कृषि ऋणमाफी से इन किसानों को नहीं मिलेगी राहत, जानिए क्यों...

रविवार, 18 जून 2017 (11:37 IST)
नई दिल्ली। किसानों के देशव्यापी असंतोष से निबटने के लिए यदि राज्य सरकारें कृषि ऋणमाफी का रास्ता चुनती हैं तो सरकारी खजाने पर 3 लाख 10 हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ आएगा तथा सेठ-साहूकारों से कर्ज लेने वाले देश के 2 करोड़ 21 लाख सीमांत किसानों को इसका कोई फायदा नहीं मिलेगा।

सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र से जुड़े मुद्दों का अध्ययन करने वाली गैरसरकारी संस्था 'इंडियास्पेंड' की ताजा रिपोर्ट में यह बात कही गई है। इसके अनुसार उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र सरकारों के क्रमश 36,359 करोड़ और 30,000 करोड़ रुपए की ऋणमाफी घोषणा के साथ ही पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु, गुजरात, मध्यप्रदेश और कर्नाटक में भी किसानों ने कर्जमाफी की मांग तेज कर दी है। सरकारें अगर इस मांग को मान लेती हैं तो भी किसानों की समस्या का स्थायी समाधान नहीं होगा।

रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल किसान आबादी का 67.5 प्रतिशत छोटे सीमांत किसान हैं जिन्हें कर्जमाफी से कोई फायदा मिलने की उम्मीद नहीं है। देश की खेतिहर जमीन में से 85 फीसदी खेतों की जोत 2 हैक्टेयर से भी कम है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1951 के बाद से गांवों में प्रति व्यक्ति भूमि स्वामित्व में लगातार कमी आई है। आगे इसके और घटने के आसार हैं।

इन छोटे-छोटे खेतों में काम करने वाले किसानों की आर्थिक स्थिति इतनी बदहाल है कि वे खेती के लिए नए उपकरण नहीं खरीद पाते। उन्हें खेतों में श्रमिकों से ही काम चलाना पड़ता है। इससे एक तो उत्पादन घटता है, दूसरा लागत ज्यादा आती है और मुनाफा भी कम होता है। इन छोटे किसानों के लिए संस्थागत ऋण हासिल करने के अवसर सीमित रह जाते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार देश में हर 3 में से 1 सीमांत किसान ही संस्थागत ऋण हासिल कर पाता है, लिहाजा बाकी को कर्ज के लिए साहूकारों पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसे में जिन 8 राज्यों में कृषि ऋणमाफी की मांग उठी हैं वहां केवल 1 करोड़ 6 लाख सीमांत किसान ही लाभान्वित होंगे और बाकी इससे वंचित रह जाएंगे।

रिपोर्ट के अनुसार यदि कर्जमाफी की मौजूदा मांग पूरी की गई तो सरकारी खजाने पर कुल 3 लाख 10 हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ आ जाएगा। पहले से ही पूंजी संकट से जूझ रहे सार्वजनिक बैंकों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। किसानों के कर्जमाफी के चलन पर गहरी चिंता जताते हुए भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल पहले ही कह चुके हैं कि इससे वित्तीय घाटा और महंगाई में वृद्धि का खतरा बढ़ जाएगा।

उनका कहना है कि जब तक राज्यों के बजट में वित्तीय घाटा सहने की क्षमता नहीं आ जाती, तब तक उन्हें किसानों के ऋण माफ करने से बचना चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार यह आम धारणा भी सही नहीं है कि कर्ज माफ होने से किसान आत्महत्या करना बंद कर देंगे। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि 2007 में देशभर में कुल 16,379 किसानों ने आत्महत्या की थी जिसमें से महाराष्ट्र के 27 फीसदी किसान थे।

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की 2009 में कृषि ऋणमाफी घोषणा के बाद इन मामलों में गिरावट आई लेकिन यह साल 2015 में ये 34 फीसदी पर पहुंच गई। तेलंगाना का भी यही हाल रहा। साल 2014 में राज्य सरकार ने 17 हजार करोड़ रुपए का कृषि ऋण माफ करने की घोषणा की थी इसके बावजूद राज्य में 1,347 किसानों ने आत्महत्या की। यह संख्या 2015 में बढ़कर 1,400 पर पहुंच गई।

रिपोर्ट के अनुसार किसान की सबसे बड़ी समस्या सिर्फ कर्ज नहीं है। अधिक उत्पादन, उत्पादों का उचित मूल्य न मिल पाना, भंडारण और मंडियों तक पहुंच की पर्याप्त सुविधाओं का अभाव, बाजार के जोखिम और वैकल्पिक आजीविका का न होना भी इसके बड़े कारण हैं जिनके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर प्रभावी नीति बनाने की दरकार है। (वार्ता)

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