पहाड़ की चोटियों को अपने कदमों से नापने वाली 24 वर्षीय सविता कंसवाल पहाड़ की गोद में ही समा गई...

शनिवार, 8 अक्टूबर 2022 (20:09 IST)
  • उत्तरकाशी हिमस्खलन में पर्वतारोहण ट्रेनर सविता कंसवाल की गई जान।
  • सबसे कम समय 15 दिन में एवरेस्ट फतह करने का रिकॉर्ड बनाया था।
  • 2022 में 12 मई को माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा लहराया था।
  • 28 मई को माउंट मकालू चोटी को भी फतह किया था। 
  • गरीब परिवार की सविता ने एडवांस कोर्स करने के लिए 6000 रुपए की नौकरी की।
इस बात का किसी को भी अंदाजा नहीं था कि पहाड़ों की ऊंची-ऊंची चोटियों को अपने कदमों से नापने वाली 24 वर्षीय सविता कंसवाल एक दिन पहाड़ों की गोद में ही हमेशा के लिए सो जाएगी। उत्तरकाशी जिले में पिछले दिनों हुई हिमस्खलन की घटना में मरने वाले पर्वतारोहियों में उत्तराखंड निवासी ट्रेनर सविता भी शामिल थीं। इस हादसे में मृतकों की संख्‍या बढ़कर 26 हो गई। सविता ने कुछ समय पहले ही सबसे कम समय 15 दिन में एवरेस्ट फतह करने का रिकॉर्ड बनाया था।
 
नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (NIM) उत्तरकाशी से माउंट द्रौपदी का डांडा पर निकला ट्रेनी पर्वतारोही और ट्रेनर का करीब 40 सदस्यीय दल हिमस्खलन की चपेट में आ गया था। जान गंवाने वालों में सविता भी शामिल थीं। सविता हिमस्खलन का शिकार हुए दल की ट्रेनर थीं। उन्होंने बहुत ही कम समय में पर्वतारोहण के क्षेत्र में खुद को स्थापित कर लिया था। उनकी उत्तरकाशी जिले के भटवाड़ी ब्लॉक स्थित ग्राम लौंथरू निवासी सविता ने 2022 में 12 मई को माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा लहराया था। इसके कुछ समय बाद ही 28 मई को माउंट मकालू चोटी को भी फतह किया था। 
 
सविता ने 2021 में एवरेस्ट मैसिफ अभियान के तहत विश्व की चौथी सबसे ऊंची चोटी माउंट ल्होत्से (8516 मीटर) पर भी तिरंगा लहराया। वे ऐसा करने वाली दूसरी भारतीय महिला थीं। सविता को बचपन से ही एडवेंचर स्पोर्ट का शौक था। परिवार के विरोध के बावजूद वे एनसीसी कैडेट बनीं। 
 
संघर्षमय जीवन : साधारण किसान परिवार में जन्मी एवं चार बहनों में सबसे छोटी सविता का जीवन संघर्ष से भरा रहा। पिता राधेश्याम कंसवाल और मां कमलेश्वरी ने खेती-बाड़ी कर परिवार चलाया। उन्होंने उत्तरकाशी पर्वतारोहण संस्थान से पर्वतारोहण का बेसिक कोर्स किया। एडवांस कोर्स करने के लिए 6000 रुपए की नौकरी की। इसके बाद उन्होंने रेस्क्यू कोर्स के साथ पर्वतारोहण प्रशिक्षक का भी कोर्स किया। 2018 से वे उत्तरकाशी संस्था में ट्रेनर के रूप में कार्य कर रही थीं। 
हर कोई स्तब्ध : पर्वतारोहण के क्षेत्र में बेहद कम समय में नाम कमाने वाली 24 वर्षीय एवरेस्ट विजेता सविता कंसवाल की मौत से हर कोई स्तब्ध है। सविता बूढ़े मां-बाप का सबसे बड़ा सहारा थीं। सविता ने जब 15 दिन के भीतर इसी साल मई में एवरेस्ट फतह किया था तो मां ने फख्र से कहा था कि बेटी हो तो ऐसी। मां ने कहा था कि पहले तो मैं बोलती थी कि बहुत सारी बेटी हो गईं, लेकिन अब तो मैं बहुत खुश हूं।
 
हादसे के चौथे दिन जब मां को गांव में किसी ने सविता के दुनिया छोड़ने की खबर दी, तो मां का कलेजा सीने से उतर गया। बेटी के लिए कहे वो शब्द मां कमलेश्वरी के दिल में ही रह गए, जिस पर उसने कभी खुशियों की आस बांधी थी। पिता राधेश्याम कंसवाल भी बेटी के जाने के गम में आंसुओं के सैलाब से भर गए। 
 
सविता ने रोमांच और साहस की दुनिया में न सिर्फ नाम कमाया बल्कि मां-बाप को बेटी होने का गौरव भी महसूस कराया। बहनें भी अपनी लाड़ली बहन को खोकर मातम से अत्यधिक टूटी हुई थी। गांव की इस बेटी का बचपन आर्थिक तंगी में गुजरा। आज उसके न होने पर पूरा परिवार टूट गया है। सविता को डिडसारी पैतृक घाट पर जल समाधि दी गई।
Edited by : Vrijendra Singh Jhala (वेबुदनिया)

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