श्रीनगर। पिछले हफ्ते सीमा पर गोलाबारी न करने के ‘मौखिक’ समझौते के बाद ही पाक सेना ने एलओसी के कई सेक्टरों में गोलाबारी करके यह दर्शा दिया कि उसके लिए ऐसे समझौतों का कोई मूल्य नहीं है। यही कारण है कि दोनों देशों के बीच वर्ष 2003 में सीमाओं पर गोलाबारी को रोकने के लिए हुआ सीजफायर पाक सेना की बंदूकों से निकलने वाली गोलियों से बुरी तरह छलनी हो चुका है।
इस साल 26 नवंबर को अपने 14 साल पूरे करने जा रहा सीजफायर पाक गोलियों तथा गोलों की बरसात से कितना छलनी हो चुका है इसको आंकड़ों से समझा जा सकता है। पिछले साल के आंकड़ों के मुताबिक, पाक सेना ने 240 बार एलओसी और सीमा पर अकारण गोली चलाई तथा गोलों की बरसात की। वर्ष 2015 के आंकड़े कहते हैं कि हर दूसरे दिन सीजफायर की मर्यादा को तार-तार किया गया।
ऐसा भी नहीं है कि 2003 में लागू होने के बाद से पाकिस्तान से सटी सीमाओं पर लगातार शांति बनी रही थी, बल्कि पहले सीजफायर उल्लंघन की घटनाओं को आतंकियों द्वारा की जाने वाली गोलीबारी समझ लिया जाता था, पर पिछले करीब 5 सालों से यह स्पष्ट हो चुका है कि पाक सेना ही गोलों की बरसात कर जानमाल को क्षति पहुंचा रही है।
हैरान कर देने वाली बात यह है कि सीजफायर के जारी रहने के बावजूद एलओसी और सीमाओं पर गोलीबारी नागरिकों व सैनिकों की जानें ले रही है। अगर जुलाई का ही आंकड़ा लें तो पता चलता है कि कुल 11 मरने वालों में 9 तो सैनिक थे। अधिकतर सैनिकों को पाकिस्तानी सेना के निशानेबाजों ने स्नाइपर राइफलों से दागी गई गोलियों से मारा था। रक्षा सूत्रों के बकौल सीजफायर के इन 13 सालों में सेना उस पार से होने वाली रहस्यमयी गोलीबारी, जो दरअसल स्नाइपर शॉट होते हैं, 100 से अधिक जवानों को खो चुकी है।
पाक सेना द्वारा किए जाने वाले सीजफायर उल्लंघन का खामियाजा नागरिकों को भुगतना पड़ रहा है। हालत यह है कि अब वे घरों से बाहर निकलने को भी कतराने लगे हैं। एलओसी के इलाकों में तो बार-बार स्कूलों के बंद होने से पढ़ाई का नुकसान छात्रों को झेलना पड़ रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि पाक सेना अब स्कूलों को निशाना बनाकर गोले दाग रही है।