उत्तरप्रदेश के 2017 विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के लिये एक बार फिर ईवीएम को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने कहा, नसीमुद्दीन को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मुस्लिम बहुल सीटों पर मुसलमानों को पार्टी से जोड़ने की जिम्मेदारी काफी समय पहले दी गई थी। जब नोटबंदी हुई तो चुनाव लड़ने के लिए अधिक से अधिक लोगों को पार्टी से जोड़ने और उनसे सदस्यता शुल्क लेने का काम सभी पार्टी नेताओं को दिया गया था, क्योंकि बसपा सदस्यों के चंदे के सहारे ही चुनाव लड़ती है। वह किसी भी उद्योगपति या धन्नासेठों से पैसा नहीं लेती है।
उन्होंने कहा कि सभी पार्टी नेताओं ने सदस्यता की रसीदें पैसे के साथ पार्टी कार्यालय में जमा करा दी, लेकिन नसीमुद्दीन ने केवल पचास प्रतिशत पैसा ही जमा करवाया। उनसे बार-बार पैसा जमा करवाने को कहा गया लेकिन वे आनकानी करते रहे। (भाषा)