हिन्दी के अधिक से अधिक उपयोग का संकल्प लें-अमित शाह

सोमवार, 14 सितम्बर 2020 (14:33 IST)
नई दिल्ली। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सोमवार को देशवासियों का आह्वान किया कि वे अपनी मातृभाषा के साथ साथ हिंदी का भी अधिक से अधिक प्रयोग कर उसके संरक्षरण और संवर्धन में योगदान देने का संकलप लें।
 
शाह ने हिन्दी दिवस के मौके पर अपने वीडियो संदेश में देशवासियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि मैं देशवासियों का आह्वान करता हूं कि अपनी मातृभाषा के साथ साथ हिंदी का अधिक से अधिक प्रयोग कर उनके संरक्षण व संवर्धन में अपना योगदान देने का संकल्प लें।
 
उन्होंने कहा कि अनेक भाषाएं एवं संस्कृतियां हमारी न केवल विरासत हैं बल्कि हमारी ताकत भी हैं, इसलिए हमें इनको आगे बढ़ाना है। उन्होंने कहा कि सांस्‍कृतिक व भाषाई विविधता से भरे इस गौरवशाली देश में पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण के बीच, सदियों से, कई भाषाओं ने संपर्क बनाए रखने का काम किया है। हिंदी इसमें प्रमुख भाषा रही है और ये योगदान जो हिंदी का है इसको देश के कई नेताओं ने समय-समय पर सराहा है और हिंदी ने भारत को एकता के सूत्र में पिरोने का काम किया है।
 
केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा कि हिंदी भाषा और बाकी सारी भारतीय भाषाओं ने मिलकर भारत की सांस्कृतिक विविधता को आगे ले जाने में बहुत बड़ा योगदान दिया है। हिंदी के साथ बृज, बुंदेलखंडी, अवधी, भोजपुरी, अन्य भाषाएं और बोलियां इसका उदाहरण हैं। हिंदी देश के स्वतंत्रता संग्राम के समय से राष्ट्रीय एकता और अस्मिता का प्रभावी व शक्तिशाली माध्यम रही है। हिंदी की सबसे बड़ी शक्ति इसकी वैज्ञानिकता, मौलिकता, सरलता, सुबोधता और स्‍वीकार्यता भी है। 
 
उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा की विशेषता है कि इसमें जो बोला जाता है, वही लिखा जाता है। हिंदी की इन विशेषताओं एवं सर्वग्राह्यता को ध्‍यान में रखते हुए भारतीय संविधान सभा ने 14 सितंबर, 1949 को हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में अंगीकार किया।
 
शाह ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 का उल्‍लेख करते हुए कहा कि 26 जनवरी, 1950 को लागू संविधान में प्रावधान है कि संघ की राजभाषा ‘हिंदी’ व लिपि ‘देवनागरी’ होगी। भारतीय सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों की अविरल धारा, मुख्य रूप से हिंदी भाषा से ही जीवंत तथा सुरक्षित रह पाई है। हिंदी भाषा ने बाकी स्‍थानीय भाषाओं को भी बल देने का प्रयास किया है।
 
हिंदी हर राज्‍य की भाषा को ताकत देती है। हिंदी की प्रति‍स्‍पर्धा कभी भी स्‍थानीय भाषा से नहीं रही, यह पूरे भारत के जनमानस में ज्‍यादा स्‍पष्‍ट होने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 351 के अनुसार भारत की अन्य भाषाओं का प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए, जहां आवश्यक है या वांछनीय हो, वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए, हिंदी की समृद्धि सुनिश्चित की जानी चाहिए। (वार्ता)
 

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