मध्यप्रदेश में जमीन जायदाद और मकानों की रजिस्ट्री के लिए आम लोगों को रजिस्ट्रार कार्यालय के चक्कर से मुक्त करने के लिए सरकार ने संपदा 2.0 सॉफ्टवेअर लांच किया था। इस सॉफ्टवेअर की मदद से डिजिटल रजिस्ट्री की सुविधा दी गई थी। लेकिन इस पहल में कई तरह की तकनीकी दिक्कतें सामने आ रही हैं। एक तरफ ऑनलाइन रजिस्ट्री में लंबा इंतजार करना पड रहा है तो वहीं बैंकों में लोन को लेकर भी डिजिटल रजिस्ट्री काम नहीं आ रही है।
बता दें कि संपदा 2.0 सॉफ्टवेअर के पहले संपदा सॉफ्टवेअर भी लॉन्च किया गया था। संपदा 2.0 सॉफ्टवेअर अपडेटेड वर्जन है, बावजूद इसके इसमें कई तरह की खामियां सामने आ रही हैं। वेबदुनिया ने विशेष तौर इस पूरे मामले की पड़ताल की। कुछ आम लोगों से और कुछ अभिभाषकों से चर्चा कर जाना कि किस तरह से संपदा सॉफ्टवेअर प्रापर्टी का पंजीकरण कराने वालों के लिए एक मुसीबत भी बना हुआ है।
इंदौर में हर महीने 15 हजार से ज्यादा दस्तावेज पंजीकृत होते हैं
मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा रजिस्ट्रियां इंदौर शहर में हो रही
2024 में इंदौर में रजिस्ट्री का अपडेटेड सॉफ्टवेअर संपदा 2.0 लॉन्च किया गया था
संपदा में कई तरह की तकनीकी खामियां सामने आ रहीं हैं
इंदौर में 4 रजिस्ट्रार ऑफिस हैं, जहां सभी तरह की प्रापर्टियों का पंजीकरण होता है
क्या कह रहे अधिकारी? संपदा के हेल्पलाइन पर करें शिकायत : इस बारे में वेबदुनिया ने जिला पंजीयक अधिकारी दीपक शर्मा से चर्चा की। उन्होंने बताया कि कुछ समस्याएं आ रही हैं। क्योंकि नया सॉफ्टवेअर है, ऐसे में इसे अपडेट होने में टाइम लगेगा। उन्होंने बताया कि जिन भी लोगों को समस्या आ रही है, वे संपदा के हेल्पलाइन पर अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। इसके अलावा हमने मोती तबेला ऑफिस में भी जिले के लिए हेल्पडेस्क बना रखी है। वहां शिकायत कर सकते हैं। जहां तक इसमें सुधार की बात है हम लगातार कोशिश कर रहे हैं और यह बेहद जल्द दुरस्त हो जाएगा।
क्यों फेल हो रहा जियो टैगिंग : बता दें कि ऑनलाइन या डिजिटल रजिस्ट्री के लिए प्लाट या मकान या जिस भी प्रापर्टी का पंजियन यानी रजिस्ट्री की जाना है उसकी जियो टैगिंग की जाती है। यानी उस प्रापर्टी का फोटो लेकर लोकेशन के साथ जीपीएस से संपदा पर अपलोड किया जाता है। इसके बाद ही वो प्रोपर्टी की गाइडलाइन बताता है। लेकिन कई बार और कई मामलों में जियो टैगिंग गलत लोकेशन बता रहा है। कई बार रजिस्ट्री में भी लोकेशन गलत आ रही है। ऐसे में प्रापर्टी की गाइडलाइन तय नहीं हो पा रही है। जियो टेगिंग नहीं होने से गाइडलाइन का डिफरेंस आ रहा है। पहले वकील प्रापर्टी की गाइडलाइन तय करते थे। लोकेशन गलत आने पर भविष्य में प्रापर्टी को लेकर विवाद होने की आशंकाएं बनी हुई हैं। हाल ही में अपनी एक प्रापर्टी की रजिस्ट्री करवाने वाले अमोल जाम्भेकर ने वेबदुनिया को बताया कि कई बार पोर्टल से रजिस्ट्री डिलीट होने के मामले भी सामने आ रहे हैं। ऐसे में इतने महत्वपूर्ण दस्तावेज सुरक्षा का मामला भी संदिग्ध है। ऐसे में पंजीयन विभाग को इस बारे में प्राथामिकता के साथ इन दिक्कतों का समाधान करना चाहिए।
गलतियां कैसी कैसी : एडवोकेट कंवलजीत सिंह ने बताया कि एक प्रापर्टी मालिक की का प्लाट स्कीम नंबर 97 में था, लेकिन वो जियो टैगिंग में उपमा खेडी में बता रहा था, इसलिए रजिस्ट्री नहीं हो पा रही थी। हालांकि बाद में इसे सुधार लिया गया, जिससे रजिस्ट्री हो सकी।
रजिस्ट्री के लिए लंबा इंतजार : कहने को संपदा 2.0 की मदद से घर बैठे रजिस्ट्री किए जाने का दावा किया जा रहा है, लेकिन ऑनलाइन में भी लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। वहीं, संपदा वन में अगर रजिस्ट्री कराना है तो 15 दिन की वेंटिंग आ रही है। एक स्लॉट में एक रजिस्ट्री होती है।
पहले कर्ज के लिए बैंक भी मान्य नहीं कर रहे थे रजिस्ट्री : बता दें कि इसके पहले संपदा सॉफ्टवेअर से बनी डिजिटल रजिस्ट्री बैंकों में कर्ज लेने के लिए भी काम नहीं आ रही थी। जब कर्ज के लिए बैंक में जाते थे तो बैंक प्रबंधन लोगों से बैंक की सील और साइन वाली रजिस्ट्री मांग रहे थे। ऐसे में लोगों को रजिस्ट्री के आधार पर मिलने वाला लोन नहीं मिल पा रहा है। ऐसे कई लोगों के लोन अटक गए थे। हालांकि बाद में इसमें सुधार किया गया और बैंक ने डिजिटल रजिस्ट्री को मान्य किया।
पेपरलेस और फेसलेस से ये दिक्कत हो गई : बता दें कि एक वक्त के बाद खासतौर से बुर्जुगों के अंगुठे घिस जाते हैं, जिससे थंब इंप्रेशन काम नहीं करते हैं। वहीं आंखों में मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद रेटीना स्कैन भी काम नहीं कर रहा है। ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जिसमें एक बुर्जुग अपनी प्रापर्टी सेल नहीं कर पा रहे हैं। क्योंकि उनके थंब इंप्रेशन और रेटीना स्कैन नहीं हो पा रहे हैं। ऐसे में डिजिटल रजिस्ट्री की यह एक और खामी सामने आ रही है।