्शन के कारण मारे जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ 2004 से ही बच्चों के डायरिया के क्लीनिकल मैनेजमेंट और मृत्युदर रोकने हेतु प्रतिदिन 10-20 मिलीग्राम जिंक सप्लिमेंटेशन की अनुशंषा करता है। भारत में आंगनवाड़ियों के माध्यम से जिंक की गोलियां बांटने का अभियान चलाया जाता रहा है।

जिंक का स्थापित इम्युनोलॉजिकल रोल, वृधावस्था में होने वाली इसकी कमी, आर्थिक स्थिति और शाकाहारी भोजन से इसकी कमी का अन्तर्सम्बंध और कोरोना वायरस के अन्य स्ट्रेन (SARS-COV) पर किये गए शोध कार्य के परिणाम कोविड-19 पर जिंक सप्लिमेंटेशन के क्लिनिकल ट्रायल के लिए पर्याप्त आधार प्रदान करते हैं। WHO और ICMR को इस ओर जरूर ध्यान देना चाहिए।

भोजन में जिंक के स्त्रोत:
मांसाहारी भोजन (लगभग 2-10 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम मांस) और अण्डे जिंक के प्रचुर स्त्रोत हैं। दो अंडे में लगभग 1.2 मिलीग्राम जिंक हो सकता है। 6 ओएस्टर में लगभग 27-50 मिलीग्राम तक जिंक हो सकता है।

250 ml दूध में लगभग 1 मिलीग्राम जिंक हो सकता है। इतना ही जिंक लगभग 150 ग्राम चना या बीन्स में हो सकता है। इतने ही भुने हुए सोयाबीन में लगभग 2 मिलीग्राम जिंक हो सकता है। 200 ग्राम दही (पानी निकला हुआ) में 1.5 - 2.2 मिलीग्राम जिंक हो सकता है। 120 ग्राम टोफू या पनीर ने 1.1 मिलीग्राम जिंक हो सकता है।

सामान्य तौर पर उगाए गए गेहूं में प्रति100 ग्राम, 2.6 मिलीग्राम जिंक हो सकता है। औसतन मिलेट्स (ज्वार, बाजरा, रागी अदि) में भी इतना ही जिंक पाया जाता है। अगर खेत में जिंक प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है या माइक्रोन्यूट्रिएन्ट खाद के तौर पर डाला गया है तो प्रति 100 ग्राम गेहूं 5 मिलीग्राम तक जिंक हो सकता है।
मानव शरीर में जिंक के विभिन्न रोल हैं, और कई अभी भी खोजे जा रहे हैं।

जिंक के विषय में हमारी जानकारी अपेक्षाकृत नई है और अभी भी विभिन्न स्तरों पर खोजें जारी है. मानव शरीर की जैविक क्रियाओं के लिए जिंक अति महत्वपूर्ण तत्व है। वैसे जिंक शारीरिक विकास, प्रतिरक्षा तंत्र, और न्यूरोन्स की क्रियाविधि के लिए जरुरी तत्व है। मानव शरीर के लगभग 300 ज्ञात प्रोटीन्स ऐसे हैं जिनकी क्रियाशीलता जिंक पर निर्भर है। कंप्यूटर मॉडलिंग के आधार पर इन प्रोटीन्स संख्या 3000 के आसपास होने कि संभावना व्यक्त की जा रही है।

जिंक, कोशिका की गतिविधि को जेनेटिक लेवल कण्ट्रोल करने के लिए ट्रांसक्रिप्शन फैक्टर्स और कोशिकीय सूचनाओं के संदेशवाहक प्रोटीन्स का हिस्सा बनता है। इन प्रोटीन्स में जिंक को स्थान देने के लिए खास प्रकार कि संरचना पाई जाती है जिसे जिंक फिंगर कहा जाता है। इन जिंक फिंगर प्रोटीन्स के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की ये प्रोटीन्स एस्ट्रोजन, थयरोइड हार्मोन, विटामिन A और D के बॉन्डिंग और रेस्पॉन्स के लिए जरूरी होते हैं। जिंक की कमी से विटामिन A की कमी होने की संभावना बढ़ जाती है। क्योंकि जिंक उस प्रोटीन का हिस्सा है जो विटामिन A का रक्त में परिवहन करता है। जिंक उस एंजाइम का भी हिस्सा है जो विटामिन A से रेटिनॉल और रहोडोप्सिन (आँखों के प्रकाश ग्राही) का निर्माण करता है, जिससे हमें देखने की क्षमता प्राप्त होती है। इसप्रकार जिंक की कमी रतौंधी से भी जुड़ी हुई है। विटामिन B9 यानी फोलेट का अवशोषण भी एक जिंक आधारित एंजाइम पर निर्भर करता है।

यह स्थापित हो चुका है जिंक की सामान्य कमी ही कई प्रकार की शारीरिक असामान्यताओं और रोगों का कारण बनती है, परन्तु शरीर में जिंक का स्तर देखने के लिए अब तक कोई विश्वसनीय विधि नहीं बन पाई है। रक्त में जिंक का सामान्य स्तर कितना होना चाहिये इस पर भी अभी एकराय नहीं है. सामायतः जिंक रक्त में सर्कुलेट होने कि जगह कोशिका के भीतर अपना स्थान पाता है. टारगेट प्रोटीन्स इसे शीघ्रता से ग्रहण कर लेते हैं. जिंक का कार्य स्थल और स्टोर हाउस कोशिका और उसके भीतर के कोशिकांग होते हैं, जिसे आवश्यकता पड़ने पर कोशिका के भीतर से फिर से रिलीज़ कर दिया जाता है। आवश्यकता से अधिक होने पर और सामान्य रूप से भी जिंक हमारे शरीर से नियमित रूप से मल मूत्र द्वारा उत्सर्जित होता रहता है अर्थात शरीर में इसका लेवल बनाये रखने के लिए भोजन य सप्लिमेंट के माध्यम से जिंक का इन्टेक जरुरी है।
(लेखक देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर में माइक्रोबायोलॉजी के शोधार्थी हैं)

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