Global climate news : वर्ष 2020 तक के 3 दशकों के दौरान पृथ्वी के 77 प्रतिशत से अधिक भू-भाग ने पिछली समान अवधि की तुलना में शुष्क जलवायु का सामना किया। मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र समझौता (UNCCD) द्वारा सोमवार को जारी एक रिपोर्ट में यह कहा गया है। इसी अवधि के दौरान, वैश्विक शुष्क भूमि का विस्तार लगभग 43 लाख वर्ग किलोमीटर हुआ, जो भारत से लगभग एक तिहाई बड़ा है तथा अब यह पृथ्वी के 40 प्रतिशत से अधिक भू-भाग पर फैला हुआ है। अनुमानों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन की सबसे बदतर स्थिति में 2100 तक पांच अरब लोगों को शुष्क भूमि पर रहना पड़ सकता है।
सऊदी अरब के रियाद में आयोजित यूएनसीसीडी के 16वें सम्मेलन में जारी की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को रोकने के प्रयास विफल हो गए, तो इस सदी के अंत तक दुनिया के तीन प्रतिशत आर्द्र क्षेत्र शुष्क भूमि में बदल जाएंगे।
शुष्कता की प्रवृत्ति से विशेष रूप से प्रभावित क्षेत्रों में लगभग 96 प्रतिशत यूरोप, पश्चिमी अमेरिका, ब्राजील, एशिया और मध्य अफ्रीका के कुछ हिस्से शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण सूडान और तंजानिया में भूमि का सबसे अधिक हिस्सा शुष्क भूमि में परिवर्तित हो रहा है, जबकि गैर-शुष्क भूमि से शुष्क भूमि में परिवर्तित होने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र चीन में है।
दुनिया के लगभग आधे शुष्क भूमि के निवासी एशिया और अफ्रीका में रहते हैं। सबसे घनी आबादी वाले शुष्क क्षेत्र कैलिफोर्निया, मिस्र, पूर्वी और उत्तरी पाकिस्तान, भारत के बड़े हिस्से और पूर्वोत्तर चीन में हैं। ग्रीनहाउस गैस के अधिक उत्सर्जन की स्थिति में मध्य-पश्चिमी अमेरिका, मध्य मैक्सिको, उत्तरी वेनेजुएला, उत्तर-पूर्वी ब्राजील, दक्षिण-पूर्वी अर्जेंटीना, संपूर्ण भूमध्य सागर क्षेत्र, काला सागर तट, दक्षिणी अफ्रीका के बड़े हिस्से और दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया में शुष्क भूमि के विस्तार का पूर्वानुमान है।
यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव इब्राहिम थियाव ने कहा, पहली बार भूमि के शुष्क होने के संकट को वैज्ञानिक स्पष्टता के साथ सामने लाया गया है, जिससे दुनियाभर में अरबों लोगों को प्रभावित करने वाले इस खतरे का पता चलता है। उन्होंने कहा, सूखे के विपरीत-कम वर्षा की अस्थाई अवधि, शुष्कता एक स्थाई, निरंतर परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करती है।
उन्होंने कहा, सूखे की स्थिति समाप्त हो जाती है। हालांकि जब किसी क्षेत्र की जलवायु शुष्क हो जाती है, तो वह पूर्व की स्थिति में लौटने की क्षमता खो देती है। थियाव ने कहा कि दुनियाभर में विशाल क्षेत्रों को प्रभावित करने वाली शुष्क जलवायु अब वैसी नहीं होगी जैसी वे पहले थी और यह परिवर्तन पृथ्वी पर जीवन के लिए नई चुनौतियां पेश कर रहा है। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour