Inside story:सिंधिया की तरह पायलट की नाराजगी का फायदा उठाने में कहां चूक गई भाजपा ?

विकास सिंह

बुधवार, 12 अगस्त 2020 (10:54 IST)
राजस्थान विधानसभा सत्र के ठीक पहले सचिन पायलट की ‘घर वापसी’ के बाद गहलोत सरकार पर मंडरा रहे संकट के बादल अब छंट चुके है। सोमवार को राहुल और प्रियंका से मुलाकात करने के बाद पायलट गुट के विधायकों ने जयपुर पहुंचकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात की और इसके साथ एक महीने से अधिक लंबे समय तक चले सियासी ड्रामे का कांग्रेस के पक्ष में सुखद अंत हो गया। 
 
सचिन पायलट की नाराजगी के सहारे राजस्थान में मध्यप्रदेश पार्ट-2 करने की कोशिश में लगी भाजपा के हाथ से एक बड़ा मौका हाथ से निकल चुका है। राजस्थान में सचिन पायलट के बगावत के बाद सियासी घटनाक्रम कमोबेश ठीक वैसा ही थी जैसा फरवरी-मार्च में मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद हुआ था।
 
मध्यप्रदेश में सिंधिया की अपनी ही पार्टी के प्रति नाराजगी का फायदा उठाकर भाजपा ने उनको अपने पाले में लाकर कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया था,लेकिन राजस्थान में भाजपा ऐसा नहीं कर सकी। राजस्थान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश पुनिया जिन्होंने अपने एक इंटरव्यू में सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनने की भविष्यवाणी तक कर दी थी वह अब कांग्रेस और गहलोत को कोस रहे है।     
राजस्थान का घटनाक्रम भाजपा के प्रमुख रणनीतिकारों की बड़ी असफलता माना जा रहा है। मध्यप्रदेश के बाद राजस्थान में सत्ता वापसी करने का भाजपा का सपना फिलहाल चूर-चूर हो चुका है। एक महीने तक सचिन पायलट अपने गुट के विधायकों के साथ हरियाणा से दिल्ली के चक्कर लगाते रहे लेकिन भाजपा उसका फायदा नहीं उठा सकी और कांग्रेस में राहुल और प्रियंका की जोड़ी ने पायलट की घर वापसी कराकर भाजपा को पटखनी दे दी। 
  
राजस्थान से लेकर दिल्ली तक इस पूरे घटनाक्रम पर करीबी से नजर रखने वाले  वेबदुनिया से बातचीत में वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि राजनीति में जब किसी दल में दरार होती है तो विरोधी दल फायदा उठाने की कोशिश करता है और राजस्थान में भी भाजपा ने यह करने की कोशिश की। राजस्थान से पहले भाजपा कांग्रेस में आपसी दरार और फूट का फायदा उठाकर मध्यप्रदेश, गोवा और मणिपुर में सत्ता हासिल कर चुकी है।
 
रशीद किदवई आगे कहते हैं कि राजस्थान में सत्ता परिवर्तन कराने में कोशिश में जुटी भाजपा दो मोर्चे पर चूक गई। पहला एक तो सचिन पायलट के पास पर्याप्त नंबर नहीं थे और दूसरा भाजपा खुद एकजुट नहीं थी। राजस्थान में भाजपा के अंदर वसुंधरा राजे सिंधिया और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के बीच जो अंदरूनी खींचतान और रस्साकशी चल रही है उसका नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा। 
गहलोत-पायलट एपिसोड के दौरान ही भाजपा के अंदर ही कई फ्रंट खुल गए, एक ओर तो भाजपा के अंदर ही अपना घर सुरक्षित रखने की चुनौती हो गई तो दूसरी ओर सचिन पायलट को कोई मुख्यमंत्री बनाने के लिए तैयार नहीं था। ऐसे में जब सचिन पायलट के पास खुद नंबर नहीं थे और भाजपा की तरफ कोई ऐसा नेता नहीं था जो कांग्रेस के विधायकों को ला सके तो भाजपा अपनी रणनीति में फेल हो गई। 
 
रशीद किदवई आगे कहते हैं कि जहां तक मध्यप्रदेश की बात हैं तो मध्यप्रदेश में सिंधिया के पास पर्याप्त संख्या में विधायकों थे और दूसरा शिवराज के रूप में एक तैयार उम्मीदवार था जिसने बाकी सब काम कर लिया। 
 
'वेबदुनिया' के इस सवाल पर कांग्रेस आलाकमान ने अगर समय रहते सिंधिया से भी बात की होती तो आज तस्वीर अलग होती इस पर रशीद किदवई कहते हैं कि सियासत में जो बगावत करता है वह अगर सफल हो जाता है तो पीछे मुड़कर नहीं देखता है। आपको लगता है कि अगर सचिन पायलट के पास 30-35 विधायक होते तो वह मुड़कर देखते। 

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