नरेंद्र मोदी ने जीता हिंदुस्तान का दिल...

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कहा जाता है कि सही शुरुआत से आधी जीत तो हो ही जाती है। आज भाजपा संसदीय दल की बैठक में नेता चुने जाते वक्त नरेंद्र मोदी ने निश्चित ही एक बेहतरीन शुरुआत की है। उन्होंने अपने भाषण और भाव दोनों के स्तर पर लोगों को गहरे तक प्रभावित कर दिया। वोटों के आधार पर तो वो जीत ही चुके हैं, अब उन्होंने लोगों के दिलों को जीतने की शुरुआत कर दी है।

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पहला प्रभाव - संसद की ड्योढ़ी को प्रणाम : संसद में प्रवेश से पहले जब नरेंद्र मोदी ने पूरी विनम्रता से झुक कर ड्योढ़ी को प्रणाम किया तो करोड़ों दिलों को जीत लिया। शरीर से वो झुक रहे थे और लोगों के दिलों में वो ऊपर उठ रहे थे। उनकी जीत पर किसी ने कहा था कि वृक्ष जितना फलदार होगा उतना ही नीचे झुकेगा और उन्होंने शुरुआत कर दी।
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संसद की दहलीज को ये प्रणाम केवल इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है कि उन्होंने विनम्रता दिखाई, बल्कि ये प्रणाम लोगों के दिलों को इसलिए छू गया क्योंकि ये भारत के संस्कार और संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। कोई भी कलाकार चाहे छोटा हो या बड़ा मंच को प्रणाम किए बगैर मंच पर नहीं जाता, प्रस्तुति नहीं देता। दूसरा संसद को हम लोकतंत्र का मंदिर कहते हैं। जहाँ कुछ सांसदों के क्रियाकलापों ने पिछले सालों में संसद की गरिमा घटाई है, सांसद बनने पर अहंकार के भाव को प्रदर्शित किया है, वहीं मोदी की ये विनम्रता लोकतंत्र के मंदिर में आस्था को बढ़ाने में मदद करेगी।

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दूसरा प्रभाव- आडवाणी जी को प्रणाम : तमाम कयासों और अटकलों के बावजूद, जब नरेंद्र मोदी के संसदीय दल के नेता के रूप में चयन की घोषणा हुई और लालकृष्ण आडवाणी ने उन्हें गुलदस्ता सौंपा तो उन्होंने आडवाणी जी को झुककर पूरी विनम्रता से चरण-स्पर्श किए। ये भाव मोदी का अपने अग्रज और गुरु के प्रति सम्मान तो दर्शाता ही है, उन्हें लोगों के दिलों में और गहराई से उतार देता है।

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तीसरा प्रभाव- माँ पर कैसी कृपा? : आडवाणी जी ने अपने भाषण में कहा कि ये जो जीत हमें मिली है उसके लिए नरेंद्र भाई ने हम पर बड़ी कृपा की है। नरेंद्र मोदी न तो इससे फूले समाए न गर्वित हुए बल्कि अपने भाषण में तुरंत इसका प्रतिकार किया। उन्होंने कहा कि आडवाणी जी आप इस शब्द का प्रयोग न करें। कृपा शब्द का। फिर उनका गला रुंध गया। वो रो पड़े। पानी पिया और ख़ुद को संभालते हुए बोले कि क्या कोई बेटा अपनी माँ पर कृपा कर सकता है? कतई नहीं... जैसे ये राष्ट्र मेरी माँ है वैसे ही भारतीय जनता पार्टी भी मेरी माँ है। और कोई बेटा अपनी माँ पर कृपा नहीं कर सकता। बेटा तो बस समर्पित भाव से माँ की सेवा कर सकता है।
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निश्चित ही ये भावुकता बहुत मायने रखती है। वो इसलिए कि एक नेता को जहाँ कठोर निर्णय लेने में सक्षम होना चाहिए वहीं उसके लिए संवेदनशील और भावुक होना बेहद जरूरी है। कोई अधिकारी अगर क्लर्क की तरह काम में जुटा है तो चल जाएगा, पर एक नेता के लिए तो भावप्रवण होना बहुत जरूरी है।

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चौथा प्रभाव- सबको याद किया, सबको श्रेय दिया : जहाँ एक ओर नरेंद्र मोदी ने पूरा चुनाव अभियान अपने इर्द-गिर्द ही केंद्रित रखा और 'अबकी बार मोदी सरकार' की बात की वहीं जीत का श्रेय लेने की बात आने पर उन्होंने सभी को श्रेय दिया और सभी को याद किया। उन्होंने कहा कि ये भारतीय जनता पार्टी की पाँच पीढ़ियों के अथक परिश्रम का परिणाम है। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को भी याद करते हुए कहा कि यदि वो भी उपस्थित होते तो सोने पर सुहागा होता।

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पाँचवा प्रभाव - आशावाद और सकारात्मक बात : नरेंद्र मोदी की ये पंक्तियाँ बेहद अहम हैं कि मैं घोर आशावादी आदमी हूँ। मुझे पता ही नहीं कि निराशा क्या होती है। मैं सपने देखता हूँ और उन्हें पूरा करने पर काम करता हूँ। उन्होंने श्रीराम कॉलेज के अपने भाषण में दिया उदाहरण दोहराया और कहा कि मैं हमेशा गिलास को भरा हुआ ही देखता हूँ अगर उसमें आधा गिलास पानी है तो भी वो आधा हवा से भरा हुआ है।
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ऐसा कहकर उन्होंने दरअसल नए चुने हुए सांसदों को काम के लिए प्रेरित किया, उनमें आशा का संचार किया। उन्हें पता था कि वो अपनी टीम से बात कर रहे हैं। वो टीम जो उनकी योजनाओं को क्रियान्वित करेगी। और इसमें भी उन्होंने सबसे आगे खड़े रहकर, एक सेनापति की तरह मोर्चा संभाला। उन्होंने कहा कि वो परिश्रम की पराकाष्ठा तक काम करेंगे। वो अपने लिए नहीं देश के लिए जिएँगे।

निश्चित ही नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने अब वोटों के साथ ही दिलों को जीतने का सिलसिला शुरू कर दिया है। अगर वो सब वो कर पाए जो वो कह रहे हैं तो वो देश ही नहीं दुनिया के इतिहास में एक महान नेता के रूप में स्थापित होंगे।

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