सीआरपीएफ जवान चेतन चीता आए कोमा से बाहर, जानिए उनकी कहानी...

बुधवार, 5 अप्रैल 2017 (13:39 IST)
नई दिल्ली। अगर दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो इंसान मौत को भी मात दे सकता है। कुछ ऐसा ही कारनामा कर दिखाया है सीआरपीएफ के 92वीं बटालियन के कमांडेंट चेतन चीता ने। आतंकियों से मुकाबले के दौरान अपने सीने पर 9 गोलियां खाकर और दो महीने कोमा में रहने के बाद भी उन्‍होंने मौत को पराजित कर दिया और अब उनके स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार दिखाई दे रहा है। 
 
चीता का इलाज करने वाले एम्स के डॉक्टरों ने बताया कि अब चीता पूरी तरह फीट हैं और अब उन्हें डिस्चार्ज किया जाएगा। जब चीता को घायल अवस्था में अस्पताल लाया गया था तो उनके सिर पर गोलियों के घाव थे। उस समय उनके सिर में गंभीर चोटें थीं, शरीर का ऊपरी भाग बुरी तरह क्षतिग्रस्त था और दाईं आंख फूट गई थी। जिसके बाद उनके बचने की उम्मीद काफी कम थी। डॉक्टर भी इसे कुदरत का करिश्मा ही मान रहे हैं।  
 
चीता को प्राथमिक इलाज के लिए श्रीनगर स्थित सेना के 92 बेस हॉस्पिटल में लाया गया। जहां से एयरलिफ्ट करके उन्हें दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया। यहां 14 फरवरी से उनका इलाज जारी है। दो महीने की लंबी अवधि तक कोमा में रहने के बाद चीता होश में आ गए हैं। डॉक्टरों की मानें तो चेतन अब बात भी कर रहे हैं। 
 
14 फरवरी को बांदीपुरा में आतंकियों के साथ मुठभेड़ में चीता घायल हो गए थे। मुठभेड़ में चीता को 9 गोलियां लगीं थी, जो उनके शरीर को छलनी कर गईं। एक गोली चेतन के सिर में लगी, जो सिर की हड्डी को चीरकर दाई आंख से बाहर निकल गई। गोली ब्रेन को छूकर निकल गई, जिससे ब्रेन का एक हिस्सा डैमेज हो गया। एक गोली दाएं हाथ में, एक बाएं हाथ में, एक दाएं पैर में और दो गोलियां कमर के निचले हिस्से में लगीं। कुल 9 गोली चेतन के शरीर में लगी थी। इसके बावजूद उन्‍होंने आतंकवादियों से लड़ते हुए 16 राउंड फायर किए और आतंकी को ढेर कर दिया।
 
मौत को मात देने वाले सेना के वीर जवान चेतन कुमार चीता की तुलना सियाचिन में तैनात हनुमंथप्पा से की जा रही है। 

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