न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्ला की अवकाशकालीन पीठ ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के उस आदेश को निरस्त करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें रेलवे को एक व्यवसायी को एक लाख रुपए का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।
पीठ ने कहा कि हम यह समझने में विफल हैं कि चोरी को किसी भी तरह से रेलवे की सेवा में कमी कैसे कहा जा सकता है। यदि यात्री अपने सामान की रक्षा करने में सक्षम नहीं है, तो रेलवे को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।
भोला 27 अप्रैल, 2005 को काशी विश्वनाथ एक्सप्रेस से नई दिल्ली आ रहे थे और आरक्षित बर्थ पर थे। भोला ने कहा कि उन्होंने कमर में बंधी बेल्ट में एक लाख रुपए रखे थे, जो कि उन दुकानदारों को देने थे, जिनके साथ उनका व्यापारिक लेन-देन था। अगले दिन ट्रेन से उतरने के बाद उन्होंने दिल्ली में राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) में प्राथमिकी दर्ज कराई थी। (भाषा)