असम : NRC का फाइनल ड्राफ्ट जारी, 40 लाख लोगों को नहीं मिली नागरिकता, जानिए खास बातें

सोमवार, 30 जुलाई 2018 (08:29 IST)
गुवाहाटी। असम में सोमवार को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) जारी हो गया। इसमें 40 लाख लोगों को ना‍गरिकता नहीं मिली है। हालांकि जिन लोगों के नाम लिस्ट में नहीं हैं, उन्हें भी ट्रिब्यूनल में अपील करने का मौका होगा।
 
    
क्या है एनसीआर : असम देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसका एनआरसी है। एनआरसी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत अप्रत्यक्ष रूप से देश में गैरकानूनी तौर पर रह विदेशी नागरिकों को खोजने की कोशिश की जाती है। अगर आप असम के नागरिक हैं और देश के दूसरे हिस्से में रह रहे हैं या काम कर रहे हैं, तो आपको एनआरसी में अपना नाम दर्ज कराने की आवश्यकता है।
 
जानिए एनसीआर से जुड़ी खास बातें- 
- असम में अवैध बांग्लादेशियों के मुद्दे के कारण अक्सर हिंसक घटनाएं होती रही हैं। असम के मूल नागरिकों का मानना है कि अवैध रूप से यहां आकर बसे लोग उनके अधिकार छीन रहे हैं। इस मुद्दे को लेकर 80 के दशक में बड़ा आंदोलन हुआ। इसके बाद असम गण परिषद और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के बीच समझौता हुआ। इसमें तय हुआ कि 1971 तक जो भी बांग्लादेशी असम में घुसे हैं, उन्हें नागरिकता दी जाएगी और बाकी को निर्वासित किया जाएगा। हालांकि समझौता आगे नहीं बढ़ा। लंबे समय बाद इस पर काम शुरू हुआ है।
 
- असम में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों का पता लगाने के लिए एनआरसी जारी करने का फैसला लिया गया। इसमें मार्च 24, 1971 की आधी रात के बाद से अवैध रूप से राज्य में घुस आए बांग्लादेशी नागरिकों का पता लगाने की कोशिश की गई। यह तारीख मूल रूप से 1985 में असम समझौते में मुकर्रर की गई थी।इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी सरकार और असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू) के बीच हस्ताक्षर हुए थे। 
 
- पूरा मामला असम आंदोलन से जुड़ा है। 1985 का समझौता बांग्लादेश से अवैध आव्रजन के खिलाफ 6 साल तक हिंसक विरोध प्रदर्शनों का नतीजा था। इसे असम आंदोलन के रूप में जाना जाता है। बांग्लादेश एक ऐसा देश है जिसके साथ असम का 4,096 किलोमीटर की सीमा का हिस्सा लगता है।
 
- असम की जनसंख्या में मुसलमानों की हिस्सेदारी वर्ष 1961 में 23.3 प्रतिशत थी। यह बढ़कर वर्ष 2011 में 34 प्रतिशत हुई है। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि कुल आबादी में कितने असमी, बंगाली या बांग्लादेशी हैं।
 
- असम की राज्य सरकार असम समझौते में निर्धारित विदेशियों की पहचान और निष्कासित करने में लगातार असफल रही। वर्ष 2005 में तब के तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और केंद्र सरकार के बीच एक अन्य समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इसमें एनआरसी को जारी करने का फैसला लिया गया। भारत में पहली बार एनआरसी विभाजन के बाद 1951 की जनगणना के बाद प्रकाशित किया गया था। उस वक्त राज्य के नागरिकों की संख्या 80 लाख थी।
 
- 2005 के बाद एक बार फिर से एनआरसी को अपडेट करने का फैसला किया गया। इसकी प्रक्रिया शुरू हुई। गोगोई सरकार ने कुछ जिलों में पायलट परियोजना के रूप में एनआरसी अपडेट शुरू कर दिया था, लेकिन राज्य के कुछ हिस्सों में हिंसा के बाद यह रोक दिया गया।
 
- जुलाई 2009 में एक गैर सरकारी संगठन असम लोक निर्माण (एपीडब्ल्यू) राज्य में बांग्लादेशी विदेशियों की पहचान करने और मतदाताओं की सूची से उनके नामों को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस काम को जल्द पूरा करने का आदेश दिया।
 
- 31 दिसंबर 2017 को असम के एनआरसी के पहले ड्राफ्ट को रिलीज करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने ही दिया था। जुलाई 2009 एपीडब्ल्यू की याचिका के बाद यह आदेश दिया गया। याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट लगातार इस पर सुनवाई कर रहा है।

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