मध्य प्रदेश में कांग्रेस के कुनबे की कलह की इनसाइड स्टोरी

विकास सिंह

बुधवार, 4 सितम्बर 2019 (10:11 IST)
भोपाल। मध्य प्रदेश में 15 साल का वनवास खत्म कर सत्ता में लौटी कांग्रेस को सरकार बनाए अभी 8 महीने ही हुए है कि पार्टी में कुनबे की कलह खुलकर सामने आ गई है। विधानसभा चुनाव में एकजुटता की सीढ़ी के सहारे सत्ता के शिखर पर पहुंचने वाली पार्टी की एकता किसी ताश के पत्ते से बने महल की तरह देखते ही देखते बिखर गई है। 
 
कांग्रेस में लंबे समय जो गुटीय राजनीति पर्दे के पीछे से चलती थी अब वह सड़क पर आ गई है। पीसीसी चीफ को लेकर शुरु हुई गुटीय राजनीति जंगल की आग की तरह पूरी पार्टी को अपनी चपेट में ले लिया और अब उसकी लपटें सरकार तक पहुंचने लगी है। गुटबाजी की इस आग की तपिश से कमलनाथ सरकार की छवि धीरे धीरे झुलस रही है और अब अपनी सरकार को इस आग से बचाने के लिए खुद मुख्यमंत्री कमलनाथ एक्शन में आए है। 
 
सरकार बनने के 8 महीने के अंदर आखिर ऐसा क्या हुआ कि पार्टी में सभी धड़े एक दूसरे के आमने सामने आ गए है। आज की तारीख में जो तस्वीर कांग्रेस के अंदर से निकलकर सामने आ रही है उससे एक संदेश साफ है कि कांग्रेस के बड़े नेता एक दूसरे पर हावी होने की कोशिश कर रहे है। 

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर कहते हैं कि कांग्रेस के बड़े नेताओं का एक दूसरे पर हावी होना कांग्रेस का इतिहास रहा है और आज वहीं इतिहास फिर से दोहरा रहा है। आज मध्य प्रदेश में कांग्रेस के बड़े नेता जैसे दिग्विजय सिंह, कमलनाथ और सिंधिया एक दूसरे पर हावी होने की कोशिश कर रहे है। 

 
 
गिरिजाशंकर कहते हैं कि आज कांग्रेस में जो कुछ चल रहा है वह गुटबाजी नहीं  बल्कि एक दूसरे पर हावी होने की कांग्रेस परंपरा को दिखा रहा है। वह कहते हैं कि कांग्रेस में डीपी मिश्रा के समय से ही बड़े नेता एक दूसरे पर हावी होकर एक दूसरे को काटते नजर आए है और आज भी वैसा ही कुछ हो रहा है। वेबदुनिया से बातचीत में गिरिजाशंकर कहते हैं कि अब यह मुख्यमंत्री कमलनाथ पर निर्भर करता है कि वह पूरे एपिसोड को कैसे हल करें। 
 
मुख्यमंत्री की पॉवर पॉलिटिक्स : मध्य प्रदेश कांग्रेस में आज की तारीख में तीनों बड़े नेता मुख्यमंत्री कमलनाथ,पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और पार्टी के लोकप्रिय नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया एक दसूरे पर हावी होकर खुद को पॉवर सेंटर के तौर पर स्थापित करना चाहते है। 
 
विधानसभा चुनाव के बाद जब मुख्यमंत्री कमलनाथ ने निर्दलीयों और बसपा सपा के समर्थन से सरकार बनाई तो उनकी सरकार की स्थिरता को लेकर सवाल उठने लगे थे।  अपनी सरकार की स्थिरता को लेकर उठ रहे सवाल का जवाब खुद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने विधानसभा के मॉनसून सत्र के आखिरी दिन दे दिया था।
 
सत्र के आखिरी दिन जिस तरह मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपनी सियासी मैनेजमेंट का कौशल दिखाते हुए भाजपा के पाले के दो विधायकों को अपने खेमे में खड़ा कर लिया था उससे विपक्षी दल भाजपा के साथ ही खुद सरकार को आए दिन आंख दिखाने वाले विधायकों को एक मैसेज मिल गया था। इस घटनाक्रम को सूबे में कमलनाथ की पॉवर पॉलिटिक्स के तौर पर देखा गया और उन्होंने अपने को एक मजबूत मुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया था। 
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सरकार का चेहरा बनते दिग्विजय : कमलनाथ सरकार के शपथ लेने के बाद भोपाल को फिर से अपनी सियासत का केंद्र बनाने वाले दिग्विजय सिंह सरकार का चेहरा बनने की कोशिश का कोई भी मौका नहीं छोड़ रहे है। बात चाहे विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव के समय दिग्विजय सिंह के विधानसभा में मौजूद रहने की हो या  कांग्रेस विधायक दल की बैठक में पार्टी के विधायकों को सियासी मंत्र देने की दिग्विजय बराबर इस कोशिश में लगे रहते है कि उनका सरकार में कोई दखल कम नहीं हो।
 
मॉनसून सत्र के दौरान विधानसभा में विधायकों के प्रबोधन कार्यक्रम में जब पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने विधायकों से कहा कि अगर कोई मंत्री उनकी बात़ नहीं सुने तो उनसे शिकायत करें तो इसको सियासी पंडितों ने काफी अचरज भरी नजर से देखा था। इसके बाद पिछले दिनों जब दिग्विजय सिंह ने सरकार के सभी 28 मंत्रियों को पत्र लिखकर अपनी तरफ से ट्रांसफर और अन्य सिफारिशों पर हुई कार्यवाही की जानकारी मांगी तो सरकार के खेमे में खमोशी छा गई लेकिन इस खमोशी के पीछे एक ऐसा भंयकर सियासी तूफान था जिसने कांग्रेस के चाणक्य माने जाने वाले दिग्विजय सिंह की जड़ों को हिलाकर रखकर दिया है।
 
दिग्विजय सिंह की घोर विरोधी रही पूर्व नेता प्रतिपक्ष जमुना देवी के भतीजे और कमलनाथ कैबिनेट में मंत्री उमंग सिंघार ने दिग्विजय सिंह को ब्लैकमेलर बताते हुए उनकी शिकायत पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से कर दी है। इस बीच हर मुद्दे पर बेबाकी से अपना पक्ष रखने वाले दिग्विजय सिंह अब भी खमोश है। 
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सिंधिया की पॉवर सेंटर बनने की चाहत  :  विधानसभा चुनाव के बाद भले ही प्रदेश में कांग्रेस और उसके नेताओं के अच्छे दिन आ गए हो लेकिन सूबे में कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय चेहरा माने जाने वाले युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के दिन नहीं बदले। चुनाव के समय मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर देखे जाने वाले सिंधिया पहले तो मुख्यमंत्री बनने की रेस में कमलनाथ से पिछड़ गए और फिर लोकसभा चुनाव में अपनी सीट भी हार गए।

इस दोहरे झटके से उबरने के लिए और अपनी भविष्य की राजनीति के लिए सिंधिया एक बार फिर अपने को प्रदेश की राजनीति में एक पॉवर सेंटर के तौर पर स्थापित करना चाहते है इसके लिए उनकी नजर पीसीसी चीफ की कुर्सी पर टिकी हुई है। इसके लिए उनके समर्थक मंत्रियों से लेकर उनके कार्यकर्ताओं ने मोर्चा खोल दिया है। सिंधिया के समर्थक अपने महाराज को अध्यक्ष बनाने लिए अखबार के विज्ञापनों से लेकर बैनर होर्डिंग और पूजा पाठ का सहारा ले रहे है। इस बीच अपने गढ़ ग्वालियर- चंबल में सिंधिया ने अपने समर्थकों के साथ शक्ति प्रदर्शन कर इशारों ही इशारों में कमलनाथ सरकार पर हमला कर उन पर हावी होने का दांव भी चल दिया है। 
 

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