गुरुवार को प्रातः 8.57 बजे से भद्रा लग जाने के चलते महिलाओं ने भोर से ही कुछ लोगों ने होलिका की पूजा अर्चना कर परिवार में सुख समृध्दि की कामना के साथ पूजा अर्चना शुरू कर दी थी। दूसरी ओर अधिकतर महिलाओं ने शाम को 7.40 के बाद पूजन किया, क्योंकि पूर्णिमा का समय गुरुवार की सुबह 7.53 मिनट से शुरू होकर शुक्रवार को सुबह 6 बजे तक रहेगा। जबकि भद्रा का गुरुवार शाम 6.58 मिनट तक थी। इसलिए शाम 7 बजे के बाद ही होलिका दहन का शुभ मुहूर्त था। होलिका दहन के साथ ही देश की तमाम जगहों पर होली की शुरुआत हो गई।
पौराणिक मान्यता के अनुसार होलिका पूजन में डुंडिका देवी की अराधना की जाती है। कहा जाता है कि डुंडिका देवी की अराधना हमेशा सूर्यास्त के बाद ही करनी चाहिए। उनकी पूजा अबीर-गुलाल मिश्रित जल से करनी चाहिए। होलिका दहन के बाद सुबह गन्ने को भूनने के साथ ही होलिका में मिठाई अपर्ति की जाती है। छोटी होली के दिन नवान्नेष्टी यानि की नए अनाज की पूजा की जाती है। पौराणिक पद्धति के अनुसार होलिका को गुलाल, उड़द की दाल, काले तिल, जौं, गुजिया आदि अपर्ण किए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि होलिका में काले तिल, काली उड़द की दाल अर्पित करने से ग्रहों की पीड़ा समाप्त हो जाती है।