आमिर खान पर सोशल मीडिया में बहस गरम, आप भी कहें अपने मन की बात...

बुधवार, 25 नवंबर 2015 (12:02 IST)
आमिर खान द्वारा दिए गए एक बयान कि देश में बढ़ती असहिष्णुता से डर कर उनकी पत्नी देश छोड़ने की सोच रही थी पर लोगों ने सोशल मीडिया में जमकर भड़ास निकाली और अपनी राय रखी। जहां इस मुद्दे पर अधिकांश लोग आमिर खान के खिलाफ दिखे वहीं आमिर के समर्थन में भी आवाजें उठी। असहिष्णुता के मुद्दे पर बहस थमती नजर नहीं आती लेकिन हमने इकठ्ठा किए हैं ट्वीट, फेसबुक और व्हाट्सअप से कुछ चुनिंदा टिप्पणियां, आप भी पढें और इसपर अपनी प्रतिक्रिया दें।

ट्विटर पर अनेक लोगों ने आमिर की पत्नी किरण राव के देश छोड़ने के बयान की तुलना शहीद ले.कर्नल संतोष महादिक की पत्नी के अपने दोनों बच्चों को सेना में भेजने की तुलना से की है।  


वहीं आमिर के समर्थन में भी कई पोस्टर्स शेयर किए जा रहे हैं... 

 
 
भोपाल से भुवन गुप्ता ने अपनी फेसबुक वॉल पर इंदौर के संतोष कुमार मिश्रा की एक पोस्ट शेयर की है, जिसका शीर्षक है  :  तर्क v/s कुतर्क :-  तर्क के बालसुलभ सरल पाठ:
कुतर्क १. आमिर खान या शाहरुख खान फिल्मों में सफ़ल हैं, फिर वो कैसे कह सकते हैं कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है? 
तर्क: असहिष्णुता का अर्थ होता है दूसरों के विचारों को सहन न करना एवं इस कारण शारीरिक या वैचारिक हिंसा का सहारा लेना. इसका किसी की व्यावसायिक सफलता से लेना-देना नहीं है. "असहिष्णुता बढ़ रही है" कहने का यह अर्थ नहीं होता कि पूरा देश असहिष्णु हो गया है. इसका बस इतना अर्थ होता है कि देश में असहिष्णुता पहले से अधिक हो गयी है. यह सब अब हो रहा है. इन कलाकारों की सफलता का इससे पुराना और इतिहास है. अतः उनकी व्यावसायिक सफ़लता को हाल में हुई घटनाओं से नहीं जोड़ा जा सकता. यूं जो उनकी फिल्मों के बहिष्कार की अब बात कर रहे हैं वे असहिष्णुता का सबसे बड़ा प्रमाण खुद दे रहे हैं.
 
कुतर्क २. यदि आमिर या उनकी पत्नी को देश से इतनी ही समस्या है तो देश छोड़कर क्यों नहीं चले जाते? देश की आलोचना करना देशद्रोह है. 
तर्क: देश में किसी समस्या की शिकायत करना या उसका उल्लेख करना देश के प्रति ईमानदारी है. समस्या के चलते देश छोड़ने का विचार करना समस्या की गंभीरता की अभिव्यक्ति है. देश छोड़कर जाना या न जाना प्रत्येक मनुष्य का मौलिक अधिकार है. यह उसका निजी फैसला है. पूरी दुनिया में रोजी-रोटी या अच्छे अवसरों के लिए भारत देश छोड़कर जाने वाले लाखों लोग हैं जिनमे वे भी शामिल हैं जो नरेन्द्र मोदी की मेडिसन स्क्वायर की रैलियों में प्रधानमंत्री जी के लिए "मोदी-मोदी" चिल्लाते हैं. वे देश छोड़कर कबके चले गए, क्या वे गद्दार हैं? स्वयं हमारे प्रधानमंत्री ने विदेश जाकर देश के हालातों की आलोचना की और शंघाई में जाकर यह तक कह दिया कि प्रवासी भारतीयों को खुद को भारत में जन्मा बताने में शर्म महसूस होती है.
 
कुतर्क ३. यदि देश में इतनी ही असहिष्णुता है तो हम ज़िंदा क्यों हैं?
तर्क: अख़लाक़ ज़िंदा नहीं है. कालबुर्गी भी ज़िंदा नहीं हैं. आप चाहें तो अपनी बारी का इंतज़ार करें या फिर उन ताकतों से और उस असहिष्णुता से लड़ें जिसकी वजह से उनकी हत्या हुई. असहिष्णुता का मतलब अनेक स्तरों से होता है. जयपुर में कलाकृति को नष्ट करना, किताबों पर पूरे देश में प्रतिबन्ध लगाना या फिर जम्मू में हाइवे पर कश्मीरी ट्रक ड्राइवरों को जला देना, असहिष्णुता किसी भी हद तक जा सकती है. फैसला आपका है, आप किस हद तक प्रतीक्षा करना चाहते है।  
MUST READ : आमिर के बयान की निन्दा करते हुए एक कविता , अगले पन्ने पर... 


वहीं फेसबुक पर नरेश चावला ने आमिर के बयान की निन्दा करते हुए एक कविता पोस्ट की है : - 
शाहरुख़ खान के बाद अब आमिर खान ने "असहनशील भारत" का आरोप लगाया है। आमिर खान को जवाब देती हुई कवि कमल आग्नेय की आक्रोश पूर्ण नई रचना -
शाहरुख़ का मुँह बन्द हुआ था, फिर से आमिर बोल गया,
भारत से शीतल चन्दन पर, वो अपना विष घोल गया।
 
सत्यमेव के नायक का, जब कर्म घिनौना होता है,
इन पर लिखने से कविता, का स्तर बौना होता है।
 
पर तटस्थ रहना कब सीखा, दिनकर की संतानों ने,
भारत का ठेका ले रखा, बॉलीवुड के खानों ने।
 
श्री राम की पावन भूमि पर, जिनको डर लगता है,
'पाक-सीरिया-यमन' इन्हें, मनमानस का घर लगता है।
 
इनसे कह दो भारत में, खुशहाल मवेशी रहते हैं,
कश्मीरी पण्डित से ज्यादा बंग्लादेशी रहते हैं।
 
बचपन में खेले जिस पर, उस माटी से मतभेद किया,
जिस थाली में खाया आमिर, तुमने उसमे छेद किया।
 
भारत ही बस मौन रहा है, शिव जी के अपमान में,
पी. के. जैसी फ़िल्म बनाते यदि जो पाकिस्तान में।
 
जीवन रक्षा की खातिर, हाफिज को मना रहे होते,
अभिनेता न बन पाते, बस पंचर बना रहे होते।
 
जितना भारत से पाया, अब देते हुए लगान चलो,
बोरिया बिस्तर बाँधो आमिर, जल्दी पाकिस्तान चलो।
अगले पन्ने पर एक आम आदमी का पत्र आमिर खान के नाम.... 

इंदौर से संतोष कुमार मिश्रा ने व्हाट्सअप पर शेयर किया है :- 
डियर आमिर, 
कोई सिस्टम परफेक्ट नहीं होता है, उसे परफेक्ट बनाना होता है। कल आपने अपनी पत्नी किरण के साथ हुईं पर्सनल बातें शेयर कीं। हम-सब ऐसी बातें करते हैं, पर्सनल स्पेस में। लेकिन आपको पिछले कुछ सालों से नजदीक से देखा है। आप बहुत अच्छे ऐक्टर हैं। पार्ट टाइम ऐक्टिविस्ट भी हैं। लेकिन इनसे बढ़कर आप बाजार के बहुत अच्छे जानकार हैं। मुझे लगता है कि उन तमाम पसर्नल बातों में सिर्फ देश छोड़ने की बात को पब्लिक प्लेटफॉर्म पर लाने के पीछे आपका गणित होगा। या नहीं होगा। यह वक्त बताएगा।
 
खैर,कल जो आपने बातें कहीं, उनमें सारी सही थीं। मंशा भी सही लग रही थी, जब तक आप मौजूदा सिस्टम पर बात कर रहे थे।  हां, मुझे भी लगता है कि आज जो हालात हैं उनमें आपके सामने दो ही विकल्प हैं- या तो उनके मत को स्वीकार करें, हर बात वाह-वाह करें। या देशद्रोही, प्रेस्टिट्यूट,गाली-गलौज की हद-अनहद को झेलें। हम भी हर दिन झेलते हैं। पाकिस्तान जाने का ताना झेलते हैं। लेकिन देश छोड़ने की बात कह, आपने उड़ता हुआ तीर ले लिया। यह न सिर्फ आपके मंशा पर सवाल उठा गया बल्कि मेरे जैसे लोग भी अब आपके साथ नहीं हैं।
हम इस "रियल" आमिर खान के देश छोड़ने की बात का विरोध करते हैं। और रंग दे बसंती के "रील" आमिर खान की बात को मानते हैं जो देश को सीख देता है- "कोई भी सिस्टम परफेक्ट नहीं होता है। उसे हम-आप जैसे लोग परफेक्ट बनाते हैं।" परफेक्ट बनाएंगे भी। आप भी लड़िए। भागिए नहीं।
 
आपके एक बयान से उन उद्दंड ताकतों का कुछ नहीं होगा। वे थेथर हैं। वे अंधे हैं। 24 कैरट ऐंटि सोशल हैं। हां, ब्रैंड भारत जरूर प्रभावित होती है। वही ब्रैंड भारत जिसे आप बेचते हैं, इनक्रेडिबल इंडिया में। इन आरोपों के बीच कोई ब्रैंड कैसे बदनाम होता है इस कष्ट को हम बिहारी और करीब से महसूस करते हैं। ब्रैंड बिहार को लोगों ने गाली बना डाला। हमने इसे झेला। इससे लड़े। लेकिन न कभी बिहारी होने-कहलाने से शर्माए, न डरे। 
 
वैसे आमिर आपका धन्यवाद कि आपके इस बयान ने कुछ लोगों की हिपोक्रेसी को सामने लाया। हैरान करने वाली यह अलग बात कि कल तक राजनीतिक अंध-प्रतिबद्धता के कारण जो बिहार और जंगलराज को 24*7 जोड़कर उसे बदनाम करने में मजा लूटते थे, वे भी आपकी ओर से भारत और इनटॉलरेंस से जोड़ने पर विरोध कर रहे हैं। वे भी आपका विरोध कर रहे हैं जो चंद महीने पहले तक मोदीजी के उस भाषण के बाद अट्टहास मार कर हंसते थे जब वह विदेशी जमीं पर विदेशी लोगों के बीच डंके की चोट पर कहते थे कि उन्हें भारतीय कहने में शर्मिंदगी महसूस होती थी।
 
 
लेकिन आमिर, हमने न तब उनका सपॉर्ट किया, न आज आपका करूंगा। मेरी नजर में वह सबसे संकीर्ण और स्वार्थी लोग होते हैं जो राजनीति के कारण अपनी जमीन को नीचा दिखाने में मजा लूटते हैं।
लफंगों से कैसे लड़ा जाता है, यह आप बिहारियों से सीखिए। गिरिराज सिंह लोगों को देशभक्ति का कार्ड बांटते थे। गाय से लड़ाने आए। पाकिस्तान का टिकट देते थे। उनका पैकअप करवा दिया। गोबर लगा दिया। देखिये, किस तरह शांत होकर बैठ गये। पिछले साल पाकिस्तान में जाकर देश की बात करने वाले मणिशंकर अय्यर को कह दिया-आप वहीं रहें।
 
आप सही हैं। पिछले कुछ महीने में चीजें बदली हैं। गिरिराज सिंह, साध्वी निरंजन ज्योति, महेश शर्मा, आदित्यनाथ जैसे सरकार के अंदर लोग अपनी खूंखार मंशा दिखाते हैं तो डर लगता है। 
 
ब्रैंड भारत खतरे में दिखती है। लेकिन यह भागने से ठीक नहीं होगा। लड़ने से होगा। तर्क से होगा। गांधीगीरी से होगा। आप लफंगों की आवाज सुनकर डरते हैं लेकिन आपको उन लाखों लोगों की खामोश लेकिन मजबूत मंशा से ताकत लेनी चाहिए जो अपने हिसाब से ताकतवर संदेश दे रहे हैं- जो हो रहा है, गलत हो रहा है। जिसका निजाम है, ठीक कर ले या निजाम बदलने की तैयारी कर ले।
 
पहले बिहार ने संकेत दिया। एक संकेत मध्यप्रदेश में दिया। कल गुजरात में दे सकता है। लोगों को किसी दल के झंडे से नहीं जुड़े होते हैं। मतलब बस इतना कि जिसकी भी निजाम हो वह अपना काम करें, हमें अपना काम करने दें। जियो और जीनो दो। चलो और चलने दो का मंत्र अपनाए।
 
 
आपने किरण के दिल की बात कही। उसके बाद आमिर खान को रियल लाइफ में फिर हीरो बनने का मौका था यह कह कर वह किरण को उसके डर को दूर कर आए हैं। जवाब देकर आए हैं- "हिंदुस्तान जिंदाबाद था। जिंदाबाद है। जिंदाबाद रहेगा। दिल दिया है, जान भी देंगे, ऐ वतन तेरे लिय। न डरेंगे। न भागेंगे। यहीं रहेंगे। यहीं लड़ेंगे।" तब आपके लिए पूरा देश खड़ा होता। आज आप अकेले लग रहे हैं। जो साथ हैं, उनके दिल में भी राजनीति है। अभी भी वक्त है। देश से सॉरी बोलिये। और जिनके डर से लड़ना चाह रहे हैं, उन्हें लड़िये। देखिये, आपको पूरा मुल्क किस तरह साथ दिखेगा।
 
 
धन्यवाद,
एक आम आदमी

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