जानिए कौन हैं बेटी की शादी के निमंत्रण में एलसीडी लगाने वाले जनार्दन रेड्डी
बुधवार, 19 अक्टूबर 2016 (20:47 IST)
कर्नाटक के खदान उद्योगति और पूर्व भाजपा नेता गाली जनार्दन रेडडी अपनी बेटी की शादी के अनोखे निमंत्रण पत्र के कारण चर्चा में हैं। रेड्डी की बेटी की शादी का निमंत्रण सिर्फ एक कार्ड नहीं है, बल्कि इस शादी के निमंत्रण कार्ड में एक एलसीडी स्क्रीन लगा है। इस एलसीडी स्क्रीन में उनके परिवार का वीडियो चल रहा है। आइए, जानते हैं, कौन हैं ये अनोखा निमंत्रण पत्र बांटने वाले जनार्दन रेड्डी।
जनार्दन रेड्डी दक्षिण भारत में भारतीय जनता पार्टी के पहली सरकार के किंगमेकर थे, लेकिन सरकार बनते ही देश को पता चला कि वे किंगमेकर नहीं बल्कि असल किंग थे, कर्नाटक के बेल्लारी शहर के अहमभवि इलाके से तीन ताकतवर मंत्री इस सरकार में थे। खुद जनार्दन रेड्डी, उनके भाई करुणकर रेड्डी और उनके करीबी व्यापार साझेदार बी. श्रीरामुलु।
जनार्दन रेड्डी ने खुद ज्यादा पढ़ाई-लिखाई नहीं की थी। वे तेलुगुभाषी पुलिस कांस्टेबल चेंगा रेड्डी के तीन बेटों में सबसे बड़े थे, जो कर्नाटक से आंध्रप्रदेश आ बसे थे। तेलुगु के अलावा उन्हें कन्नड़ भाषा का ही ज्ञान था। अंग्रेजी न के बराबर आती थी। आंध्रप्रदेश से सटा कर्नाटक का बेल्लारी शहर साठ फीसदी तेलुगुभाषी है, लेकिन रेड्डी जो कारनामे करने वाले थे, उसमें ऊंची डिग्रियों या भाषा की विद्वता का कोई काम नहीं था।
उनमें बड़े सपने देखने और किसी भी कीमत पर उन्हें पूरा करने की जिद कूट-कूटकर भरी थी। रेड्डी का हमेशा से यकीन रहा कि दुनिया में हर चीज खरीदी जा सकती है। कम उम्र में जल्दी-जल्दी हासिल बेशुमार कारोबारी और सियासी कामयाबियों ने उनके यकीन को और पक्का बनाया। वे धूमकेतु की तरह अवतरित हुए थे। चिटफंड कारोबार से शुरुआत उन्हें करोड़ों के खेल में ले गई और इस खेल का अगला मैदान राजनीति का था।
जनार्दन रेड्डी ने जो ताकत कर्नाटक में हासिल की थी, उसके तार उनके मूल राज्य आंध्रप्रदेश तक फैले हुए थे। आंध्रप्रदेश के लोगों को तभी पहली बार पता चला कि रेड्डी बंधु चित्तूर जिले में एक शानदार शिव मंदिर के लिए भी मशहूर श्रीकालहस्ती के मूल निवासी हैं। उनका नाम इसके पहले कम लोग जानते थे।
बेल्लारी रेड्डी बंधुओंं के प्रताप से पहली दफा सुर्खियों में नहीं आया था। इस शहर का नाम देश ने 1999 के लोकसभा चुनाव में सुना था। तब सोनिया गांधी के खिलाफ सुषमा स्वराज चुनाव लड़ी थीं। लॉटरी के विज्ञापन में कहा जाता है कि किस्मत जब मेहरबान हो तो घर के दरवाजे खुद खटखटाती है। सुषमा तो यह चुनाव हार गईं मगर 32 साल के महत्वाकांक्षी युवा जनार्दन रेड्डी को अपनी पार्टी के कद्दावर नेता से नजदीकी गांठने के लिए बार-बार दिल्ली की परिक्रमाएं नहीं करनी पड़ीं। इस चुनाव के जरिए जैसे तकदीर खुद उनके घर की दहलीज पर जा पहुंची थी।
सुषमा स्वराज का दामन थामने में उन्होंने एक पल भी नहीं गंवाया। तब उनकी राजनीतिक हस्ती नाममात्र की थी। अगले 5 सालों में वक्त और सितारों की दशा तेजी से बदलने वाली थी। 2002 में उन्होंने ओबलापुरम में लौह अयस्क की बेशकीमती खदानें लीं। 2004 में चीन में अयस्क की बढ़ी मांग ने उनके कारोबार को रातोंरात आसमान पर पहुंचा दिया। हर दिन 7000 ट्रक ढोने में लगे। 7 साल से खनन कारोबार से जुड़े कई पुश्तैनी परिवार भी उनकी करामात देखकर दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर हो गए। विधानसभा के चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन जबरदस्त रहा। सरकार बनाने के लिए छ: विधायकों की कमी थी, मगर मुश्किल काम नहीं था। उन्हें किंगमेकर कहा ही इसलिए गया कि ये 6 विधायक उन्होंने भाजपा की झोली में ला पटके थे।
इसके बाद की कहानी दक्षिण भारत की किसी फिल्म की तरह ही भव्य है। येदियुरप्पा की सरकार में बेंगलुरु में दोनों भाइयों और उनके बिजनेस पार्टनर के मंत्री के रूप में शानदार शपथ ली। कीमती लौह अयस्क से मालामाल बेल्लारी की खदानों पर एकाधिकार। आंध्रप्रदेश के कांग्रेसी मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी से कारोबारी रिश्ते। निजी हेलीकॉप्टर। विदेशी कारें। महलनुमा घर। लालबत्ती की कार के साथ गाड़ियों के लंबे काफिले में खास यूनिफॉर्म में चमचों की फौज। तेजी से दिखाई दिए अगले दृश्यों में यह बेल्लारी के बेताज बादशाह के शाही अंदाज की एक मामूली-सी झलक थी।
किस्मत उन पर चारों दिशाओं से मेहरबान थी। अचानक आई बेहिसाब दौलत जैसा असर पैदा करती है वैसा ही हुआ। उनकी ताकत के आगे बेल्लारी के ज्यादातर पुराने खदान मालिक झुकने पर मजबूर हुए। खदानों से निकले लौह अयस्क में 70 फीसदी पर कब्जा करने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगा। चंद पुराने प्रभावी खदान मालिक ही रेड्डी के चंगुल से खुद को अलग और आजाद रख पाए।
(विजय मनोहर तिवारी की किताब 'भारत की खोज में मेरे पांच साल' से)