पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने मोदी को बताया- कैसे हासिल होगी 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी

रविवार, 8 सितम्बर 2019 (11:16 IST)
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को मंत्र दिया है कि 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनॉमी बनाने के लक्ष्य को कैसे हासिल किया जा सकता है।
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मनमोहन सिंह ने कहा कि एलपीजी (Liberalization, Privatization, Globalization) की नीतियों पर आधारित आर्थिक सुधार जारी रखकर ही रणनीति बनाकर भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनॉमी बनाया जा सकता है। केंद्रीय वित्तमंत्री रहते हुए मनमोहन सिंह ने 1991 में देश में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीति लागू की थी।
मनमोहन सिंह एक निजी विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। जब मनमोहन सिंह मंच पर आ रहे थे, तब कुछ छात्रों ने मोदी-मोदी के नारे भी लगाए। कार्यक्रम में मनमोहन सिंह को जेकेएलयू लॉरेट अवार्ड 2019 से सम्मानित किया गया। डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि गरीबी, सामाजिक असमानता, सांप्रदायिकता और धार्मिक कट्टरवाद तथा भ्रष्टाचार लोकतंत्र के समक्ष कुछ प्रमुख चुनौतियां हैं।
 
उन्होंने कहा कि इस समय हमारी अर्थव्यवस्था धीमी पड़ती दिखाई दे रही है। जीडीपी वृद्धि दर में गिरावट आ रही है। निवेश की दर स्थिर है। किसान संकट में हैं। बैंकिंग प्रणाली संकट का सामना कर रही है। भारत में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है।
 
मनमोहन ने कहा कि भारत को 5 हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए देश को एक अच्छी तरह से सोची-समझी रणनीति की आवश्यकता है। पूर्व प्रधानमंत्री ने सुझाव दिया कि सरकार को टैक्स आतंकवाद रोकना चाहिए, भिन्न विचारों की आवाजों का सम्मान करना चाहिए, हर स्तर पर संतुलन बनाना चाहिए। मनमोहन सिंह ने कहा कि उदारीकरण की नीतियों पर खड़े किए गए आर्थिक सुधारों को जारी रखना समय की मांग है।

सिंह ने कहा कि अधिनायकवादी शासन की अपेक्षा व्यावहारिक लोकतंत्र का निश्चित तौर पर लाभ होता है। उन्होंने आर्थिक विकास के मामले में चीन का उदाहरण देते हुए कहा कि इस तरह के देशों में जहां नागरिकों को प्राथमिक तौर पर आर्थिक वृद्धि पर ध्यान केंद्रित रखने को कहा जाता है और एक ऐसा वातावरण तैयार कर दिया जाता है, जहां निजी आजादी की कुर्बानी को सही ठहरा दिया जाता है।
 
उन्होंने कहा कि हालांकि जैसे-जैसे आय बढ़ने लगती है, वैसे ही समाज की आकांक्षाएं भी बदलने लगती हैं और अंतिम रूप से लोग लोकतांत्रिक ढांचा चाहने लगते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि लंबे समय तक आजादी का चला जाना कोई छोटी-मोटी कीमत नहीं होती है।

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