अहमदाबाद। गुजरात के अहमदाबाद शहर में कोरोनावायरस (Coronavirus) कोविड-19 पाबंदियों के बीच सोमवार को भगवान जगन्नाथ की 144वीं रथयात्रा 12 घंटे के बजाय 4 घंटे में संपन्न हो गई। पाबंदियों के मद्देनजर लोगों को इसमें भाग लेने से रोकने के लिए यात्रा के मार्ग में सुबह से ही कर्फ्यू लगाया गया था।
एक अधिकारी ने बताया कि भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के रथों की यात्रा सुबह करीब 7 बजे जमालपुर इलाके के 400 साल पुराने जगन्नाथ मंदिर से शुरू हुई और 11 बजे वापस लौटी।
लगभग 100 ट्रकों, हाथियों, अखाड़ों और गायन मंडलियों के सामान्य काफिले के बजाय इस साल की यात्रा में केवल तीन रथ शामिल थे, जिन्हें खालासी समुदाय के लगभग 100 युवाओं ने खींचा। इसके अलावा चार से पांच अन्य वाहन शामिल रहे।
रथों के वापस मंदिर में आने के बाद पूरे कार्यक्रम की निगरानी कर रहे गृह राज्यमंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने कर्फ्यू हटाने की घोषणा की। इससे पहले, सुबह करीब सात बजे गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल द्वारा पाहिंद विधि संपन्न करने के साथ रथयात्रा शुरू हुई।
यह विधि रथों का रास्ता साफ करने की प्रतीकात्मक रस्म है। देवी-देवताओं की मूर्तियों को रथों पर रखने से पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सुबह लगभग चार बजे मंदिर में दर्शन किया और मंगला आरती में भाग लिया।
शहर पुलिस के अनुसार, केंद्रीय सशस्त्र पुलिसबलों की नौ कंपनियों सहित लगभग 23,000 सशस्त्र कर्मियों की निगरानी में रथयात्रा शहर के पूर्वी हिस्से से गुजरी। हर साल रथयात्रा लगभग 12 घंटे में 19 किमी की दूरी तय कर भगवान जगन्नाथ मंदिर वापस पहुंचती है, जिसमें सरसपुर में एक घंटे का भोजन अवकाश भी शामिल है। हालांकि इस बार अधिकारियों ने सुनिश्चित किया है कि सारसपुर में बड़ी भीड़ जमा नहीं हो।
अधिकारियों ने बताया कि इस बार जुलूस बहुत तेजी से आगे बढ़ा और पूरे 19 किलोमीटर के मार्ग को केवल चार घंटे में पूरा किया, जैसा कि अधिकारियों ने योजना बनाई थी। पहले जुलूस करीब 12 घंटे में 19 किमी की दूरी तय कर वापस मंदिर आता था, जिसमें सारसपुर में एक घंटे का दोपहर भोज भी शामिल था।
मंदिर के अधिकारियों ने कहा कि इस बार दोपहर भोज नहीं था और रथ केवल 10 मिनट के लिए सारसपुर में रुके थे। सरकार ने लोगों से टेलीविजन पर रथयात्रा का सीधा प्रसारण देखने की भी अपील की थी। पिछले साल कोविड-19 के प्रकोप से पहले, लगभग 100 ट्रकों में सजे-धजे हाथियों और झांकियों की एक झलक पाने के लिए लाखों लोग हर साल आषाढ़ी बीज के मार्ग पर इकट्ठा होते थे।
पिछले साल, गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा महामारी के कारण सामान्य सार्वजनिक जुलूस की अनुमति देने से इनकार करने के बाद, भगवान जगन्नाथ मंदिर के परिसर में केवल एक प्रतीकात्मक रथयात्रा का आयोजन किया गया था।(भाषा)