अहमदाबाद। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो की एक विशेष अदालत ने साल 2004 के इशरत जहां मुठभेड़ मामले में 3 पुलिसकर्मियों को बुधवार को आरोप मुक्त करते हुए कहा कि फर्जी मुठभेड़ का सवाल ही नहीं है और रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, प्रथमदृष्टया भी ऐसा कुछ नहीं है, जो बताए कि मारे गए चारों लोग आतंकवादी नहीं थे।
अदालत के विशेष न्यायाधीश वीआर रावल ने इशरत जहां मामले में पुलिस अधिकारियों जीएल सिंघल, तरुण बरोट (अब सेवानिवृत्त) और अनाजू चौधरी को आरोप मुक्त कर दिया। चौथे आवेदक जेजी परमार की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो चुकी है।
गौरतलब है कि अदालत के आदेश पर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने गुजरात सरकार के इन पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी थी, लेकिन राज्य सरकार से इसकी अनुमति नहीं मिलने के बाद अदालत ने इनके खिलाफ लगे हत्या, अपहरण और आपराधिक षड्यंत्र का मामला समाप्त कर दिया। इस मामले में इन आरोपों से मुक्त होने वाले तीनों अंतिम आरोपी हैं।
सीबीआई ने 2013 में दाखिल पहले आरोप पत्र में सात पुलिस अधिकारियों- पीपी पांडेय, डीजी वंजारा, एनके अमीन, सिंघल, बारोट, परमार और चौधरी को बतौर अभियुक्त नामजद किया था। हालांकि 2019 में सीबीआई की अदालत ने पुलिस अधिकारी वंजारा और अमीन के खिलाफ सुनवाई राज्य सरकार द्वारा अभियोजन मंजूरी नहीं देने पर वापस ले ली थी। इससे पहले 2018 में पूर्व पुलिस महानिदेशक पीपी पांडेय को भी मामले से मुक्त कर दिया गया था।
अदालत ने अपने आदेश में कहा, शीर्ष रैंक के पुलिस अधिकारी होने के नाते कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए कदम उठाना उनका कर्तव्य था। ऐसे पुलिस अधिकारियों द्वारा फर्जी मुठभेड़ का सवाल ही नहीं उठता। सभी पुलिस अधिकारियों को शांति बनाए रखने के लिए बहुत सावधान और सचेत रहना होता है।
आदेश में कहा गया है कि पुलिस अधिकारियों को चार पीड़ितों के संबंध में मिली सूचना सही और ठोस थी, सूचना में तथ्य थे। अदालत ने कहा, रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, पहली नजर में भी कुछ ऐसा नहीं है जो बताए कि वे आतंकवादी नहीं थे या आईबी की सूचना सही नहीं थी। अदालत ने कहा कि चारों सामान्य और सरल नहीं थे।
सीबीआई ने 20 मार्च को अदालत को सूचित किया था कि राज्य सरकार ने तीनों आरोपियों के खिलाफ अभियोग चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया है। अदालत ने अक्टूबर 2020 के आदेश में टिप्पणी की थी उन्होंने (आरोपी पुलिसकर्मियों) आधिकारिक कर्तव्य के तहत कार्य किया था, इसलिए एजेंसी को अभियोजन की मंजूरी लेने की जरूरत है।
उल्लेखनीय है कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-197 के तहत सरकारी कर्मचारी द्वारा ड्यूटी करने के दौरान किए गए कृत्य के मामले में अभियोग चलाने के लिए सरकार से मंजूरी लेनी होती है। उल्लेखनीय है कि 15 जून 2004 को मुंबई के नजदीक मुम्ब्रा की रहने वाली 19 वर्षीय इशरत जहां गुजरात पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में मारी गई थी। इस मुठभेड़ में जावेद शेख उर्फ प्रनेश पिल्लई, अमजद अली अकबर अली राणा और जीशान जौहर भी मारे गए थे।
पुलिस का दावा था कि मुठभेड़ में मारे गए चारों लोग आतंकवादी थे और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने की योजना बना रहे थे। हालांकि उच्च न्यायालय द्वारा गठित विशेष जांच टीम इस निष्कर्ष पर पहुंची की मुठभेड़ फर्जी थी, जिसके बाद सीबीआई ने कई पुलिसकर्मियों के खिलाफ मामला दर्ज किया।
पुलिस महानिरीक्षक सिंघल, सेवानिवृत्त अधिकारी बारोट एवं जेजी परमार और चौधरी ने अदालत के समक्ष आवेदन दाखिल कर उनके खिलाफ सुनवाई की प्रक्रिया खत्म करने का अनुरोध किया था क्योंकि उनके खिलाफ मामला चलाने के लिए मंजूरी की जरूरत है। मामले की सुनवाई के दौरान परमार की मौत हो गई थी।(भाषा