उन्होंने लिखा है कि जिस तरह चुनाव में धन का इस्तेमाल हो रहा है और राजनीति का अपराधीकरण बढ़ रहा है, उसे देखते हुए लग रहा है कि 2019 के चुनाव से अधिक पारदर्शी निष्पक्ष और मुक्त चुनाव भविष्य में नहीं हो सकता है। रिपोर्ट के अनुसार कुछ राज्यों में उम्मीदवारों ने 40 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए और औसतन प्रति मतदाता सात सौ रुपए खर्च हुए।