अदालत ने कहा कि रेहड़ी पटरी वालों और सड़क पर सामान बेचने वालों ने सड़कों और गलियों पर वास्तव में कब्जा कर लिया है। लोगों के पास फुटपाथ पर चलने के लिए कोई जगह नहीं बची है। जनता सहनशील हो गई है या नगर निकाय अधिकारियों से शिकायत कर-करके शायद अब तंग आ चुकी है, लेकिन इससे इस समस्या की गंभीरता या उनकी समस्या कम नहीं होती। जनता को इस असहनीय स्थिति को सहन करने और अंतहीन समय तक इंतजार करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
अदालत ने कहा कि जब भी नगर निगम अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाता है, तो रेहड़ी पटरी वाले और अन्य विक्रेता कुछ ही मिनट बाद लौट आते हैं। जब कोई वीवीआईपी शहर का दौरा करता है तो सभी सड़कें और फुटपाथ साफ कर दिए जाते हैं और कभी-कभी गड्ढे भी भर दिए जाते हैं। क्या कानून का पालन करने वाले वे नागरिक भी इसी तरह के व्यवहार के हकदार नहीं हैं जिनके पैसे से ये वीआईपी काम करते हैं?