'दरबार मूव' की तैयारियां शुरू, सुरक्षा बनी चुनौती

श्रीनगर। गठबंधन सरकार के दरबार को सुरक्षित ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर ले जाने के लिए सेना, सुरक्षाबलों की चुनौती शुरू हो गई है। लगभग तीन सौ किलोमीटर लंबे जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग के अधिकतर हिस्से की सुरक्षा का जिम्मा संभाल चुकी सीआरपीएफ (केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल) के लिए दरबार मूव की सुरक्षा एक बार फिर अग्निपरीक्षा होगी।


गृह मंत्रालय के निर्देशों पर सीआरपीएफ ने जम्मू डिवीजन में आने वाले राजमार्ग के 141 किलोमीटर हिस्से की सुरक्षा दो साल पहले सेना से अपने हाथ में ले ली थी। रामबन से बनिहाल तक राजमार्ग की सुरक्षा फिलहाल सेना के पास ही है। बनिहाल से श्रीनगर तक राजमार्ग की सुरक्षा की जिम्मेदारी पहले ही सीआरपीएफ के पास है। 27 अप्रैल को शीतकालीन राजधानी जम्मू में दरबार बंद होते ही सरकार, कर्मचारियों का रुख श्रीनगर की ओर हो जाएगा।

ऐसे में सेना, सुरक्षाबल आतंकवादियों पर दबाव बनाकर दरबार मूव की प्रकिया को सुरक्षा प्रदान करेंगे। सेना भी पिछले सप्ताह 16वीं कोर मुख्यालय में होने वाली कोर ग्रुप की बैठक में केंद्रीय बलों, राज्य पुलिस व खुफिया एजेंसियों के साथ रणनीति बना चुकी है कि आने वाले दिनों में आतंकवादियों की चुनौतियों का सामना किस प्रकार से करना है। वहीं रामबन से बनिहाल तक के हिस्से को छोड़ पूरे राजमार्ग की सुरक्षा का जिम्मा संभाल चुकी सीआरपीएफ ने सुरक्षा को लेकर सारी तैयारी कर ली है।

सीआरपीएफ के प्रवक्ता ने बताया कि जम्मू शहर से रामबन तक राजमार्ग की सुरक्षा के लिए सीआरपीएफ की दो बटालियन तैनात की गई हैं। सुरक्षा संबंधी सारी तैयारियां की जा चुकी हैं। वहीं बचे हुए राजमार्ग की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालने के लिए भी सीआरपीएफ की तैयारी अंतिम चरण में है जिसके लिए दो बटालियन तैनात की जा रही हैं।

दरबार मूव की कहानी : गर्मियों के मौसम में जब तापमान 40-42 डिग्री से ऊपर होने लगता है तो ठंडक भरे वातावरण का ‘आनंद’ उठाने के लिए जम्मू कश्मीर की राजधानी को जम्मू से उठाकर श्रीनगर ले जाया जाता है और वहां पर छह माह इसे रखा जाता है क्योंकि पुनः भयानक सर्दी से बचने के लिए इसे फिर जम्मू ले जाया जाता है। नतीजतन लगभग 22 हजार सरकारी कर्मचारी नागरिक सचिवालय के साथ दोनों शहरों में घूमते रहते हैं।

इस बार जम्मू में ‘दरबार’ 27 अप्रैल को बंद होगा और 7 मई को ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में खुलेगा। राजधानी बदले जाने की प्रक्रिया ‘दरबार मूव’ के नाम से जानी जाती है जो ब्रिटिश शासनकाल से चली आ रही है लेकिन जब से आतंकवाद के भयानक साए ने धरती के स्वर्ग को अपनी चपेट में लिया है तभी से इस प्रक्रिया के विरोध में स्वर भी उठने लगे हैं। फिलहाल इस प्रक्रिया को रोका नहीं गया है और यह अनवरत रूप से जारी है।

सर्वप्रथम 1990 में उस समय इस प्रक्रिया का विरोध ‘दरबार मूव’ के जम्मू से संबंद्ध कर्मचारियों ने किया था जब कश्मीर में आतंकवाद अपने चरमोत्कर्ष पर था और तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन के निर्देशानुसार आतंकवाद की कमर तोड़ने का अभियान जोरों पर था, लेकिन सुरक्षा संबंधी आश्वासन दिए जाने के उपरांत ही सभी श्रीनगर आने के लिए तैयार हुए थे।

हालांकि यह बात अलग है कि आज भी सुरक्षा उन्हें नहीं मिल पाई है और असुरक्षा की भावना आज भी उनमें पाई जाती है। आधिकारिक रूप से सचिवालय के बंद होने से सप्ताहभर पहले ही सचिवालय की सभी फाइलों को सचिवालय के बाहर कतार में खड़े असंख्य ट्रकों में लादना आरंभ कर दिया जाएगा। सैकड़ों टनों के हिसाब से इन फाइलों को ट्रंकों में बंद कर सील लगाकर अति विशिष्ट सुरक्षा व्यवस्था में रवाना किया जाता है।

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