राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सियासी वर्चस्व की लड़ाई अब इस मोड़ पर पहुंच गई है जहां से अब सचिन पायलट का वापस पार्टी में आना नामुमकिन सा हो गया है। राजस्थान में कांग्रेस के भविष्य कहे जाने वाले और राहुल गांधी की यूथ बिग्रेड में शामिल सचिन पायलट अपनी नजरदांजी से खफा होकर अब नए रास्ते पर बढ़ने के लिए तैयार दिख रहे हैं।
जिस सचिन पायलट की अगुवाई में 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने राजस्थान में शानदार जीत हासिल कर सत्ता में वापसी की थी वहीं सचिन पायलट अब 18 महीने के बाद कांग्रेस की सरकार को सत्ता से बेदखल करने को एक तरह से अपनी पगड़ी का सवाल बना लिया हैं, यह वहीं सचिन पायलट हैं जिन्होंने 2014 में कांग्रेस की सत्ता में वापसी तक पगड़ी नहीं पहने का प्रण भी लिया था।
राजस्थान में जो कुछ चल रहा हैं ठीक उस तरह का घटनाक्रम मार्च में मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के समय देखने को मिला था जब सिंधिया की बगावत ने कमलनाथ सरकार को सत्ता से बेदखल कर एक बार फिर वनवास पर भेज दिया था।
ऐसे में सवाल ये उठा रहा हैं कि कांग्रेस के दो ऐसे बड़े चेहरे जिनको एक समय कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी कांग्रेस की ओर प्रधानमंत्री का मटेरियल बता चुकी थी वह आखिर कांग्रेस का साथ क्यों छोड़ गए। यहां पर राहुल गांधी के उस बयान का भी उल्लेख करना जरूरी हैं कि जिसमें उन्होंने साफ कहा था कि सिंधिया अपने राजनीतिक भविष्य के डर के चलते भाजपा में चले गए न कि भाजपा की विचारधारा से प्रभावित होकर।
लोकसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले राहुल गांधी की कोर टीम के नेता एक के बाद एक पार्टी बाहर होते जा रहे है वहीं कई युवा नेता इस कतार में खड़े हुए दिखाई दे रहे है। अगर राहुल गांधी के सिंधिया के बयान पर गौर किया जाए तो क्या कांग्रेस के इन युवा नेताओं को पार्टी में अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित नहीं दिख रहा था और क्या वह यह भी मान चुके हैं कि अब कांग्रेस में राहुल गांधी भविष्य नहीं भूत का विषय बनकर रह गए है?
ऐसे में सवाल यह उठ रहा हैं कि क्या कांग्रेस में ‘राहुल युग’ अब खत्म हो चुका हैं, इस सवाल पर कांग्रेस की सियासत को बेहद करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई कहते हैं कि राहुल युग खत्म हो गया है या नहीं इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है क्यों राजनीति में सारी चीजें हार जीत पर निर्भर करती है।
रशीद किदवई आगे कहते हैं कि 2019 लोकसभा चुनाव का जो रिजल्ट आया उसने कांग्रेस का मनोबल तोड़ दिया और कांग्रेस में जो महत्वाकांक्षी नेता हैं उन्होंने यह निष्कर्ष निकला कि हार के लिए राहुल गांधी दोषी हैं और राहुल की वजह से हम लोग नहीं जीत पा रहे है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की आत्मकथा Sonia: A Biography और कांग्रेस मुख्यालय की सियासत पर चर्चित किताब 24,Akbar Road लिखने वाले रशीद किदवई कहते हैं कि राजनीति में जो वफादारी होती वह शर्तों पर होती है, वह सुख सुविधा की होती हैं, ऐसे में जब तक नेहरू गांधी परिवार ने कांग्रेस जन को सत्ता का सुख दिलाया और दिलाने की उम्मीद रही तब तक सब अच्छा चलता रहा अब जब वह उम्मीद नहीं है तब लोग निराश और हताश होकर अपने बलबूते पर आगे बढ़ने का फैसला कर रहे हैं।
रशीद किदवई कहते हैं कि कांग्रेस की विडंबना यह हैं कि वहां निर्णय लेने वाले तीन-तीन लोग है, उनमें आपस में तो बहुत सौहार्दपूर्ण रिश्ते होंगे ( मां- बेटे और मां बहन– भाई के रिश्ते), लेकिन राजनीति में हर व्यक्ति की एक सोच और कार्यशैली होती, अपनी पंसद और ना पंसद होती है,तो कांग्रेस में उसकी वजह से चूं-चूं का मुरब्बा निकल रहा है।
वह आगे कहते हैं कि जैसे अगर राजस्थान में क्राइसिस शुरु होने से पहले आलाकमान स्तर पर बड़ा निर्णय लेते हुए दोनों लोगों से इस्तीफा ले लिया जाता और किसी तीसरे को बना दिया जाता तो पूरा मामला ही डिफ्यूज हो जाता, लेकिन इसके लिए जो राजनीतिक साहस होना चाहिए उसका कांग्रेस में अभाव दिखता है। ऐसे फैसले एक व्यक्ति ले सकता है तीन व्यक्ति मानें, तीन राय और गुणा भाग के चक्कर में इतना समय निकल जाता हैं कि बाजी हाथ से निकल जाती है।