प्रख्यात ब्रिटिश साहित्यकार रूडयार्ड किपलिंग के आख्यान पात्र मोगली के जरिए प्रकृति के साथ मनुष्य के निश्छल साहचर्य की कथा से मध्यप्रदेश के सिवनी को अपार ख्याति मिली है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि बुंदेले हरबोलों का यशोगान करने वाली गाँधीवादी कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान ने मुर्गी के एक चूजे को बचाने के लिए इसी सुरम्य धरा पर अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था।
सिवनी से करीब 20 किमी दूर नागपुर मार्ग पर उँघता सा कलबोड़ी गाँव मोगलीलैड के रूप में प्रसिद्ध पेंच राष्ट्रीय उद्यान की तरफ भागते तेज रफ्तार वाहनों में बैठे सैलानियों के जेहन में शायद कभी नहीं आता और उस गाँव की हवा में तैर रहे 'बुंदेले हरबोलों' के गान के वह आखिरी स्वर भी वाहनों की चिल्लपों के मारे उनके कानों तक नहीं पहुँचते।
फिर वहाँ सड़क पर बने उस स्मारक की किसे परवाह थी, जिसमें 'खूब लड़ी मर्दानी' का यशोगान करने वाली सुभद्राकुमारी अपने जीवन के अंतिम क्षण में अपना स्मारक खुद ही हो गई।
एक खपरैल मकान के ठीक सामने बने छोटे से स्मारक के पट्ट पर 1857 की गदर का वीरगान करने वाली महात्मा गाँधी की परम अनुयायी सुभद्रा कुमारी चौहान की वात्सल्य कथा उत्कीर्ण है।
उसमें दर्ज विवरण के अनुसार आजादी के उषाकाल में 15 फरवरी 1948 को सड़क यात्रा के दौरान कलबोड़ी गाँव में मुर्गी का एक चूजा सुभद्राकुमारी की कार के आगे आ गया।
उसे कार की चपेट में आता देख उनका ममत्व हिलोरें मारने लगा और किसी भी सूरत में उसको बचाने के उनके आग्रह की वजह से कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई और इस प्रकार भारत की प्रथम महिला सत्याग्रही सुभद्रा ने एक नन्हें से प्राणी की खातिर प्राणोत्सर्ग कर दिया।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी। दिखा गई पथ सिखा गई, सबको सीख सिखानी थी।
उनकी स्मारक शिला पर अंकित उनकी की यह पंक्तियाँ शायद नियति ने उनकी उत्सर्गगाथा के लिए ही सजाई होंगी।