इसरो बना रहा है सबसे भारी रॉकेट

रविवार, 28 मई 2017 (14:08 IST)
नई दिल्ली। इसरो ऐसे स्वदेशी रॉकेट को विकसित करने की दिशा में काम कर रहा है जिसका वजन पूरी तरह से विकसित 200 हाथियों के बराबर होगा और यह रॉकेट संभवत: भविष्य में 'भारतीय जमीन से भारतीयों को आकाश' में लेकर जाएगा।
 
आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा में रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र में देश में निर्मित सबसे भारी रॉकेट ‘भूस्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान मार्क 3’ (जीएसएलवी एमके-3) विकसित किया जा रहा है। यह रॉकेट अब तक के सबसे भारी उपग्रहों को ले जाने में सक्षम होगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) विश्व के भारी वजन वाले एवं कई अरब डॉलर के प्रक्षेपण बाजार की नई दुनिया में कदम रखने की तैयारी कर रहा है।
 
इसरो के अध्यक्ष एएस किरण कुमार ने कहा कि हम यह सुनिश्चित करने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं कि यह नया पूरी तरह आत्मनिर्भित भारतीय रॉकेट अपने पहले ही प्रक्षेपण में सफल हो। 
 
उन्होंने कहा कि यह जीएसएलवी एमके-3 का पहला प्रायोगात्मक परीक्षण होगा जिसका नाम पहले ‘प्रक्षेपण वाहन मार्क-3’ रखा गया था लेकिन एक दशक में सब सही रहने पर या कम से कम 6 सफल प्रक्षेपणों के बाद इस रॉकेट का इस्तेमाल 'भारतीय जमीन से भारतीयों को अंतरिक्ष' में भेजने में किया जाएगा। यह रॉकेट पृथ्वी की निचली कक्षा में 8 टन तक का वजन ले जाने में सक्षम है। 
 
इसरो ने पहले ही योजना तैयार कर ली है कि यदि सरकार उसे 3 से 4 अरब डॉलर तक राशि की मंजूरी दे देती है तो वह अंतरिक्ष में 2-3 सदस्यीय चालक दल को ले जाएगा। यदि यह मानवीय उपक्रम हकीकत में बदल जाता है तो भारत रूस, अमेरिका और चीन के बाद चौथा ऐसा देश बन जाएगा जिसका एक मानवीय अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम होगा।
 
इसरो का कहना है कि अंतरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय महिला हो सकती है। मॉनसून से पहले की भीषण गर्मी में भारत के प्रक्षेपण केंद्र में भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के इंजीनियर पूरी तरह से देश में निर्मित रॉकेट प्रक्षेपित करने की जोर-शोर से तैयारी कर रहे हैं।
 
यह नया रॉकेट भूस्थैतिक कक्षा में 4 टन वर्ग के उपग्रह ले जाने में सक्षम है। ऐसा अनुमान है कि इस नए रॉकेट को विकसित करने की लागत 300 करोड़ रुपए है लेकिन एक भारतीय प्रक्षेपक का इस्तेमाल नई दिल्ली के संचार उपग्रहों को स्थापित करने में किए जाने पर देश लगभग इतनी ही बचत कर लेगा। इस समय भारत भारी 4 टन वर्ग के संचार उपग्रहों को स्थपित करने के लिए दक्षिण अमेरिका के कोउरोउ से प्रक्षेपित फ्रेंच एरियन-5 का इस्तेमाल करता है।
 
कुमार ने जोर दिया कि जीएसएलवी एमके-3 एक ऐसा रॉकेट है जिसे शुरुआत से भारत ने विकसित एवं डिजाइन किया है इसलिए इसरो के इंजीनियर चाहते हैं कि उनकी पहली कोशिश सफल रहे। यह कोई आसान काम नहीं है, क्योंकि भारत का ट्रैक रिकॉर्ड कहता है कि उसके रॉकेट के पहले प्रक्षेपण अकसर असफल रहे हैं।
 
ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन वाहन (पीएसएलवी) वर्ष 1993 में अपनी पहली उड़ान में असफल रहा था और इसके बाद से इसने लगातार 38 सफल प्रक्षेपण किए। इसी तरह भूस्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान एमके-1 वर्ष 2001 में असफल रहा था और इसके बाद से इसने 11 प्रक्षेपण किए हैं जिनमें से आधे सफल रहे हैं। 
 
भारत के पास 2 रॉकेट हैं, जो परिचालन में हैं। इनमें से पीएसएलवी 1.5 टन वजनी उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जा सकने में सक्षम है और भारत के चन्द्र एवं मंगल के पहले अभियानों में इसे ही प्राथमिकता दी गई। दूसरा रॉकेट भूस्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान मार्क-2 दो टन वर्ग के उपग्रहों को प्रक्षेपित कर सकता है और बार-बार इसकी असफलता के कारण इसे 'इसरो का शरारती लड़का' कहा जाता है।
 
नए जीएसएलवी मार्क-3 का वर्ष 2014 में यह समझने के लिए एक उपकक्षीय सफल प्रक्षेपण किया गया था कि यह वायुमंडल में कैसा प्रदर्शन करता है, हालांकि जीएसएलवी एमके-3 की लंबाई 43 मीटर है, जो 3 बड़े भारतीय रॉकेटों में सबसे छोटा है लेकिन यह भारत के सबसे बड़े रॉकेट जीएसएलवी एमके-2 से 1.5 गुना अधिक है और पीएसएलवी से दोगुना है। इस रॉकेट का डिजाइन शानदार है और यह 2 एसयूवी के बराबर वजन अंतरिक्ष में ले जाने में सक्षम है। 
 
प्रक्षपेण केंद्र में इस यान को लेकर उत्साह का जिक्र करते हुए कुमार ने कहा कि पूरी तरह से एक नया रॉकेट और अत्यधिक क्षमता वाली एक पूरी नई उपग्रह प्रणाली प्रक्षेपण के लिए तैयार है। (भाषा)

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