महाराष्ट्र में सत्ता के लिए संवैधानिक संस्थाओं की मर्यादा भंग करना 70 साल के संविधान की सबसे बड़ी त्रासदी

विकास सिंह

मंगलवार, 26 नवंबर 2019 (10:19 IST)
आज संविधान दिवस है। 70 साल पहले 26 जनवरी 1949 को संविधान सभा ने इस विश्वास के साथ  संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित (लागू होना) किया गया था कि अब विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र संविधान के अनुसार ही चलेगा। संवैधानिक संस्थाए संविधान को और मजबूत बनाएगी और सुप्रीम कोर्ट संविधान की रक्षा करेगा। 70 साल के इस सफर मे अब तक ऐसे मौके बहुत कम ही बार आए जब यह सवाल उठा कि क्या देश संविधान के अनुसार चल रहा है क्या विश्व के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में संवैधानिक संस्थाए अपना काम सहीं ढंग से कर रही है। 
 
दुर्भाग्य के साथ आज जब हम संविधान दिवस की 70 वीं वर्षगांठ मना रहे है तो यह सभी सवाल सुरसा के मुंह के सामान हर क्षण बड़े होते दिखाई दे रहे है। महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन में जिस तरह से संविधान और संवैधानिक संस्थाओं को ताक पर रख कर फैसले किए गए उससे यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या संविधान के लागू होने के 70 साल के अंदर ही संवैधानिकस संस्था खत्म होने के कगार पर पहुंच गई है। 

 
संविधान के लागू होने के 70 साल पर वेबदुनिया ने वरिष्ठ पत्रकार और लीगल एक्सपर्ट रामदत्त त्रिपाठी से  महाराष्ट्र की राजनीतिक हालातों और संवैधानिक संस्थाओं के काम करने को लेकर खास बातचीत की। बातचीत की शुरुआत करते हुए रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि राजनीतिक उठापटक होना तो आम बात है लेकिन जिस तरह महाराष्ट्र में एक पार्टी विशेष की सत्ता के लिए संवैधानिक संस्थाए जिनको निर्वावाद रखना चाहिए जैसे देश के राष्ट्रपति, राज्यों के राज्यपाल औऱ प्रधानमंत्री दफ्तर को उनकी भी मर्यादा भंग की गई है वह एक त्रासदी से कम नहीं है।

जिस तरह संवैधानिक संस्थाओं और उनकी मर्यादा को ताक पर रखा गया वहीं कहीं से भी उचित नहीं है। महाराष्ट्र में मामले में वह संविधान के संरक्षक माने जाने वाले सुप्रीम कोर्ट के बारे में कहते हैं कि ऐसे मामले में सुप्रीम कोर्ट को भी जो तत्परता दिखानी चाहिए वह नहीं दिखाई दी। 
बातचीत को आगे बढ़ाते हुए रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि देश में अगर संवैधानिक संस्थाओं की मर्यादाओं का ध्यान नहीं रखा जाएगा तो देश एक तरह से आरजकता की ओर जाएगा, जैसा संविधान लागू होने से पहले होता था कि जिसकी लाठी उसकी भैंस। वह कहते हैं कि महाराष्ट्र के सियासी घटनाक्रम से वैसा ही मैसेज गया कि जो सत्ता में है जिसके पास पैसा है जिसके पास बल है वहीं हावी होगा। आज सरकार की एजेंसियों जैसे ईडी, सीबीआई का जिस तरह सत्ता के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है उससे उनकी विश्वसनीयता कठघरे में खड़ी हो गई है। 
 
वेबदुनिया से बातचीत में रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि ऐसा नहीं हैं कि किसी राज्य में सत्ता हासिल करने के लिए यह सब पहली बार हो रहा है पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों के समय भी ऐसा कई बार हुआ और इन्हीं कारणों से कांग्रेस धीमे -धीमे पतन की ओर गई। वह महत्वपूर्ण बात कहते हैं कि केंद्र में दूसरी बार ही सत्ता में आई भाजपा इतनी जल्दी यह सब करेगी इसकी लोगों को अपेक्षा नहीं थी, वह आगे कहते हैं कि लगता हैं बीजेपी में भी सत्ता के वह सभी अवगुण आ गए है जो किसी जमाने में कांग्रेस में हुआ करते थे। इसके लिए वह भाजपा में आंतरिक लोकतंत्र को खत्म होने को बड़ा कारण मानते है। वह कहते हैं कि भाजपा जो अपने को व्यक्तिवादी पार्टी से दूर मानती थी अगर वह रात के अंधेरे में इस तरह के फैसले ले रही है तो वह भविष्य के लिए सहीं नहीं है। 
 
बातचीत में संविधान की ओर लौटते हुए वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि जब 70 साल पहले संविधान स्वीकार किया गया था तो संविधान निर्माताओं ने साफ कहा था कि संविधान उतना महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण वह लोग है जो उसको अमल में लाते है जो उसको चलाते है। वह चिंता जताते हुए कहते हैं कि  अगर उसको अमल में लाने वालों में ही मर्यादा और सयंम नहीं है तो संविधान क्या करेगा। वह आंशका जताते हुए कहते हैं कि अगर राजनीतिक दल ऐसा करेंगे तो लोगों की आस्था डेमोक्रेटिक सिस्टम से उठ जाएगी। ऐसी स्थिति वह संविधान के संरक्षक सुप्रीम कोर्ट की बड़ी जिम्मेदारी मानते है कि वह ऐसे कदम उठाए जिससे कि लोगों की लोकंतत्र और संविधान दोनों में आस्था बनी रहे। 
 
रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि पिछले दिनों कई मौकों पर देखा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह फैसले लेने में देरी की है उसके यह लगता है कि सुप्रीम कोर्ट संविधान की मार्यादा की रक्षा नहीं कर रहा है तो लोगों की आस्था ढिगी गई लेकिन उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट के जजों को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। लोगों को भी चिंता हो रही है कि ऐसे में मामले में जब सुप्रीम कोर्ट को तत्परता दिखाते हुए अपनी शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए वह नहीं हुआ । 
 
वह कहते हैं कि अब वह समय नहीं है कि लोगों को पता नहीं है कि क्या हो रहा है। महाराष्ट्र में जिस तरह रात के अंधेरे में शपथ दिलाई गई। यह किसी को पता नहीं कि कब फडणवीस गए और दावा पेश किया , राज्यपाल कब लीगल एक्सपर्ट से राय ली, कब राष्ट्रपति शासन हटाया गया । वह कहते हैं कि जिस तहर गृहमंत्रालय ने रातों रात राष्ट्रपति शासन हटाने की सूचना जारी की वह कई सवालों को जन्म देता है । वह कहते हैं कि ऐसी कोई इमरजेंसी तो थी नहीं । इन सब चीजों से लोगों को विश्वास धीरे धीरे कम होगा। 
 
रामदत्त त्रिपाठी साफ कहते हैं कि संविधान के दुरुपयोग का खमियाजा इंदिरा गांधी इतिहास में भुगत चुकी है और ऐसा ही रहा है तो वर्तमान सरकार के प्रति भी लोगों का विश्वास कम होगा। वह कहते हैं जो लोग राजसत्ता में है उनको इंदिरा गांधी को ध्यान में रखना चाहिए कि उनका क्या हुआ। 
 
रामदत्त त्रिपाठी में बातचीत में महाराष्ट्र में सरकार के गठन पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि महाराष्ट्र में किस तरह राज्यपाल ने संविधान को ताक पर रखा वह सबके सामने है। पहले गर्वनर ने भाजपा को खूब समय दिया और जब शिवसेना-एनसीपी को समय नहीं दिया गया। फिर जब यह तय हो गया कि शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन सरकार बनाने जा रही है तो इसके बाद तत्काल रात के अंधेरे में सरकार का गठन किया गया वह साफ बताता है कि किस तरह संवैधानिक संस्थाओं ने ही संविधान को ताक पर रख दिया। 
 
वह कहते हैं कि जिस तरह महाराष्ट्र में सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग कर क्रिमिनल केसों के सहारे अजित पवार पर दबाव बनाने और उनको तोड़ने की कोशिश हुई वह सबसे सामने है। वह कहते हैं कि महाराष्ट्र के घटनाक्रम से संवैधानिक संस्थाओं की मर्यादा में बट्टा लगाने का काम किया है और इस पूरे सियासी एपिसोड से  राज्यपाल और राष्ट्रपति जैसी संवैधानिक संस्थाओं पर गहरा आघात लगा है।
 
वह कहते हैं कि देश की आजादी के बाद कई बार प्रचंड बहुमत के साथ सरकारें बनी लेकिन उन्होंने कभी संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर कर उनका गलत इस्तेमाल नहीं किया। लेकिन आझ एक बहुमत वाली सरकार इसका दुरुपयोग करते हुए संवैधानिक संस्थाओं को कमोजर करती हुई दिख रही है। 
 
संविधान दिवस पर रामदत्त त्रिपाठी इस बात पर जोर देते हैं कि आज की तारीख में संविधान ही सबसे उपर है तो ऐसे समय में संवैधानिक संस्था को मजबूत किया जाना चाहिए और संविधान के संरक्षक होने के नाते सुप्रीम कोर्ट को इसमें अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए औऱ आखिरकार मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सदन में बहुमत परीक्षण का आदेश देकर लोकतांत्रिक मू्ल्यों और संविधान की रक्षा की है। वह कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि सभी दल और जनप्रतिनिधि इससे सबक सीखेंगे।

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