1984 सिख विरोधी दंगे : सड़कों पर मचा था हिंसा का तांडव, कत्लेआम, जानिए क्यों हुआ था नरसंहार

सोमवार, 17 दिसंबर 2018 (12:44 IST)
आजादी के बाद देश के सबसे बड़े इस नरसंहार सिख विरोधी दंगे (हालांकि अमेरिका ने हाल ही में इन सिखों की मौत को नरसंहार मानने से इंकार कर दिया है) में दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला आया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने 1984 सिख विरोधी दंगों के मामले में सज्जन कुमार पर निचली अदालत का फैसला पलट दिया है। सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। 34 वर्षों के बाद यह फैसला आया है। अदालत ने कांग्रेस के पूर्व पार्षद बलवान खोखर, सेवानिवृत्त नौसेना अधिकारी भागमल, गिरधारी लाल, पूर्व विधायक महेंद्र यादव और कृष्ण खोखर की दोषसिद्धि भी बरकरार रखी।
 
सज्जन कुमार को 31 दिसंबर तक सरेंडर करना होगा। उम्रकैद के अलावा सज्जन कुमार पर 5 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है। सज्जन कुमार को हत्या, साजिश, दंगा भड़काने और भड़काऊ भाषण देने का दोषी पाया गया है। जानिए क्यों भड़की थी सिखों के खिलाफ हिंसा-
 
31 अक्टूबर 1984 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों द्वारा हत्या किए जाने के बाद देशभर में भड़के सिख विरोधी दंगों में हजारों निर्दोष सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया था। कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर के साथ इस मामले में कांग्रेस के एक और वरिष्ठ नेता सज्जन कुमार आरोपी हैं। इंदिरा गांधी के हत्यारे अंगरक्षकों बेअंतसिंह, सतवंतसिंह और एक अन्य (केहरसिंह) को फांसी पर लटका दिया गया था।
 
इंदिरा गांधी की मौत के बाद उनके बेटे राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने। राजीव गांधी ने सिख विरोधी दंगों को लेकर विवादित बयान भी दिया था। राजीव गांधी ने कहा था कि 'जब एक बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है।'
 
खबरों के अनुसार देश में करीब 10 हजार सिखों का बेरहमी से कत्ल कर दिया गया था जिनमें 2,500 से ज्यादा सिख तो देश की राजधानी दिल्ली में ही मारे गए थे। एक आंकड़े के अनुसार अकेले दिल्ली में करीब 3,000 सिख बच्चों, महिलाओं और बड़ों को मौत के घाट उतार दिया गया था।
 
दिल्ली में खासकर मध्यम और उच्च मध्यमवर्गीय सिख इलाकों को योजनाबद्ध तरीके से निशाना बनाया गया था। दिल्ली के लाजपत नगर, जंगपुरा, डिफेंस कॉलोनी, फ्रेंड्‍स कॉलोनी, महारानी बाग, पटेल नगर, सफदरजंग एनक्लेव, पंजाबी बाग आदि कॉलोनियों में हिंसा का तांडव रचा गया। गुरुद्वारों, दुकानों, घरों को लूट लिया गया और उसके बाद उन्हें आग के हवाले कर दिया गया था।
 
मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों में भी हिंसा हुई। जिन राज्यों में हिंसा भड़की वहां ज्यादातर में कांग्रेस की सरकारें थीं। युवक, वृद्ध, महिलाओं पर ट्रेन, बस और अन्य स्थानों पर खुलेआम हमले किए गए। पुलिस सिर्फ तमाशबीन बनी रही। कई मामलों में तो ये भी आरोप हैं कि पुलिस ने खुद दंगाइयों की मदद की थी।

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