त्रिपाठी ने कहा कि इस मामले के तथ्य और परिस्थितियां भी मानसिक स्वास्थ्य के अधिकार के बारे में सवाल खड़े करती है। शिक्षा प्रणाली में मानसिक स्वास्थ्य पर कोर्स और किशोर उम्र शारीरिक और मानसिक सिंड्रोम से संबंधित मुद्दों का भी अभाव है। यहां यह उल्लेख करना भी आवश्यक है कि यह मामला दिल्ली के निर्भया कांड से भी बदतर है।
त्रिपाठी ने आरोप लगाया कि निर्भया के दिशा-निर्देशों का पालन करने, शराब के सेवन पर मानसिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करने और नीति तैयार करने तथा सरकारी अधिकारों के प्रति गंभीर सवाल उठाने की नीति पर अधिकारियों की लापरवाही एवं विफलता मानवाधिकारों पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
उन्होंने एनएचआरसी से पीड़ित डॉक्टर के साथ सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के दोषियों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई करने का अनुरोध किया और राज्य के मुख्य सचिव को निर्देश देने का भी अनुरोध किया ताकि वह राज्य में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को देखने या एक टीम भेजने के लिए तुरंत एक विशेषज्ञ समिति का गठन करें। मामले की विस्तार से जाँच के लिए आयोग स्वयं अपनी टीम मौके पर भेजे।