पीडीपी-भाजपा के गले की फांस बनेगा मसर्रत आलम

पिछले 26 सालों के अपने अलगाववादी नेता के जीवनकाल में 19 साल जेल में रहने वाला मसर्रत आलम फिर से आजाद हो गया है। कोर्ट ने उसे रिहा कर दिया है। उसके खिलाफ 50 मामले दर्ज किए गए थे और 34 बार पीएसए अर्थात जन सुरक्षा अधिनियम लागू किया गया था। कोर्ट ने हर बार उसकी रिहाई का आदेश पारित किया। नतीजतन अब यही कहा जा रहा है कि रिहा होने के बाद मसर्रत आलम एक बार फिर गठबंधन सरकार के लिए गले की फांस बनेगा।
जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट ने मंगलवार को अलगाववादी नेता मसर्रत आलम को रिहा करने का निर्देश दे दिया है। मसर्रत आलम पर 2010 में कश्मीर में हुए तनाव और हिंसा में मुख्य भूमिका निभाने का आरोप है। यह लगातार 34वीं बार है कि कोर्ट ने उसकी रिहाई के आदेश दिए हैं।
 
अदालत ने प्रदेश की भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार को निर्देश दिया की वह अलगाववादी नेता मसर्रत आलम को तत्काल रिहा करें। मसर्रत आलम को 2010 में कश्मीर घाटी में उत्पात के बाद जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत गिरफ्तार किया गया था। उस पर भारत विरोधी हिंसक प्रदर्शन करने का भी आरोप है। बता दें कि मसर्रत आलम को पहले भी कई बार अदालत से रिहा होकर दोबारा हिरासत में लिया जाता रहा है। अदालत ने पिछले हफ्ते सुनवाई के दौरान उस पर फैसला सुरक्षित रखा था।
 
राज्य में जन सुरक्षा के लिए खतरा होने और संकट पैदा करने के आरोपों में आलम छह साल से लगातार सलाखों के पीछे था। साल 2010 में कश्मीर घाटी में उत्पात के बाद आलम को जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत गिरफ्तार किया गया था जिसके बाद से उसे जम्मू के पास कठुआ जेल में रखा गया था। इस उपद्रव में 120 से अधिक लोगों की जान चली गई थी।
 
आलम पर आरोप है कि उसके द्वारा भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान के साथ लगी सीमा (नियंत्रण रेखा) पर तीन नागरिकों के कथित फर्जी मुठभेड़ में मारे जाने के बाद भारत विरोधी हिंसक प्रदर्शन का आयोजन किया था। न्यायाधीश मुजफ्फर हुसैन अतर ने आलम के इस बार लगाए गए पीएसए हिरासत आदेश को मंगलवार को खारिज कर दिया। अदालत ने पिछले सप्ताह सुनवाई के दौरान फैसला सुरक्षित रखा था। फैसले के दौरान कहा गया कि आलम को अविलंब रिहा किया जाए।
 
मसर्रत आलम को अलगाववादी हुर्रियत नेता सईद अली शाह गिलानी का बेहद करीबी माना जाता है। मसर्रत 2008-10 में राष्ट्रविरोधी प्रदर्शनों को लीड करता रहा है। उस दौरान पत्थरबाजी की घटनाओं में 120 लोगों की मौत हो गई थी। मसर्रत के खिलाफ देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने सहित कई मामले दर्ज थे। उसे चार महीनों की तलाश के बाद अक्टूबर 2010 में दबोचा गया था। मसर्रत पर संवेदनशील इलाकों में भड़काऊ भाषण देने के आरोप भी लग चुके हैं।
 
मसर्रत आलम को अक्टूबर 2010 में श्रीनगर के गुलाब बाग इलाके से 4 महीने की मशक्कत के बाद गिरफ्तार किया गया था। गिलानी के करीबी माने जाने वाले मसर्रत आलम पर दस लाख रुपए का इनाम भी रखा गया था। अब रिहाई के बाद यही आशंका प्रकट की जा रही है कि वह वर्तमान आंदोलन की कमान अपने हाथों में ले सकता है और अगर ऐसा हुआ तो कश्मीर में भयानक तबाही आने की चिंता से सभी ग्रस्त होने लगे हैं।

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