जम्मू। पिछले 30 सालों के दौरान आतंकी 90 से ज्यादा अमरनाथ श्रद्धालुओं को मौत के घाट उतार चुके हैं। यह आंकड़ा वर्ष 1993 से लेकर वर्ष 2017 तक का है। इन मौतों के लिए आतंकी गुटों तथा अलगाववादी नेताओं द्वारा बनाई गई असमंजस की परिस्थितियों को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है क्योंकि हर बार अमरनाथ यात्रा शुरू होने पर कुछ आतंकी गुट अमरनाथ यात्रा को क्षति न पहुंचाने की बात करते रहे हैं तो अलगाववादी नेता अमरनाथ श्रद्धालुओं को कश्मीर का मेहमान बता उनकी पीठ पर वार करते रहे हैं।
अमरनाथ यात्रा पर सबसे पहला हमला विदेशी आतंकियों ने 1993 में किया था जब उस पर प्रतिबंध लगाते हुए हरकतुल अंसार ने श्रद्धालुओं को धमकी दी थी कि यात्रा में शामिल होने वालों को मौत के घाट उतार दिया जाएगा। जब धमकी बेअसर हुई तो आतंकी हमले में तीन की जान चली गई। इसी प्रकार का हमला उसके अगले साल भी हुआ। मरने वालों की तादाद अधिक नहीं थी। दो की जान जरूर गई थी।
फिर सुरक्षा प्रबंधों में सख्ती का परिणाम था कि अगले 6 साल तक आतंकी अमरनाथ यात्रा को कोई क्षति नहीं पहुंचा पाए। पर उसके अगले चार साल अमरनाथ श्रद्धालुओं के लिए भारी साबित हुए। चौंकाने वाली बात यह थी कि वर्ष 2000 से लेकर वर्ष 2003 तक के चार हमलों के दौरान अमरनाथ यात्रा की सुरक्षा के प्रति लंबे-चौड़े दावे किए जाते रहे थे। तब आतंकियों ने हर साल हमला किया था।
आतंकियों ने वर्ष 2000 में सबसे अधिक 35 श्रद्धालुओं को पहलगाम में मौत के घाट उतार दिया था। वर्ष 2001 में 12, वर्ष 2002 में 10 को मार डाला था। हालांकि वर्ष 2003 में आतंकी अमरनाथ यात्रा मार्ग पर कोई हमला नहीं कर पाए थे लेकिन उन्होंने अमरनाथ यात्रा संपन्न कर वैष्णोदेवी की यात्रा में शामिल होने जा रहे 8 श्रद्धालुओं को जरूर मार डाला था।
दरअसल यह कश्मीरी जनता का दबाव होता था ताकि रोजी-रोटी चलती रहे। जानकारी के लिए अमरनाथ यात्रा को कश्मीर के पर्यटन व्यवसाय की रीढ़ माना जाता रहा है, पर इस रीढ़ को अक्सर आतंकी गुट विचारधारा के चलते तोड़ने की कोशिश जरूर करते रहते हैं।