नई दिल्ली। इंटरनेशनल राइट्स ग्रुप ऑक्सफैम आवर्स ने 'रिवार्ड वर्क, नॉट वैल्थ' नामक रिपोर्ट में भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था को लेकर कुछ सवाल खड़े किए हैं। जबकि अपने दावोस दौरे में निश्चित तौर पर पीएम मोदी भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का ढिंढोरा पीटेंगे। हालांकि इस रिपोर्ट में भारत में अमीर-गरीब की बढ़ती खाई की भयावह तस्वीर पेश की गई है।
दावोस में विश्व आर्थिक मंच की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया की व्यापार जगत की शीर्ष हस्तियों को आश्वस्त करेंगे कि भारत तेजी से बदल रहा है। सरकार सबसे पिछड़े लोगों की समृद्धि के लिए काम कर रही है। फोरम में ‘बढ़ती आय’और ‘लिंग असामनता’पर भी अहम चर्चा हो सकती है। इस सम्मेलन से पहले इंटरनेशनल राइट्स ग्रुप ऑक्सफैम आवर्स की ‘रिवॉर्ड वर्क, नॉट वेल्थ’सर्वे ने जो रिपोर्ट पेश की है, दावोस में उससे जुड़े सवालों का जवाब देना प्रधानमंत्री मोदीजी के लिए कठिन हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल भारत के कुल धन में 73 फीसदी धन महज एक फीसदी अमीरों के पास है। 67 करोड़ आबादी गरीब है और इनकी आय में मात्र एक फीसदी की वृद्धि हुई। सर्वे में यह भी कहा गया है कि भारत के एक फीसदी अमीरों की आबादी देश की कुल धन का 58 फीसदी भाग पैदा करती है, जो वैश्विक स्तर पर 50 फीसदी से भी ज्यादा है। सर्वे के अनुसार, दुनिया भर में यह स्थिति और भयावह है। दुनिया भर में संकलित कुल आय में 82 फीसदी योगदान अमीरों का है, जबकि 3.7 अरब की आबादी का इसमें कोई हाथ नहीं है।
सर्वे में कहा गया है कि किस तरह से वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमीरों का ही योगदान है, जबकि सैकड़ों मिलियन की गरीब आबादी किसी तरह बस अपना जीवन यापन कर रही है। वर्ष 2017 की रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि हर दो दिन में एक अरबपति बन रहा है। वर्ष 2010 से ही अरबपतियों का धन 13 फीसदी की दर से बढ़ा है। इस अध्ययन में कहा गया है कि भारत में अमीरों की आय के बराबर कमाने में मिडिल क्लास के लोगों को 941 साल लग जाएंगे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में अमीरों की संपत्ति तेजी से बढ़ रही है और लगातार बढ़ रही है। वहीं करोड़ों लोग दो जून की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मेहनत मशक्कत कर रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2010 के बाद से अरबपतियों की संपत्ति 13 फीसदी की दर से बढ़ रही है। यह श्रमिकों के वेतन से छह फीसदी ज्यादा है।
ऑक्सफैम इंडिया की सीईओ निशा अग्रवाल ने कहा है कि भारत में आर्थिक विकास का लाभ कुछ ही लोगों को मिल रहा है। यह चिंता की बात है क्योंकि अरबपतियों की संख्या में बढ़ोत्तरी संपन्न अर्थव्यवस्था का संकेत नहीं है। यह असफल आर्थिक व्यवस्था का एक लक्षण है।
उन्होंने कहा कि बढ़ता विभाजन लोकतंत्र को कमजोर करता है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। इतना ही नहीं, भारत में 10 अरबपतियों में 9 पुरुष हैं, जो बताता है कि यहां कितना लैंगिक भेदभाव है। भारत में केवल चार महिला अरबपति हैं और इनमें से तीन को यह संपत्ति विरासत में मिली है।
अब सवाल यह भी उठता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दावोस जाने की जरूरत क्यों महसूस हुई? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस साल का पहला विदेश दौरा विश्व आर्थिक मंच यानी वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 48वीं सालाना बैठक से शुरू हो रहा है।
स्विट्जरलैंड के दावोस में सोमवार से शुरू हो रहे इस फोरम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाग लेंगे जहां वह मंगलवार को इसके आधिकारिक सत्र को संबोधित करेंगे। विदित हो कि दो दशक पहले 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा इकॉनोमिक फोरम में गए थे।
हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी से एक टीवी चैनल के इंटरव्यू में कहा है कि दुनिया भली-भांति जानती है कि दावोस अर्थजगत की पंचायत बन गया है। उन्होंने यह भी कहा कि अर्थजगत की हस्तियां वहां इकट्ठा होती हैं और भावी आर्थिक स्थितियां क्या रहेंगी वहां से उसकी दिशा तय होती है।
समझा जा सकता है कि क्या वह अर्थजगत की दशा-दिशा देखने जा रहे हैं? आज से पहले हर साल वित्त मंत्री या कोई दूसरा अधिकारी ही क्यों वहां जाता था? वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार एमके वेणु भारतीय अर्थव्यवस्था की सुस्ती को इसका कारण बताते हैं।
उनका कहना है कि 'मई में मोदी सरकार को चार साल हो जाएंगे, लेकिन आज तक प्रधानमंत्री वहां नहीं गए क्योंकि दुनिया पिछले साल तक भारत को उभरती अर्थव्यवस्था मानती थी। तेल और वस्तुओं के दाम कम होने से भारत की अर्थव्यवस्था को लाभ हुआ, लेकिन 2015-16 में भारत की जीडीपी 7.9 फीसदी थी। वर्ष 2016-17 में जीडीपी 7.1 हुई और अब अंदाजा लगाया जा रहा है कि इस वित्तीय वर्ष में यह 6.52 हो सकती है। आर्थिक क्षेत्र में भारत पिछड़ा है और बाकी दुनिया के 75 फीसदी देशों की जीडीपी बढ़ी है।
वेणु कहते हैं कि इस दौरान दुनिया की शीर्ष कंपनियों के शीर्ष अधिकारी मौजूद रहते हैं और यहां व्यवसाय और नेटवर्किंग का काम होता है। भारत इसमें एक थीम के रूप में पेश होगा और बड़े-बड़े लोग इसमें शामिल होंगे। वे कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दावोस इसलिए जा रहे हैं क्योंकि उन्हें अर्थव्यवस्था की चिंता है और वे वहां से काफी व्यवसाय लाने में सफलता की उम्मीद करते हैं।
फोरम का आधिकारिक सत्र मंगलवार से शुरू हो रहा है जिसको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फोरम के कार्यकारी अध्यक्ष क्लॉज श्वाप के साथ संबोधित करेंगे। प्रधानमंत्री के इस दौरे को काफी छोटा, लेकिन फोकसवाला बताया जा रहा है। इस दौरान वह दुनिया की 60 कंपनियों के सीईओ के लिए एक डिनर का भी आयोजन करेंगे।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा काले धन के लिए उठाए गए कदमों की भी वहां चर्चा हो सकती है। इस पर वेणु कहते हैं कि 'प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी के विचार को विदेशी कंपनियों को बेचने की कोशिश की है क्योंकि वह दिखाते हैं कि इससे अर्थव्यवस्था का डिजिटाइजेशन हो रहा है।'
वह आगे कहते हैं, 'विदेशी कंपनियों को डिजिटाजेशन और जीएसटी सुनने में अच्छे लगते हैं, लेकिन इससे उन्हें देश के अंदर की अर्थव्यवस्था का हाल नहीं पता चल पाता है। नोटबंदी के कारण छोटे उद्योगों और किसानों को जो चोट पहुंची है, उस पर विदेशी कंपनियां तवज्जो नहीं देती। जीएसटी भी जिस तरह से लागू किया गया है उससे छोटे उद्योग ही मार खा रहे हैं।'
अब देखना यह है कि मोदीजी के विचार और ऑक्सफैम की रिपोर्ट का कॉकटेल क्या रंग लाएगा? क्या दूसरे देश भी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के साधन के तौर पर डिजिटाइजेशन, नोटबंदी और जीएसटी को अपनाएंगे?