आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि रेलवे ने सशस्त्र बलों की विशिष्ट जरूरतों पर काम करना पहले ही शुरू कर दिया है और थलसेना को अपनी ऑनलाइन ट्रेन निगरानी प्रणाली तक पहुंच मुहैया कराने का फैसला किया है ताकि वह विभिन्न जगहों पर हथियारों और जवानों को लेकर जा रही विशेष ट्रेनों की गतिविधियों की निगरानी कर सके। सूत्रों ने कहा कि रेलवे थलसेना मुख्यालय के उस प्रस्ताव पर भी सहमत हो गया है जिसमें अरुणाचल प्रदेश में भारत- चीन सीमा के पास के विभिन्न सेक्टरों तक हथियारों को तेजी से ले जाने के लिए पूर्वोत्तर में कई प्रमुख स्टेशनों पर समर्पित सुविधाएं मुहैया कराने की बात कही गई थी।
सूत्रों ने बताया कि शीर्ष सैन्य नेतृत्व ने रेलवे को सामरिक जरूरतों के बारे में बताया और उसने उन पर काम शुरू कर दिया है। अरुणाचल प्रदेश के भलुकपुंग, असम के शिलापत्थर और मकुम और नगालैंड के मोकोकचुंग और दीमापुर में ए सुविधाएं शुरू की जाएंगी। रेलवे ने अपनेअधिकारियों को पूर्वोत्तर और पाकिस्तानी सीमा से सटे सामरिक रूप से महत्वपूर्ण विभिन्न इलाकों में भेजने पर भी सहमति जताई है ताकि वे थलसेना की विशिष्ट आधारभूत संरचना से जुड़ी जरूरतों को समझ सकें।
टैंकों, तोपों, इंफैंट्री लड़ाकू वाहनों और मिसाइलों सहित अन्य साजोसामान ले जाने के लिए थलसेना करीब 750 ट्रेनों का इस्तेमाल करती है और इसकी एवज में रेलवे को हर साल करीब 2,000 करोड़ रुपए का भुगतान करती है। इन फैसलों से वाकिफ थलसेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘युद्ध के लिए( सैनिकों और हथियारों) को लाने-ले जाने में थलसेना के लिए रेलवे का नेटवर्क सबसे निर्णायक है।’ उन्होंने कहा कि थलसेना विभिन्न वस्तुओं और हथियारों के परिवहन के लिए करीब 5,000 कोचों का इस्तेमाल करती है और उन्हें रखने के लिए नई पार्किंग सुविधाएं तैयार की जा रही हैं। (भाषा)