सिंह ने खास बातचीत में कहा कि चीन ताकत का सम्मान करता है। वह विनम्रता और शिष्टाचार पर ज्यादा ध्यान नहीं देता। उन्होंने कहा कि इस तरह का रुख (दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा पर भारत का रुख) चीन के प्रति भारत सरकार की दृढ़ता तथा सार्वभौमिक अधिकारों का प्रदर्शन है। अक्सर हम कमजोरी तथा रक्षात्मक रुख ही अपनाते हैं।
पूर्व विदेश सचिव ने कहा कि मुझे यह अच्छा लगा। ऐसा बहुत दिन बाद हुआ। मेरा मानना है कि यह दृढ़ता कायम रहनी चाहिए। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि एक केन्द्रीय मंत्री (किरण रिजिजू) का दलाई लामा के अरुणाचल में ठहरने के दौरान वहां रहना 'प्रशंसनीय' और अच्छा कदम है। यह अच्छा है क्योंकि तिब्बत का नाम नहीं लेने से बचने पर भी भारत और चीन के संबंधों में कोई खास सुधार नहीं हुआ।
उल्लेखनीय है कि विदेश मंत्रालय ने उस समय दृढ़ता के साथ कहा था कि दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश यात्रा को लेकर 'कृत्रिम विवाद' पैदा नहीं किया जाना चाहिए। तिब्बत के 82 वर्षीय आध्यात्मिक नेता इस महीने के शुरू में अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर आए थे। चीन ने यह कहते हुए इसका विरोध किया था कि (यह यात्रा) द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने में आड़े आएगी और इससे भारत को किसी तरह का फायदा नहीं होगा। (वार्ता)