JKLF प्रमुख यासीन मलिक बिना अनुमति सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, मची सनसनी
शुक्रवार, 21 जुलाई 2023 (21:54 IST)
नई दिल्ली। आतंकी वित्तपोषण मामले में तिहाड़ जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के प्रमुख यासीन मलिक (Yasin Malik) ने शुक्रवार को खचाखच भरे अदालत कक्ष में पहुंचकर उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) में एक प्रकार से सनसनी मचा दी।
मलिक को अदालत की अनुमति के बिना कारागार के वाहन में उच्चतम न्यायालय परिसर में लाया गया था और इस वाहन को सशस्त्र सुरक्षाकर्मियों ने सुरक्षा दी हुई थी। मलिक के अदालत कक्ष में कदम रखते ही वहां मौजूद सभी लोग हैरान रह गए।
मलिक की मौजूदगी पर आश्चर्य जताते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति सूर्यकांत तथा न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ से कहा कि उच्च जोखिम वाले दोषियों को अपने मामले की व्यक्तिगत तौर पर पैरवी करने के लिए अदालत कक्ष में आने की मंजूरी देने की एक प्रक्रिया है।
पीठ पूर्व केन्द्रीय गृह मंत्री दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के 1989 में हुए अपहरण के मामले में जम्मू की निचली अदालत द्वारा 20 सितंबर, 2022 को पारित आदेश के खिलाफ केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसी दौरान यासीन मलिक अदालत कक्ष में उपस्थित हुआ।
सीबीआई ने अदालत को बताया कि जेकेएलएफ का शीर्ष नेता मलिक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है और उसे तिहाड़ जेल परिसर से बाहर ले जाए जाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। शीर्ष अदालत ने सीबीआई की अपील पर 24 अप्रैल को एक नोटिस जारी किया था जिसके बाद मलिक ने 26 मई को उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार को पत्र लिखा था और अपने मामले की पैरवी के लिए व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित रहने की मंजूरी का अनुरोध किया था।
मामले में एक सहायक रजिस्ट्रार ने 18 जुलाई को मलिक के अनुरोध पर गौर किया और कहा कि शीर्ष अदालत आवश्यक आदेश पारित करेगी। तिहाड़ जेल के अधिकारियों ने प्रत्यक्ष तौर पर इसे गलत समझा कि मलिक को अपने मामले की पैरवी के लिए उच्चतम न्यायालय में पेश किया जाना है। मेहता ने जब मलिक की अदालत कक्ष में मौजूदगी पर प्रश्न किया तो पीठ ने कहा कि उसने मलिक को कोई अनुमति नहीं दी या व्यक्तिगत तौर पर अपने मामले की जिरह की अनुमति देने वाला कोई आदेश परित नहीं किया।
न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि न्यायमूर्ति दत्ता ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है और अब इसे उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने के लिए प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के समक्ष रखा जाएगा। न्यायमूर्ति दत्ता ने सुनवाई से खुद को अलग करने का कोई कारण नहीं बताया है।
मेहता ने कहा कि यह एक गंभीर सुरक्षा मुद्दा है। उसे (मलिक) जेल अधिकारियों के लापरवाही भरे रवैए के कारण अदालत में लाया गया है और भविष्य में ऐसा न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। वह राष्ट्र के लिए खतरा है। वह दूसरों के लिए एक बड़ा सुरक्षा खतरा है।
उन्होंने कहा कि मलिक को कुछ आदेश की गलत व्याख्या के कारण अदालत में लाया गया। सीबीआई की ओर से भी पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि अदालत स्पष्ट कर सकती है और यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक आदेश पारित कर सकती है कि ऐसी घटना दोबारा न हो।
न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि किसी आरोपी द्वारा व्यक्तिगत रूप से बहस करना अब कोई समस्या नहीं है क्योंकि शीर्ष अदालत इन दिनों वर्चुअल सुनवाई की अनुमति दे रही है। इस पर मेहता ने कहा कि सीबीआई मलिक को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बहस करने की अनुमति देने के लिए तैयार थी लेकिन वह वर्चुअल रूप से पेश होने से इनकार कर रहा है।
मेहता ने रुबैया सईद अपहरण मामले में गवाहों से जिरह के लिए मलिक को जम्मू लाने के निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अपनी अपील में सीबीआई के तर्क का उल्लेख किया और कहा कि सीआरपीसी की धारा 268 के तहत राज्य सरकार कुछ लोगों को जेल की सीमा से स्थानांतरित नहीं करने का निर्देश दे सकती है। इसके बाद पीठ ने मेहता से अपनी दलीलें अन्य पीठ के समक्ष पेश करने को कहा जो न्यायमूर्ति दत्ता के हटने के बाद गठित होगी। इसने मामले को चार सप्ताह के बाद सूचीबद्ध किया।
शीर्ष अदालत के एक सहायक रजिस्ट्रार ने 18 जुलाई को कहा था कि मलिक का पत्र और हलफनामा आवश्यक आदेशों के लिए संबंधित पीठ के समक्ष रखा जा सकता है। सहायक रजिस्ट्रार के फैसले को संभवतः मलिक की अदालत के समक्ष व्यक्तिगत उपस्थिति की अनुमति के रूप में गलत समझा गया, जबकि अदालत द्वारा ऐसी कोई अनुमति नहीं दी गई थी।
20 सितंबर 2022 को जम्मू स्थित टाडा अदालत ने अपने आदेश में निर्देश दिया था कि रुबैया सईद अपहरण मामले में मलिक को इसके समक्ष व्यक्तिगत रूप से पेश किया जाए जिससे कि उसे अभियोजन पक्ष के गवाहों से जिरह का मौका दिया जा सके। सीबीआई ने निचली अदालत के इस आदेश को सीधे उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है क्योंकि टाडा मामलों में अपील केवल शीर्ष अदालत में ही सुनी जा सकती है।
रुबैया सईद का 8 दिसंबर 1989 को श्रीनगर के एक अस्पताल के पास से अपहरण कर लिया गया था। तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा 5 आतंकवादियों को रिहा किए जाने के बाद रुबैया को आतंकवादियों ने मुक्त कर दिया था। अब तमिलनाडु में रह रही रुबैया को सीबीआई ने अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में सूचीबद्ध किया है। सीबीआई ने 1990 की शुरुआत में मामले को अपने हाथों में ले लिया था।(भाषा)