भ्रष्टाचार और कर्तव्य में लापरवाही बरतने के आरोप में गुरुवार को आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति ने मैराथन बैठक के बाद आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से हटा दिया। हालांकि वर्मा ने इन आरोपों को झूठे, निराधार और फर्जी करार दिया है। आइए, जानते हैं वो पांच प्रमुख कारण जिनके कारण आलोक वर्मा को मिली पद से छुट्टी...
1. सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना ने कैबिनेट सचिव और केंद्रीय सतर्कता आयोग को पत्र लिखकर सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार और अनियमितता के कम से कम 10 मामलों का जिक्र किया था। अस्थाना का आरोप था कि वर्मा ने मीट कारोबारी मोइन कुरैशी से जुड़े मामले की जांच को प्रभावित करने के लिए सतीश बाबू सना से 2 करोड़ रुपए की रिश्वत ली थी।
3. आलोक वर्मा को पद से बर्खास्त करने में एक कारण यह भी रहा कि हरियाणा के एक जमीन घोटाले के मामले में उन पर गंभीर आरोप लगाए गए। इस घोटाले की शुरुआती जांच को बंद करने को सुनिश्चित करने के लिए 36 करोड़ रुपए का सौदा हुआ। इतना ही नहीं उन पर आरोप हैं कि वे हरियाणा के तत्कालीन टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के डायरेक्टर और एक रियल एस्टेट कंपनी के संपर्क में भी थे।
5. वर्मा को उनके पद से छुट्टी दिलाने में एक और कारण यह भी रहा कि उन पर यह भी गंभीर आरोप थे कि उन्होंने दागी अफसरों को सीबीआई में लेने की कोशिश की। कहा गया कि वर्मा ने 2 दागी अफसरों को सीबीआई में लाने की कोशिश की थी, जबकि दोनों के खिलाफ प्रतिकूल रिपोर्ट थी।
उल्लेखनीय है कि यही वो प्रमुख गंभीर आरोप रहे जो आलोक वर्मा पर लगाए गए, जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति ने कड़ा फैसला लिया और परिणामस्वरूप वर्मा को अपने पद से हाथ धोना पड़ा।