बजट सत्र में आसान नहीं है राह, क्या है मोदी सरकार की मुश्किल...
रविवार, 28 जनवरी 2018 (12:41 IST)
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय के चार शीर्ष न्यायाधीशों तथा मुख्य न्यायाधीश के बीच विवाद, पदमावत फिल्म प्रकरण और तीन तलाक विधेयक जैसे मुद्दों पर ज्यादातर राजनीतिक दलों की लामबंदी के बीच सोमवार को शुरू हो रहे संसद के बजट सत्र में सरकार के लिए विपक्ष को साधना आसान नहीं होगा।
संसद के बजट सत्र का पहला चरण 29 जनवरी से शुरू होकर 09 फरवरी तक चलेगा। पहले दिन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करेंगे। अपने पहले अभिभाषण में वह सरकार के विकास और आर्थिक कार्यक्रमों की रूपरेखा का खाका पेश करेंगे। उसी दिन आर्थिक सर्वेक्षण के जरिये देश की अर्थव्यवस्था का लेखा जोखा प्रस्तुत किया जायेगा। बजट सत्र का दूसरा चरण अवकाश के बाद 05 मार्च से 06 अप्रैल तक होगा।
आम बजट एक फरवरी को पेश किया जायेगा जो मोदी सरकार का पांचवां बजट होगा। वर्ष 2019 के लोक सभा चुनाव तथा उससे पहले आठ राज्यों के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बजट में लोकलुभावन घोषणाएं की जा सकती हैं लेकिन आर्थिक सुधारों पर सरकार के जोर को देखते हुए कुछ कड़े कदम भी उठाए जा सकते हैं। देश में एक कर प्रणाली 'वस्तु एवं सेवा कर' लागू होने के बाद पहली बार बजट पेश किया जा रहा है और इसका प्रभाव भी बजट पर दिखाई देगा।
लगभग सभी विपक्षी राजनीतिक दलों की 'भाजपा विरोध' की नीति सरकार के लिए सबसे बड़ी मुसीबत का सबब है। कुछ मुद्दों पर तटस्थ रहती आ रही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के भी अब खुलकर सरकार के विरोध में आने से जहां मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का मनोबल बढ़ा हुआ है वहीं सरकार पर इससे दबाव बढ़ सकता है।
राकांपा नेता शरद पवार ने गणतंत्र दिवस के दिन कुछ अन्य विपक्षी नेताओं के साथ 'संविधान बचाओ' मार्च निकाल कर सरकार को घेरने के संकेत दिए हैं। उन्होंने कहा है कि बजट सत्र के पहले दिन 29 जनवरी की शाम को भी विपक्षी दल बैठक कर सरकार को घेरने की रणनीति पर चर्चा करेंगे। केन्द्र में सरकार में शामिल शिव सेना पिछले काफी समय से भारतीय जनता पार्टी को घेरती रही है और इसी सप्ताह उसकी आगामी लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा से उसके तेवर और तीखे होने की संभावना है।
पार्टी की बागडोर राहुल गांधी के हाथ में आने के बाद से कांग्रेस मोदी सरकार के खिलाफ काफी आक्रामक रूख अपना रही है और इसी के तहत गांधी ने गत गुरुवार को पार्टी नेताओं की बैठक बुलाकर बजट सत्र की रणनीति पर विस्तार से चर्चा की। वह गुजरात चुनाव के समय से ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों का पुरजोर विरोध कर रहे हैं।
दावोस में विश्व आर्थिक मंच के सम्मेलन में प्रधानमंत्री द्वारा किए गए विकास के दावों पर सवाल उठाते हुए गांधी ने पूछा था कि क्या वह बताएंगे कि देश की 73 फीसदी संपत्ति पर केवल एक प्रतिशत लोगों का ही कब्जा क्यों है।
उच्चतम न्यायालय प्रकरण में भी गांधी ने खुद मोर्चा संभालते हुए शीर्ष न्यायाधीशों द्वारा उठाये गये सवालों के समाधान तथा जज बी एच लोया की मौत की जांच की मांग की थी। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग चलाने की बात तक उठा रही है। शरद यादव ने भी सभी दलों से इस मुद्दे पर चर्चा करने का समर्थन किया है।
तीन तलाक के मुद्दे पर भी कांग्रेस के रूख में कोई नरमी नहीं आई है और वह इससे संबंधित विधेयक को राज्यसभा की प्रवर समिति में भेजने की मांग पर अड़ी हुई है। ज्यादातर विपक्षी दल भी इस मुद्दे पर कांग्रेस के साथ हैं। इसलिए सरकार को राज्यसभा में एक बार फिर एकजुट विपक्ष से निपटने की रणनीति बनानी होगी। पिछले सत्र में इस मुद्दे पर राज्यसभा में काफी हंगामा हुआ था और कामकाज प्रभावित हुआ था। सदन में इस विधेयक पर अभी कोई फैसला नहीं हो पाया है।
रानी पद्मावती को लेकर बनाई गई फिल्म के कुछ संगठनों द्वारा विरोध तथा हिंसा पर भारतीय जनता पार्टी सरकारों की चुप्पी को लेकर भी विपक्ष में रोष है। विपक्ष इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़ कर देख रहा है और आरोप लगा रहा है कि इसमें भाजपा की मिलीभगत है।
अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने से संबंधित संविधान संशोधन विधेयक पर भी सत्ता पक्ष तथा विपक्ष के बीच खासी तनातनी होने की संभावना है और सरकार को इसे राज्यसभा में पारित कराने में एक बार फिर मशक्कत करनी होगी।
लोकसभा ने इस विधेयक को पारित कर दिया था लेकिन पिछले सत्र में राज्ससभा ने इसमें कुछ संशोधन कर दिए जिससे इसे एक बार फिर लोकसभा में पारित कराया जाना था लेकिन सरकार इन संशोधनों को शामिल किए बिना फिर से विधेयक लोकसभा में ले आई है। वित्तीय समाधान एवं जमा बीमा विधेयक का भी विपक्ष विरोध कर रहा है। यह विधेयक अभी दोनों सदनों की संयुक्त समिति के पास है और समिति को बजट सत्र के अंत तक अपनी रिपोर्ट देनी है। (वार्ता)