वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इस महीने की शुरुआत में अपने बजट भाषण के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के 2 बैंकों के निजीकरण की घोषणा की थी। एआईबीईए ने बयान में कहा कि यूनाइटेड फोरम ऑफ यूनियंस के बैनर तले 9 यूनियनों एआईआईबीए, एआईबीओसी, एनसीबीई, एआईबीओए, बीईएफआई, आईएनबीईएफ, आईएनबीओसी, एनओबीडब्ल्यू और एनओबीओ के लगभग 10 लाख बैंक कर्मचारी और अधिकारी मिलकर सरकार के प्रस्ताव के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। एआईबीईए ने बताया कि शुक्रवार के धरने के बाद बैंक संगठन अगले 15 दिनों के दौरान देशभर में विरोध प्रदर्शन करेंगे। बयान में आगे कहा गया कि हम 10 मार्च को बजट सत्र के दौरान संसद के समक्ष धरना प्रदर्शन करेंगे।
एआईबीईए के महासचिव सीएच वेंकटचलम ने कहा कि सरकारी बैंकों के सामने एकमात्र समस्या खराब ऋणों की है, जो अधिकांश कॉर्पोरेट और अमीर उद्योगपतियों द्वारा लिए जाते हैं। सरकार उन पर कार्रवाई करने के बजाय बैंकों का निजीकरण करना चाहती है। उन्होंने निजी क्षेत्र के बैंकों की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पिछले साल येस बैंक मुसीबत में था और हाल ही में लक्ष्मी विलास बैंक का अधिग्रहण एक विदेशी बैंक ने किया है।
उन्होंने कहा कि हमने आईसीआईसीआई बैंक में समस्याओं को देखा है इसलिए कोई यह नहीं कह सकता है कि निजी क्षेत्र की बैंकिंग बहुत कुशल है। दूसरी ओर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक आम लोगों, गरीब लोगों, कृषि, छोटे स्तर के क्षेत्रों को ऋण देते हैं जबकि निजी बैंक केवल बड़े लोगों की मदद करते हैं। एआईबीईए ने कहा कि इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने युवा बेरोजगारों को स्थायी नौकरियां दी हैं जबकि निजी बैंकों में केवल अनुबंध की नौकरियां हैं। (भाषा)