केजरीवाल सरकार ने सम्मान के लिए बुलाए 'भाषादूत', बाद में कहा 'हो गई भूल'!
मंगलवार, 13 सितम्बर 2016 (20:24 IST)
- सारंग उपाध्याय
नई दिल्ली। दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार नए विवाद में फंस गई है। ताजा विवाद हिन्दीसेवियों के सम्मान का है। केजरीवाल सरकार के अधीन हिन्दी अकादमी दिल्ली ने पहले तो तीन लेखकों को सम्मान ग्रहण करने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन बाद में ये कहकर खेद जता दिया कि उन्हें गलती से आमंत्रण चला गया था और उन्हें सम्मान देने के बारे में कोई निर्णय नहीं हुआ है।
खास बात यह है कि जिन तीन लेखकों को ये पत्र भेजा गया था। उनके नाम खुद हिन्दी अकादमी की उपाध्यक्ष और जानी-मानी साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा ने दिए थे लेकिन जब आयोजन के कार्ड छपे तो उसमें ये नाम नदारद थे और सम्मानित होने वाले बिलकुल अलग नौ नाम शामिल थे। गौरतलब है कि अकादमी के अध्यक्ष खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं।
दरअसल हिन्दी अकादमी दिल्ली 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के अवसर पर इंटरनेट सोशल मीडिया व आधुनिक माध्यमों पर हिन्दी भाषा व साहित्य के प्रसार के लिए साहित्यकारों और लेखकों को भाषा दूत सम्मान देने जा रही है। इसके लिए दिल्ली के लेखक अशोक कुमार पांडेय यूपी के नजीबाबाद से अरुण देव और इलाहाबाद से संतोष चतुर्वेदी को 10 सितंबर को पत्र और फोन के जरिये सूचना भेजी गई।
लेखक अशोक कुमार पांडेय ने बताया कि 10 सितंबर को हिन्दी अकादमी दिल्ली की ओर से उन्हें 14 सितंबर की संगोष्ठी में आमंत्रित किया गया था और भाषा दूत सम्मान दिए जाने की स्वीकृति मांगी गई थी। इसके बाद संस्था की ओर से एक औपचारिक मेल भेजकर बायोडाटा भी मांगा गया जिसे उन्होंने भेज दिया, लेकिन इस प्रक्रिया के बाद 12 सितंबर की सुबह 10 बजे हिन्दी अकादमी का एक और मेल आया जिसमें कहा गया कि पिछला पत्र मुझे ‘त्रुटिवश’ भेज दिया गया है और इस संबंध में कोई विभागीय निर्णय नहीं हो पाया है।
इसे ‘मानवीय भूल’ बताते हुए क्षमा-याचना की गई और मुझे हुए ‘कष्ट’ के लिए खेद व्यक्त किया गया। अशोक कुमार पांडेय ने कहा कि इस पत्र के मिलते ही मुझे निराशा के साथ-साथ गुस्सा भी आया और मैंने इसके बाद मैत्रेयी जी को फोन लगाया तो वे बेहद खिन्न दिखीं और कहा कि ऊपर से कोई हस्तक्षेप हुआ है।
इंटरनेट पर हिन्दी की महत्वपूर्ण ई-पत्रिका समालोचन के संपादक अरुण देव ने कहा कि उन्होंने भी 10 सितंबर को हिन्दी अकादमी दिल्ली की ओर से हिन्दी दिवस के अवसर पर आयोजित होने वाली संगोष्ठी में शामिल होने और इस दिवस पर भाषा दूत सम्मान दिए जाने की स्वीकृति, मांगने पर दी थी, लेकिन दो दिन बाद ही मेल के जरिए इसे त्रुटिवश बताया गया और नाम शामिल करने पर खेद जताया गया।
अरुण के मुताबिक पहले तो उन्हें लगा कि संभवत: किसी कारणवश यह पूरा आयोजन ही कैंसल हो गया हो। बाद में जब उन्होंने फेसबुक पेज पर आयोजन के होने और सम्मानित किए जाने वाले लेखकों की लिस्ट देखी,तो उन्हें सारी बात समझ आई। अरुण देव ने कहा कि लेखकों के साथ इस तरह का बर्ताव बड़ा चिंतनीय है। ये तो सोशल मीडिया पर पत्र को साझाकर पता चला कि दिल्ली की हिन्दी अकादमी के भीतर क्या चल रहा है, पता नहीं अंदर क्या हो रहा होगा? उन्होंने कहा कि जो नए लोगों की लिस्ट भी जारी की गई है उसमें कई ऐसे लोग हैं जिनका डिजिटल माध्यम में कोई योगदान नहीं है
इलाहाबाद से लेखक संतोष चतुर्वेदी ने बताया कि उनसे भी भाषा दूत सम्मान दिए जाने के लिए पूछा गया और स्वीकृति के साथ बायोडाटा मांगा गया, जो उन्होंने भेजा, लेकिन दो दिन बाद ही एक मेल और पत्र के जरिये उनका नाम त्रुटिवश देने का उल्लेख करते हुए माफी का पत्र मिला। संतोष ने कहा कि उन्होंने केवल मैत्रेयी पुष्पा जैसी वरिष्ठ साहित्यकार के नाम के चलते इस सम्मान के लिए स्वीकृति दी थी, लेकिन इस प्रकरण के बाद उन्हें काफी निराशा हुई है।
संतोष ने कहा कि यदि मैत्रेयी पुष्पा को लगता है कि कुछ गलत हुआ है, तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए। उन्हें तो एक मित्र के जरिये पता लगा कि उनका नाम सूची से हटा लिया गया है, अन्यथा वे इलाहाबाद से दिल्ली आने का रिजर्वेशन करवा चुके थे।
संतोष ने कहा कि एक समय नया-ज्ञानोदय में 'छिनाल' शब्द के प्रकरण पर विरोध जताने वाली मैत्रेयी पुष्पा क्या अब ऐसी सरकारी संस्था में रहना पसंद करेंगी, जिसके कई विधायक, नेता बलात्कार, महिला उत्पीड़न जैसे मामलों में लगातार फंस रहे हैं? और लेखकों का इस तरह से अपमान किया जा रहा है।
धर, इस पूरे मामले पर मैत्रेयी पुष्पा ने कहा कि भाषा दूत सम्मान के लिए मुझसे नाम मांगे गए थे जो मैंने दिए, लेकिन मैं न तो चयनकर्ताओं में शामिल हूं और न ही चयन में मेरी किसी तरह की भूमिका रही है। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम हिन्दी अकादमी के बैनर तले जरूर हो रहा है, लेकिन इसे सरकार का कला, संस्कृति एवं भाषा विभाग आयोजित करवा रहा है, जिसकी प्रशासनिक बॉडी का हिन्दी अकादमी की यूनिट से लेना-देना नहीं है।
वरिष्ठ महिला साहित्यकार ने कहा कि हो सकता है कि इसमें सरकार के लोगों, खासकर संस्कृति मंत्रालय के लोगों का हस्तक्षेप रहा हो। उन्होंने कहा कि यदि उन्हें लगा कि इसमें कुछ गलत है तो वे इस्तीफा देने से पीछे नहीं हटेंगी। वे हिन्दी अकादमी दिल्ली के अध्यक्ष और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के लौटने पर इस बारे में चर्चा जरूर करेंगी।