आजादी के 75 साल : तेलंगाना के महात्मा गांधी मंदिर में भक्तों की संख्या बढ़ी

रविवार, 14 अगस्त 2022 (15:45 IST)
नलगोंडा (तेलंगाना)। आजादी के 75वें वर्ष की पूर्व संध्या पर लोगों में देशभक्ति का जोश उमड़ने के बीच तेलंगाना के नलगोंडा जिले के एक गांव में महात्मा गांधी के मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
हैदराबाद से लगभग 75 किलोमीटर दूर तेलंगाना के चित्याल कस्बे के आसपास के लोगों के लिए महात्मा गांधी मंदिर जाना एक भावनात्मक कृत्य बन गया है।

‘महात्मा गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट’ के सचिव पीवी कृष्ण राव कहते हैं कि जिले के चित्याल कस्बे के पास पेड्डा कपार्थी गांव में अपनी तरह का यह पहला मंदिर दूर-दूर से लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहा है। राव कहते हैं कि जिस मंदिर में आमतौर पर 60-70 की संख्या में आगंतुक आते हैं, अब स्वतंत्रता के 75वें वर्ष का जश्न मनाने के लिए तेलंगाना सरकार और केंद्र की पहल के बाद भक्तों की संख्या बढ़कर लगभग 350 हो गई है।

उन्होंने कहा, आमतौर पर लगभग 60 से 70 लोग मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं। अब केंद्र द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव और तेलंगाना सरकार द्वारा स्वतंत्र भारत वज्रोत्सव के व्यापक प्रचार के कारण आगंतुकों की संख्या में वृद्धि हुई है और जो बढ़कर एक दिन में 300 से 340 तक पहुंच गई है।

उन्होंने कहा कि मंदिर 2014 में बनाया गया था और इसमें 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर कोई विशेष कार्यक्रम नहीं होता है, यहां 2 अक्टूबर को विशेष पूजा का आयोजन होता है। उन्होंने कहा कि मंदिर को धीरे-धीरे प्रसिद्धि मिल रही है क्योंकि लोग नियमित रूप से आते हैं और अपने परिवार के सदस्यों के साथ पूजा-अर्चना करते हैं।

हैदराबाद-विजयवाड़ा राजमार्ग के करीब चार एकड़ भूमि पर बने इस मंदिर में महात्मा गांधी की प्रतिमा बैठी मुद्रा में है। राव के अनुसार, मंदिर ट्रस्ट ने भी चित्याल के आसपास के गांवों में शादी के दिन विवाहित जोड़ों को रेशमी वस्त्र भेंट करना शुरू किया है। उन्होंने कहा कि यह एक नई परंपरा बन गई है कि ग्रामीण शादी के निमंत्रण पत्र बांटने से पहले पूजा-अर्चना करते हैं और बापू का आशीर्वाद लेते हैं।

यह पूछे जाने पर कि क्या स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के अवसर पर कोई विशेष कार्यक्रम होगा, इस पर कृष्णा राव ने कहा कि वह गांधीजी को केवल स्वतंत्रता संग्राम तक ही सीमित नहीं रखते हैं। उन्होंने कहा, हम उन्हें महातमुदु (महात्मा) के बजाय महितातमुदु (दिव्य पुरुष) के रूप में देखते हैं।(भाषा)
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