जिन लोगों के राहु-केतु कष्टकारी हैं अथवा जिनकी राहु की महादशा चल रही है, उनके लिए नागपंचमी का पूजन सर्वकष्ट निवारण हेतु अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
पंचमी तिथि का शुभ मुहूर्त-
सावन शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागदेव का पूजन करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।
नागपंचमी 2020 : 25 जुलाई
पूजा मुहूर्त- 5.43 से 8.25 (25 जुलाई 2020)
पंचमी तिथि प्रारंभ- 14.33 (24 जुलाई 2020)
पंचमी तिथि समाप्ति- 12.01 (25 जुलाई 2020)
नाग जहां भगवान शिव के गले के हार हैं, वहीं भगवान विष्णु की शैया भी। लोकजीवन में भी लोगों का नागों से गहरा नाता है। इन्हीं कारणों से नाग की देवता के रूप में पूजा की जाती है। सावन मास के आराध्य देव भगवान शिव माने जाते हैं, साथ ही यह समय वर्षा ऋतु का भी होता है जिसमें माना जाता है कि भूगर्भ से नाग निकलकर भूतल पर आ जाते हैं। वे किसी अहित का कारण न बने, इसके लिए भी नाग देवता को प्रसन्न करने के लिए नागपंचमी की पूजा की जाती है।
नागपंचमी, सावन माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है। इस वर्ष यह पर्व आज शनिवार को हस्त नक्षत्र के प्रथम चरण के दुर्लभ योग में है। इस योग में कालसर्प योग की शांति हेतु पूजन का विशेष महत्व शास्त्रों में वर्णित है। नागों को अपने जटाजूट तथा गले में धारण करने के कारण ही भगवान शिव को काल का देवता कहा गया है।
अमृत सहित नवरत्नों की प्राप्ति के लिए देव-दानवों ने जब समुद्र मंथन किया था, तो जगत कल्याण के लिए वासुकि नाग ने मथानी की रस्सी के रूप में काम किया था। हिन्दू धर्म में नागदेव का अपना विशेष स्थान है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन नाग जाति की उत्पत्ति हुई थी।
महाभारत की एक कथा के अनुसार जब महाराजा परीक्षित को उनका पुत्र जन्मेजय तक्षक नाग के काटने से नहीं बचा सका तो जन्मेजय ने विशाल सर्पयज्ञ कर यज्ञाग्नि में भस्म होने के लिए तक्षक को आने पर विवश कर दिया।
नागपंचमी को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। इस दिन कही और सुनी जाने वाली एक प्रचलित कथा इस प्रकार है-
अन्य पौराणिक कथा के अनुसार एक समय में एक सेठ हुआ करते थे। उनके 7 बेटे थे। सातों की शादी हो चुकी थी। सबसे छोटे बेटे की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी, लेकिन उसका कोई भाई नहीं था।
एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को चलने को कहा। इस पर बाकी सभी बहुएं उनके साथ चली गईं और डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगीं, तभी वहां एक नाग निकला। इससे डरकर बड़ी बहू ने उसे खुरपी से मारना शुरू कर दिया। इस पर छोटी बहू ने उसे रोका। इस पर बड़ी बहू ने सांप को छोड़ दिया। वह नाग पास ही में जा बैठा। छोटी बहू उसे यह कहकर चली गई कि हम अभी लौटते हैं, तुम जाना मत। लेकिन वह काम में व्यस्त हो गई और नाग को कही अपनी बात को भूल गई।
अगले दिन उसे अपनी बात याद आई। वह भागी-भागी उस ओर गई, नाग वहीं बैठा था। छोटी बहू ने नाग को देखकर कहा- 'सर्प भैया नमस्कार!'
नाग ने कहा- 'तूने भैया कहा तो तुझे माफ करता हूं, नहीं तो झूठ बोलने के अपराध में अभी डस लेता।' छोटी बहू ने उससे माफी मांगी तो सांप ने उसे अपनी बहन बना लिया।
कुछ दिन बाद वह सांप इंसानी रूप लेकर छोटी बहू के घर पहुंचा और बोला कि 'मेरी बहन को भेज दो।'
सबने कहा कि 'इसके तो कोई भाई नहीं था', तो वह बोला- 'मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूं, बचपन में ही बाहर चला गया था।' उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी बहू को उसके साथ भेज दिया।
रास्ते में नाग ने छोटी बहू को बताया कि वह वही नाग है और उसे डरने की जरूरत नहीं। जहां चला न जाए मेरी पूंछ पकड़ लेना।
बहन ने भाई की बात मानी और वे जहां पहुंचे वह सांप का घर था। वहां धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई।
एक दिन भूलवश छोटी बहू ने नाग को ठंडे की जगह गर्म दूध दे दिया। इससे उसका मुंह जल गया। इस पर सांप की मां बहुत गुस्सा हुई। तब सांप को लगा कि बहन को घर भेज देना चाहिए। इस पर उसे सोना, चांदी और खूब सामान देकर घर भेज दिया गया।
सांप ने छोटी बहू को हीरे-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था। उसकी प्रशंसा खूब फैल गई और रानी ने भी सुनी। रानी ने राजा से उस हार की मांग की। राजा के मंत्रियों ने छोटी बहू से हार लाकर रानी को दे दिया।
छोटी बहू ने मन ही मन अपने भाई को याद किया और कहा- 'भाई, रानी ने हार छीन लिया, तुम ऐसा करो कि जब रानी हार पहने तो वह सांप बन जाए और जब लौटा दे तो फिर से हीरे और मणियों का हो जाए।' सांप ने वैसा ही किया।
रानी से हार वापस तो मिल गया, लेकिन बड़ी बहू ने उसके पति के कान भर दिए। पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर पूछा- 'यह धन तुझे कौन देता है?' छोटी बहू ने सांप को याद किया और वह प्रकट हो गया। इसके बाद छोटी बहू के पति ने नाग देवता का सत्कार किया। उसी दिन से नागपंचमी पर स्त्रियां नाग को भाई मानकर उसकी पूजा करती हैं।
पूजन विधि:-
नागपंचमी पर सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर सबसे पहले भगवान शंकर का ध्यान करें। इसके बाद नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा (सोने, चांदी या तांबे से निर्मित) के सामने यह मंत्र बोलें-
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपाल धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।
इसके बाद व्रत-उपवास एवं पूजा-उपासना का संकल्प लें। नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा को दूध से स्नान करवाएं। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर गंध, पुष्प, धूप, दीप से पूजन करें तथा सफेद मिठाई का भोग लगाएं। सफेद कमल का फूल पूजा में रखें और यह प्रार्थना करें-