जम्मू। कश्मीर का आतंकवाद सुरक्षाबलों के लिए कितना महंगा और भारी साबित हो रहा है इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि 33 सालों के दौरान कुल 7700 सुरक्षाकर्मी शहादत पा चुके हैं जबकि गैर सरकारी आंकड़ा बताता है कि 10000 से अधिक सुरक्षाकर्मी शहीद हो चुके हैं। इनमें 1750 के करीब पुलिसकर्मी भी शामिल हैं, जबकि 1750 पुलिसकर्मियों में 500 के करीब पीएसओ अर्थात निजी अंगरक्षक भी शामिल हैं। इससे मुक्ति कब मिलेगी कोई नहीं जानता।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारतीय सेना इन 33 सालों के आतंकवाद के दौर में राज्य में छेड़े गए आतंकवाद विरोधी अभियानों में लगभग 4000 सैनिकों को खो चुकी है और इनमें प्रत्येक 25 सैनिकों के पीछे एक अधिकारी भी शामिल है।
राजनीतिक दलों के नेताओं, मंत्रियों के साथ तैनात पीएसओ आधुनिक हथियारों से भले लैस न हों, परंतु उनकी नौकरी का समय निर्धारित किया गया है। उनकी जिम्मेदारी संरक्षित व्यक्ति की रक्षा करना है। चाहे वह घर में हो या फिर किसी राजनीतिक कार्यक्रम में। वे हमेशा आतंकी हमलों का शिकार हो जाते हैं।