गरम रहेगा संसद का शीतकालीन सत्र

सोमवार, 12 नवंबर 2007 (10:09 IST)
भारत-अमेरिकी परमाणु समझौते पर प्रधानमंत्री के वामदलों को चर्चा के लिए मना लेने और अमेरिकी लॉबी के प्रयासों के बीच भाजपा के भी संयुक्त संसदीय समिति की माँग से पीछे हट जाने के बावजूद संसद के शीतकालीन सत्र का तापमान सामान्य से ज्यादा रहने के पर्याप्त आसार हैं। सत्र 15 नवंबर से शुरू होकर सात दिसंबर तक चलेगा।

भले ही परमाणु करार पर बहस इस बार हो जाए, परंतु ऐसे कई मुद्दे हैं, जिनसे निकलने वाली राजनीतिक ऊर्जा माहौल को गरमा सकती है। पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में जारी धारावाहिक हिंसा के बारे में वहाँ के राज्यपाल की तीखी टिप्पणी, उस पर वामदलों का लाल होना और तृणमूल नेत्री ममता बनर्जी के लोकसभा से इस्तीफा देने की घोषणा में घमासान का पर्याप्त मसाला है।

यह सत्र गुजरात और हिमाचलप्रदेश विधानसभा के चुनाव के साए में होने जा रहा है। इस कारण तहलका का स्टिंग ऑपरेशन सदन को सांप्रदायिक और धर्मनिरपेक्ष राजनीति के धरातल पर ला सकता है। इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस और भाजपा के बीच मुख्य मुकाबला है।

उधर मायावती द्वारा महाराष्ट्र के मकोका की तर्ज पर यूपीकोका लाने के ऐलान को समाजवादी पार्टी अपने खिलाफ षड्‍यंत्र बता चुकी है। इन मुद्दों में काफी राजनीतिक गरमी छिपी है।

संसद सत्र के शुरू होते ही परमाणु समझौते पर प्रधानमंत्री द्वारा पिछले सत्र में दिए गए बयान पर चर्चा प्रारंभ होगी। प्रधानमंत्री ने वामदलों को इसके लिए मना लिया है।

उधर भाजपा ने भी कह दिया है कि वह पिछले सत्र की तरह इस विषय पर संयुक्त संसदीय समिति बनाने या मत विभाजन के नियमों के तहत चर्चा कराने पर जोर नहीं देगी।

तब भी यह नहीं माना जा सकता है कि करार पर संसद में बहस के दौरान सरकार वामदलों की चिंताओं को पूरी तरह समाप्त करने में सफल होगी।

तमाम अमेरिकी दबावों के बावजूद गुजरात और हिमाचल चुनावों के कारण भाजपा भी फिलहाल सरकार को कोई रियायत नहीं देना चाहेगी। भाजपा पहले ही घोषणा कर चुकी है कि वह समझौते को नए सिरे से किए जाने के पक्ष में है।

शीतकालीन सत्र में परमाणु मुद्दे पर बहस के दौरान यह बात जरूर साफ हो जाएगी कि मध्यावधि चुनाव कितने पास या दूर हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि द्वारा लिट्टे के उग्रवादी तमिलसेल्वन के स्तुतिगान पर भी इस बार संसद में द्रमुक और अन्नाद्रमुक सदस्यों के बीच घमासान होने के आसार हैं।

उधर बढ़ती महँगाई, धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाने और किसानों की समस्याओं को लेकर सरकार को वामदलों तीसरे मोर्चे और राजग तीनों के तीखों प्रहारों का सामना करना होगा।

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