लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस और उसके नेता पूरी तरह से 'कन्फ्यूज' दिखाई दे रहे हैं। राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे और नए कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव को लेकर पार्टी लंबे समय तक कन्फ्यूजन में दिखाई दी। चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेने वाले राहुल गांधी चाहते थे कि पार्टी की कमान गैर गांधी परिवार का सदस्य संभाले लेकिन जब पार्टी की कार्य समिति की बैठक में किसी ऐसे नाम पर सहमति नहीं बन सकी तो आखिरकार सोनिया गांधी को आगे आकर कमान संभालनी पड़ी। ऐसा माना जा रहा था कि सोनिया के कमान संभालने के बाद पार्टी संगठन और रणनीति के तौर पर एकजुट होकर मोदी सरकार और भाजपा का मुकाबला करेगी, लेकिन ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है।
मोदी पर कन्फ्यूजन में कांग्रेस : कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष बनने के बाद सोनिया गांधी अपने पहले सार्वजनिक भाषण में जहां मोदी सरकार पर हमला कर रही थी तो ठीक उसी समय पार्टी के 3 बड़े नेता मोदी की तारीफ में कसीदे गढ़ रहे थे। पीएम मोदी का सामना करने के लिए क्या रणनीति अपनाई जाए इसको लेकर पार्टी में जबरदस्त कन्फ्यूजन दिखाई दे रहा है। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने को लेकर मोदी सरकार के फैसले का समर्थन किया जाए या विरोध इसके लेकर दो गुटों में पहले से बंटी कांग्रेस में अब पीएम मोदी को लेकर भी दो फाड़ दिखाई देने लगे हैं।
एक ओर सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी खुलकर पीएम मोदी और उनकी नीतियों पर निशाना साध रहे हैं तो दूसरी ओर पार्टी के 3 बड़े नेता जयराम रमेश, अभिषेक मनु सिंघवी और शशि थरूर पीएम मोदी और उनकी नीतियों की तारीफ कर रहे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश पीएम मोदी की तारीफ करते हुए कहते हैं कि सबको मानना होगा कि मोदी ऐसा काम करते हैं जिससे लोग उनसे जुड़ते हैं। हमने ऐसा नहीं किया, हम इस हालात में नहीं हैं कि हम उनका सामना कर सकें।
इसके साथ ही जयराम रमेश मोदी सरकार की नीतियों की तारीफ करते हुए कहते हैं कि उज्ज्वला जैसी योजना ने करोड़ों महिलाओं को मोदी से जोड़ा और इसी कारण 2019 के चुनाव में उन्होंने वह कर दिखाया जो 2014 में नहीं हुआ था। वहीं जयराम रमेश के साथ ही और वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी मोदी को हर बात के लिए खलनायक बताना गलत ठहराते हैं। वे कहते हैं कि काम का मूल्यांकन व्यक्ति नहीं मुद्दों के आधार पर होना चाहिए। वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने इन दोनों नेताओं की बात का समर्थन करते हुए कहा कि मैं इस बात को पिछले 6 साल से कह रहा हूं।
बैकफुट पर कांग्रेस : मोदी की तारीफ में अपने इन नेताओं के बयान से पार्टी की जमकर किरकिरी हो रही है। ऐसे समय पर जब पार्टी पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम की गिरफ्तारी को लेकर मोदी सरकार पर हमलावर थी और इसको बदले की भावना से की गई कार्रवाई बता रही थी ठीक उसी समय पार्टी के बड़े नेताओं का पीएम मोदी का गुणगान करना पार्टी को असहज कर गया है। फिलहाल कांग्रेस ने मोदी का गुणगान करने वाले नेताओं के बयानों से किनारा कर लिया है। पार्टी प्रवक्ता मनीष तिवारी से जब इन नेताओं के बयान के बारे में पूछा गया तो उन्होंने जवाब देने से ही इंकार करते हुए कहा कि जिन महानुभावों ने बयान दिया है, वही कुछ बता सकते हैं।
हरियाणा में पूर्व सीएम हुड्डा के बगावती तेवर : लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस बुरी तरह बिखरती नजर आ रही है। हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र ऐसे 3 राज्यों जहां इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं, वहां पार्टी नेतृत्व और रणनीति दोनों मोर्चों पर बुरी तरह कन्फ्यूज दिखाई दे रही है। हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे भूपेंद्र सिंह हुड्डा अनुच्छेद 370 पर मोदी सरकार की तारीफ करने के साथ ही अलग पार्टी बनाने के संकेत दे चुके हैं।
बगावत पर उतारू हुड्डा ने शुक्रवार को एक 36 सदस्यीय कमेटी बनाकर कांग्रेस आलाकमान को सीधे चुनौती दे दी है। इस कमेटी की राय के आधार पर हुड्डा अपने राजनीतिक जीवन की भावी दिशा और दशा तय करेंगे। इस कमेटी में प्रदेश कांग्रेस के कई बड़े चेहरे शामिल हैं, जिसके बाद कयास इस बात के तेज हो गए हैं कि राज्य में पार्टी चुनाव से पहले 2 भागों में बंट जाएगी।
चुनावी राज्य झारखंड में अध्यक्ष नहीं : चुनावी राज्य झारखंड में तो कांग्रेस की हालत और भी खराब है। पिछले लगभग एक पखवाड़े से पार्टी का कोई प्रदेश अध्यक्ष हीं नहीं है। पार्टी में गुटबाजी और अंतर्कलह से तंग होकर अध्यक्ष पद से डॉक्टर अजय कुमार के इस्तीफा देने के बाद अब तक पार्टी अपने लिए एक अदद अध्यक्ष नहीं खोज सकी है। ऐसे में अब जब संभवत: चुनाव में 100 दिन से भी कम का समय बचा है तब पार्टी भाजपा का मुकाबला कैसे करेगी ये भी सवालों के घेरे में है।
महाराष्ट्र में टूट गई कांग्रेस : कभी कांग्रेस के मजबूत गढ़ के रूप में पहचान रखने वाले महाराष्ट्र में तो कांग्रेस बुरी तरह टूट गई है। लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के कई दिग्गज चेहरे और विधायक पार्टी का साथ छोड़ भाजपा और शिवसेना में शामिल हो चुके हैं। पार्टी से इस्तीफा देने वालों में निर्मला गावित, कालिदास कोलंबकर, राधाकृष्ण विखे पाटिल और पूर्व मंत्री अब्दुल सत्तार शामिल हैं। इसके साथ ही पार्टी में गुटबाजी भी अपने चरम पर है।