नई दिल्ली। समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का मामला सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सौंप दिया है। संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई 18 अप्रैल को करेगी। दरअसल, याचिका में समलैंगिक विवाह को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन करने की मांग की गई है।
दूसरी ओर, इस मामले में भारत सरकार ने विरोध करते हुए कहा है कि यह भारत की पारिवारिक व्यवस्था के खिलाफ है। उच्चतम न्यायालय ने 6 जनवरी को समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने के मामले में विभिन्न हाई कोर्ट में लंबित सभी याचिकाओं को एक साथ जोड़ते हुए उन्हें अपने पास स्थानांतरित कर लिया था।
क्या कहा केन्द्र सरकार ने : केन्द्र सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि भादसं की धारा 377 के जरिए इसे वैध करार दिए जाने के बावजूद, याचिकाकर्ता देश के कानूनों के तहत समलैंगिक विवाह के लिए मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं।
उसने कहा कि विवाह, कानून की एक संस्था के रूप में, विभिन्न विधायी अधिनियमों के तहत कई वैधानिक परिणाम हैं। इसलिए, ऐसे मानवीय संबंधों की किसी भी औपचारिक मान्यता को दो वयस्कों के बीच केवल गोपनीयता का मुद्दा नहीं माना जा सकता है।
केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि भारतीय लोकाचार के आधार पर ऐसी सामाजिक नैतिकता और सार्वजनिक स्वीकृति का न्याय करना और उसे लागू करना विधायिका का काम है। केंद्र ने कहा कि भारतीय संवैधानिक कानून न्यायशास्त्र में किसी भी आधार के बिना पश्चिमी निर्णयों को इस संदर्भ में आयात नहीं किया जा सकता है।
केंद्र ने कहा कि समलैंगिक व्यक्तियों के बीच विवाह को न तो किसी असंहिताबद्ध कानूनों या किसी संहिताबद्ध वैधानिक कानूनों में मान्यता दी जाती है और न ही इसे स्वीकार किया जाता है। केंद्र का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अधीन है और इसे देश के कानूनों के तहत मान्यता प्राप्त करने के वास्ते समलैंगिक विवाह के मौलिक अधिकार को शामिल करने के लिए विस्तारित नहीं किया जा सकता है, जो वास्तव में इसके विपरीत है।