देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू 27 मई, 1964 को अपने निधन तक तीन मूर्ति भवन में ही रहे। बाद में तीन मूर्ति भवन को नेहरू की विरासत को कायम रखने के लिए एक स्मारक में बदल दिया गया। एक अप्रैल, 1966 को नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय सोसाइटी (एनएमएमएल) नाम से एक स्वायत्त निकाय की स्थापना की गई और उसे स्मारक के संचालन की जिम्मेदारी सौंपी गई। स्मारक में एक संग्रहालय के साथ एक समृद्ध पुस्तकालय भी है।
उल्लेखनीय है कि सरकार ने नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय सोसाइटी का नाम बदलकर प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय सोसाइटी कर दिया है, जिसे लेकर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया जताई है। कांग्रेस ने केंद्र पर संकीर्ण सोच और प्रतिशोध से काम करने का आरोप लगाया।
इस भवन को शुरू में फ्लैगस्टाफ हाउस कहा जाता था और ब्रिटिश सेना के कमांडर-इन-चीफ इसमें रहते थे। आजादी का अमृत महोत्सव वेबसाइट के अनुसार 1947 में आजादी के बाद यह तय किया गया कि स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री तीन मूर्ति भवन में निवास करेंगे। तत्कालीन कमांडर-इन-चीफ फील्ड मार्शल (सर क्लाउड) औचिनलेक को उस समय अन्य आवास मुहैया कराया गया।
बाद में इस भवन का नाम तीन मूर्ति भवन कर दिया गया। ब्रिटिश मूर्तिकार लियोनार्ड जेनिंग्स द्वारा बनाई गई तीन कांस्य प्रतिमाओं के मद्देनजर इसका नाम तीन मूर्ति भवन रखा गया। तीनों मूर्तियां जोधपुर, हैदराबाद और मैसूर लांसर्स की याद में बनाई गई थीं जो 1918 में 15वीं इंपीरियल सर्विस कैवेलरी ब्रिगेड का हिस्सा था।
पत्थर और प्लास्टर से बने तीन मूर्ति भवन में विक्टोरियन और फ्रेंच वास्तुकला का संगम है। 30 एकड़ में फैले परिसर में नेहरू स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय, नेहरू तारामंडल और प्रधानमंत्री संग्रहालय भी है। प्रधानमंत्री संग्रहालय को 21 अप्रैल, 2022 को आम लोगों के लिए खोला गया था।
Edited By : Chetan Gour (भाषा)