Jammu and Kashmir : आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना में 33 माह में गालब्लैडर की बीमारियों पर खर्च हुए 220 करोड़ रुपए

सुरेश एस डुग्गर

मंगलवार, 3 अक्टूबर 2023 (20:05 IST)
Ayushman Bharat Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana : आपको इस खबर पर यकीन करना ही होगा कि जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) में पिछले 33 महीनों के भीतर आयुष्मान भारत (Ayushman Bharat) प्रधानमंत्री जनआरोग्य योजना के अंतर्गत जो इलाज किए गए उनमें सबसे बड़ी बीमारी गालब्लैडर से जुड़ी हुई थी। यह सरकारी आंकड़ों से भी साबित होता जिसमें बताया गया है कि इस अवधि में गालब्लैडर की बीमारियों को दूर करने के लिए 220 करोड़ का भुगतान किया गया है।
 
इन आंकड़ों के बाद अब तो यह भी कहा जाने लगा है कि प्रदेश में कैंसर के बाद जम्मू-कश्मीर की जनता सबसे अधिक गालब्लैडर की बीमारियों से जूझ रही है। 
 
प्राप्त आंकड़ों के बकौल, पिछले 33 महीनों में प्रदेश के 78209 लोगों के गालब्लैडर को ऑपरेशनों द्वारा निकाला गया है और इसके लिए विभिन्न चिकित्सा संस्थानों को 220 करोड़ का भुगतान किया गया है।
 
और इसमें भी चौंकाने वाला तथ्य यह है कि इस बीमारी से ज्यादातर पीड़ित कश्मीर से संबंध रखने वाले थे। करीब 66 प्रतिशत कश्मीरियों के गालब्लैडर के ऑपरेशन पिछले अढ़ाई सालों में किए गए हैं। 
 
क्या कहते हैं आंकड़े : आंकड़े बताते हैं कि कश्मीर वादी में 52347 लोगों के गालब्लैडर के ऑपरेशन 2021 के बाद से निकाले गए हैं जिसके लिए सरकार ने 130 करोड़ का भुगतान किया है।
 
आंकड़ों के मुताबिक, कश्मीर में गालब्लैडर की बीमारी से सबसे अधिक ग्रस्त लोग बारामुल्ला में थे और सबसे कम बांडीपोरा में थे। 
 
2021 से अनंतनाग में 7489, बड़गाम में 6712, बारामुल्ला में 8764 और बांडीपोरा में 2221 मरीज थे। इसी प्रकार गंदरबल में 2433, कुलगाम में 3645, कुपवाड़ा में 3792 तथा पुलवामा में 5054 मामले सामने आए थे।
 
स्टेट हेल्थ एजेंसी के एक अधिकारी का मानना था कि प्रदेश में लोग इस योजना के तहत सबसे अधिक गालब्लैडर की बीमारियों पर पैसा खर्च कर रहे हैं।
 
इसके प्रति कई डॉक्टरों का मानना था कि प्रदेश में खासकर, कश्मीर में लोगों के खानपान के पैटर्न के कारण लोगों को इस बीमारी से जूझना पड़ रहा है।
 
एक प्रसिद्ध सर्जन डॉ. इम्तियाज अहमद वानी का मानना था कि पित्ताशय की पत्थरी की समस्या से जूझ रहे मरीजों के शरीर से गालब्लैडर को ही निकाल देना अंतिम विकल्प होता है पर जम्मू-कश्मीर में इसे प्राथमिक विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है।

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