मुखौटा कंपनियों का तंत्र समाप्त करना जरूरी : अरुण जेटली

शनिवार, 22 जुलाई 2017 (20:04 IST)
नई दिल्ली। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने शनिवार को कहा कि विदेशों में कालाधन रखने वाले उसे सफेद बनाकर देश में लाने के लिए परंपरागत तौर पर मुखौटा कंपनियों का इस्तेमाल करते रहे हैं और जितनी जल्दी इस तंत्र को समाप्त किया जाएगा उतनी ही जल्दी अर्थव्यवस्था साफ-सुथरी हो जाएगी।
 
जेटली ने शनिवार को यहां 7वें दिल्ली इकोनॉमिक्स कॉनक्लेव में यह बात कहीं। उन्होंने कहा कि काले धन को सफेद बनाने का सबसे आसान जरिया मुखौटा कंपनियां थीं। कारोबारी और राजनीतिक लोग इसका समान रूप से इसका इस्तेमाल कर रहे थे। इसमें कई कंपनियों से होकर पैसा अंतत: वास्तविक मालिक के पास सफेद धन के रूप में पहुंचता था, जो इसके बाद इसे निवेश करता था। जितनी जल्दी यह तंत्र समाप्त हो जाएगा उतनी जल्दी अर्थव्यवस्था साफ हो जाएगी।
 
वित्तमंत्री ने कहा कि सरकार ने पिछले 3 सालों में 1-1 करके 3 बड़े बदलावों के जरिए काफी हद तक इस पर लगाम लगाने में कामयाबी पाई है। सबसे पहले उसने कालाधन (अघोषित विदेशी आय एवं परिसंपत्ति) तथा कराधान अधिनियम, 2015 लागू किया जिससे लोगों के लिए विदेशों में कालाधन रखना मुश्किल हो गया। इसके बाद उसने दिवाला एवं शोधन अक्षमता कानून बनाया जिससे बड़े पूंजीपतियों के लिए बैंकों से कर्ज लेकर डकार जाना संभव नहीं होगा। तीसरे चरण के तहत सरकार ने नोटबंदी की जिससे समानांतर अर्थव्यवस्था समाप्त हुई।
 
उन्होंने कहा कि नोटबंदी से पहले कर चोरी और समानांतर अर्थव्यवस्था देश में सामान्य बात हो गई थी। इसमें महत्वपूर्ण बदलाव के लिए सरकार ने कदम उठाए हैं जिसका दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा।
 
सिंगापुर के उपप्रधानमंत्री थरमन षण्मुगारत्नम् ने वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी), एकीकृत भुगतान इंटरफेस (यूपीआई) तथा आर्थिक संस्कृति में भारत में आए बदलाव की तारीफ करते हुए कहा कि मौजूदा सरकार कई महत्वपूर्ण सेक्टरों में निवेश कर रही है, लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में निवेश कम हुआ है। उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष भी अन्य देशों जैसी ही चुनौतियां हैं, लेकिन यहां की चुनौतियां ज्यादा जटिल हैं। 
 
षण्मुगारत्नम् ने 3 महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित किया जिन पर काम किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि शहरों के प्रशासन को ज्यादा स्थानीय बनाना चाहिए तथा सबके लिए समान अवसर पैदा किए जाने चाहिए। देश में राज्यों की बजाय शहरों के स्तर पर आपसी प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने की वकालत करते हुए सिर्फ आर्थिक समावेशन ही पर्याप्त नहीं है सामाजिक समावेशन भी होना चाहिए।
 
दूसरे बिंदु के रूप में शिक्षा प्रणाली की कमी को उजागर करते हुए उन्होंने कहा कि देश में शिक्षा युवाओं को रोजगार के लिए तैयार नहीं करती। इसके लिए प्रशिक्षण के स्तर पर उद्योग की भागीदारी बढ़ाने और प्रशिक्षण के दौरान उद्योगों की तरफ से आर्थिक मदद दिए जाने की जरूरत है।
 
इसके अलावा उन्होंने देश के शहरों तथा राज्यों में सभी के लिए समान अवसर की बात करते हुए कहा कि पहले से मौजूद कंपनियों को संरक्षण देने के बदले ऐसा माहौल तैयार किया जाना चाहिए जिसमें नई कंपनियों के भी सामने आने और फलने-फूलने की गुंजाइश हो। उन्होंने कहा कि वे भारत को लेकर आशावान हैं। 
 
एक प्रश्न के उत्तर में षण्मुगारत्नम् ने कहा कि आर्थिक सुस्ती के बावजूद वैश्विक स्तर पर मांग की कोई कमी नहीं है और कोई कारण नहीं कि भारत विनिर्माण निर्यात के दम पर और तेजी से प्रगति नहीं कर सकता। (वार्ता)

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