बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश सरकार के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी से निपटना भाजपा के लिए चुनौती?

विकास सिंह

मंगलवार, 8 जुलाई 2025 (14:42 IST)
बिहार में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सुशासन बाबू यानि नीतीश कुमार के शासन काल में राज्य की कानून व्यवस्था की पोल पूरी तरह खुलकर सामने आ गई है। 2005 में लालू-राबड़ी के ‘जंगल राज’ को समाप्त कर बिहार को विकास के पथ लाने और जंगल राज खत्म करने के मुख्यमंत्री नीतीश के दावे पर पटना मे बड़े कारोबारी गोपाल खेमका की हत्या और राज्य के अन्य जिलों में बढ़ती आपराधिक वारदातों ने सवालिया निशान लगा दिया है।

बिहार में चुनावी साल में कानून व्यवस्था और विकास व रोजगार के मुद्दें पर जिस तरह नीतीश सरकार घिरती नजर आ रही है वह चुनावी मैदान में एनडीए और भाजपा लिए एक चुनौती बनती हुई दिखाई दे रही है। दो दशकों से सत्ता में काबिज नीतीश कुमार सरकार के प्रति एंटी-इनकंबेंसी का फैक्टर जैसे-जैसे चुनाव करीब आता जा रहा है वैसे-वैसे खुलकर नजर आ रहा है।

चुनावी साल में नीतीश कुमार एक ऐसे लाचार मुख्यमंत्री के तौर पर नजर आ रहे है, जिन्हें भाजपा के इशारों पर चलना पड़ रहा है। नीतीश कुमार जिन्हें बिहार की राजनीति में पलटूराम भी कहा जाता  है वह पिछले 20 वर्षों के मुख्यमंत्रित्व काल में इतने असहज कभी नहीं दिखे जितने चुनावी साल में नजर आ रहे है।

दरअसल 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार ने पहले आरजेडी के साथ बिहार में सरकार बनाई फिर बीच भंवर में आरजेड़ी का साथ छोड भाजपा के साथ हो लिए और सरकार बनाई। बिहार में भाजपा ने जिस तरह से पहले विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी के नेता नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद सौंपा और अब चुनाव से पहले कैसे उनकी घेराबंदी करने में जुट गई है, उससे साफ संकेत है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा अपने लिए एक अवसर देख रही है।

भले ही भाजपा और जेडीयू दावे कर रहे हो कि वह एक साथ चुनाव में जाएंगे लेकिन जैसे-जैसे चुनाव का वक्त करीब आता जा रहा है वैसे-वैसे चुनौतियां बढ़ती जा रही है। आज भले ही बिहार में भाजपा के लिए नीतीश कुमार आज मजबूरी हो, लेकिन बिहार विधानसभा के चुनाव से ठीक पहले नीतीश बाबू एक और करवट नहीं लेंगे ,इसकी कोई गारंटी नहीं है। नीतीश ने पांच बार गठबंधन बदले, जिसके कारण उन्हें ‘पलटूराम’ कहा जाता है. यह विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है और नीतीश के चेहरे के खिलाफ एक एंटी इंकमबेंसी साफ तौर पर नजर आ रही है।

नीतीश कुमार के प्रति एंटी-इनकंबेंसी का फैक्टर और एनडीए के सहयोगी और मोदी सरकार मे कैबिनेट मंत्री चिराग पासवन के राज्य में सभी 242 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ने का एलान बताया है कि बिहार की राजनीति की असली पिक्चर अब बाकी है। भाजपा और चिराग के बीच बढ़ती नजदीकियों को लेकर अब नीतीश के करीब खुलकर बोलने लगे है। नीतीश की पार्टी के विधायक गोपाल मंडल ने चिराग पासवान के सभी सीटों पर चुनाव लड़ने पर तंस कसते  हुए  कहा कि जेडीयू और भाजपा अगर चिराग को छोड़ दे, तो उनकी पार्टी जीरो पर आउट हो जाएगी। बिहार में उनका कोई अस्तित्व नहीं है। उन्होंने कहा कि चिराग बोलने का कुछ भी बोल ले वह जब एनडीए गठबंधन में है तो जितनी सीट मिलेगी उतने पर चुनाव लड़ेगा, वह  सिर्फ प्रेशर पॉलिटिक्स कर रहे हैं, हवा बना रहे हैं और कुछ नहीं। उन्होंने चिराग पासवान के सभी विधानसाभा सीटों पर लड़ने वाले बयान पर कहा कि उनका बयान लड़का टाइप का होता है बच्चा टाइप का होता है, उनके कार्यक्रम में युवाओं का इसलिए भीड़ होता है कि नया-नया लड़का है हीरो लड़का है इसलिए भीड़ आती है।

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार दीपक कोचगवे कहते हैं कि यह साफ है कि बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा और आरजेडी के बीच ही मुख्य मुकाबला होगा। इसलिए नीतीश कुमार भाजपा के साथ हैं और पूरी तरह नतमस्तक भी हैं। वहीं भाजपा की पूरी कोशिश है कि इस बार बिहार में वह सत्ता में आए। ऐसे में अगर भाजपा को चुनाव के  वक्त लगता है कि नीतीश कुमार के खिलाफ जो एंटी इंकंमबेंसी है वह उस पर भारी पड़ रही हो तो वह चिराग पासवान के साथ खुलकर चुनावी मैदान में आ सकती है। वरिष्ठ पत्रकार दीपक कोचगवे कहते हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव में जातीय वोटबैंक एक महत्वपूर्ण फैक्टर है और चिराग पासवान के पास एक अपना वोटबैंक है जिसके भाजपा चुनाव में अपने साथ लाना चाहती है।  

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी